गर्भ से लिंग परीक्षण जाँच के बाद बालिका शिशु को हटाना कन्या भ्रूण हत्या है। केवल पहले लड़का पाने की परिवार में बुजुर्ग सदस्यों की इच्छाओं को पूरा करने के लिये जन्म से पहले बालिका शिशु को गर्भ में ही मार दिया जाता है। ये सभी प्रक्रिया पारिवारिक दबाव खासतौर से पति और ससुराल पक्ष के लोगों के द्वारा की जाती है। गर्भपात कराने के पीछे सामान्य कारण अनियोजित गर्भ है जबकि कन्या भ्रूण हत्या परिवार द्वारा की जाती है। भारतीय समाज में अनचाहे रुप से पैदा हुई लड़कियों को मारने की प्रथा सदियों से है।
कुछ लोगों का मानना है कि लड़के परिवार के वंश को जारी रखते हैं जबकि वो ये बेहद आसान सी बात नहीं समझते कि दुनिया में लड़कियाँ ही शिशु को जन्म दे सकती हैं, लड़के नहीं।
1990 में चिकित्सा क्षेत्र में अभिभावकीय लिंग निर्धारण जैसे तकनीकी उन्नति के आगमन के समय से भारत में कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा मिला। हालांकि, इससे पहले, देश के कई हिस्सों में बच्चियों को जन्म के तुरंत बाद मार दिया जाता था। भारतीय समाज में, बच्चियों को सामाजिक और आर्थिक बोझ के रुप में माना जाता है इसलिये वो समझते हैं कि उन्हें जन्म से पहले ही मार देना बेहतर होगा। कोई भी भविष्य में इसके नकारात्मक पहलू को नहीं समझता है। महिला लिंग अनुपात पुरुषों की तुलना में बड़े स्तर पर गिरा है (8 पुरुषों पर 1 महिला)। अगले पाँच वर्षों में अगर हम पूरी तरह से भी कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगा दें तब भी इसकी क्षतिपूर्ति करना आसान नहीं होगा। इसके परिणाम भाविष्य में बहूत ही भयावह हो सकते है
कन्या भ्रूण हत्या के मुख्य कारण
कुछ सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक नीतियों के कारण पुराने समय से किया जा रहा कन्या भ्रूण हत्या एक अनैतिक कार्य है। भारतीय समाज में कन्या भ्रूण हत्या के निम्न कारण हैं:
कन्या भ्रूण हत्या की मुख्य वजह बालिका शिशु पर बालक शिशु की प्राथमिकता है क्योंकि पुत्र आय का मुख्य स्त्रोत होता है जबकि लड़कियां केवल उपभोक्ता के रुप में होती हैं। समाज में ये गलतफहमी है कि लड़के अपने अभिवावक की सेवा करते हैं जबकि लड़कियाँ पराया धन होती है। दहेज़ व्यवस्था की पुरानी प्रथा भारत में अभिवावकों के सामने एक बड़ी चुनौती है जो लड़कियां पैदा होने से बचने का मुख्य कारण है। पुरुषवादी भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति निम्न है। अभिवावक मानते हैं कि पुत्र समाज में उनके नाम को आगे बढ़ायेंगे जबकि लड़कियां केवल घर संभालने के लिये होती हैं। गैर-कानूनी लिंग परीक्षण और बालिका शिशु की समाप्ति के लिये भारत में दूसरा बड़ा कारण गर्भपात की कानूनी मान्यता है। तकनीकी उन्नति ने भी कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा दिया है।
आमतौर पर माता-पिता लड़की शिशु को टालते हैं क्योंकि उन्हें लड़की की शादी में दहेज़ के रुप में एक बड़ी कीमत चुकानी होती है। ऐसी मान्यता है कि लड़कियां हमेशा उपभोक्ता होती हैं और लड़के उत्पादक होते हैं। अभिवावक समझते हैं कि लड़का उनके लिये जीवन भर कमायेगा और उनका ध्यान देगा जबकि लड़की की शादी होगी और चली जायेगी। ऐसा मिथक है कि भविष्य में पुत्र ही परिवार का नाम आगे बढ़ायेगा जबकि लड़किया पति के घर के नाम को आगे बढ़ाती हैं। अभिवावक और दादा-दादी समझते हैं कि पुत्र होने में ही सम्मान है जबकि लड़की होना शर्म की बात है। परिवार की नयी बहु पर लड़के को जन्म देने का दबाव रहता और इसी वजह से लिंग परीक्षण के लिये उन्हें दबाव बनाया जाता है और लड़की होने पर जबरन गर्भपात कराया जाता है। लड़की को बोझ समझने की एक मुख्य वजह लोगों की अशिक्षा, असुरक्षा और गरीबी है। विज्ञान में तकनीकी उन्नति और सार्थकता ने अभिवावकों के लिये इसको आसान बना दिया है।
भ्रूण हत्या के नियंत्रण के लिये उपाय:
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि महिलाओं के भविष्य के लिये कन्या भ्रूण हत्या एक अपराध और सामाजिक आपदा है। भारतीय समाज में होने कन्या भ्रूण हत्याओं के कारणों का हमें ध्यान देना चाहिये और नियमित तौर पर एक-एक करके सभी को सुलझाना चाहिये। लैंगिक भेदभाव की वजह से ही मुख्यत: कन्या भ्रूण हत्या होती है। इसके ऊपर नियंत्रण के लिये कानूनी शिकंजा होना चाहिये। भारत के सभी नागरिकों द्वारा इससे संबंधित नियमों का कड़ाई से पालन करना चाहिये। और इस क्रूरतम अपराध के लिये किसी को भी गलत पाये जाने पर निश्चित तौर पर सजा मिलनी चाहिये। चिकित्सों के इसमें शामिल होने की स्थिति में उनका स्थायी तौर पर लाइसेंस को रद्द करना चाहिये। गैरकानूनी लिंग परीक्षण और गर्भपात के लिये खासतौर से मेडिकल उपकरणों के विपणन को रोकना चाहिये। उन अभिवावकों को दण्डित करना चाहिये जो अपनी लड़की को मारना चाहते हैं। युवा जोड़ों को जागरुक करने के लिये नियमित अभियान और सेमिनार आयोजित करने चाहिये। महिलाओं का सशक्तिकरण होना चाहिये जिससे वो अपने अधिकारों के प्रति अधिक सचेत हो सकें।