महिला सशक्तिकरण (Hindi Essay Writing)

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महिला सशक्तिकरण


महिला सशक्तिकरण के अंतर्गत महिलाओं से जुड़े सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और कानूनी मुद्दों पर संवेदनशीलता और सरोकार व्यक्त किया जाता है। सशक्तिकरण की प्रक्रिया में समाज को पारंपरिक पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण के प्रति जागरूक किया जाता है, जिसने महिलाओं की स्थिति को सदैव कमतर माना है। वैश्विक स्तर पर नारीवादी आंदोलनों और यूएनडीपी आदि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने महिलाओं के सामाजिक समता, स्वतंत्रता और न्याय के राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। महिला सशक्तिकरण, भौतिक या आध्यात्मिक, शारिरिक या मानसिक, सभी स्तर पर महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें सशक्त बनाने की प्रक्रिया है।

 

परिचय 

महिला सशक्तिकरण को बेहद आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाएँ शक्तिशाली बनती है जिससे वो अपने जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती है और परिवार और समाज में अच्छे से रह सकती है. समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिये उन्हें सक्षम बनाना महिला सशक्तिकरण है.

नरेंद्र मोदी जी द्वारा महिला दिन पर कहा गया मशहूर वाक्य “देश की तरक्की के लिये पहले हमें भारत के महिलाओं को सशक्त बनाना होंगा”. एक बार जब महिला अपना कदम उठा लेती है, तो परिवार आगे बढ़ता है, गाँव आगे बढ़ता है और राष्ट्र विकास की ओर बढ़ता है.

भारत में, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाले उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है, जैसे दहेज प्रथा, यौन हिंसा, अशिक्षा, भ्रूण हत्या, असमानता, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, कार्य स्थल पर यौन शोषण, बाल मजदूरी, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय. लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक अंतर ले आता है जो देश को पीछे की ओर ढ़केलता है. भारत के संविधान में लिखे गये समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना सबसे प्रभावशाली उपाय है. लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से पूरे भारत में नारी सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है.

महिला सशक्तिकरण के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये इसे हर एक परिवार में बचपन से प्रचारित व प्रसारित करना चाहिये. ये जरुरी है कि महिलाएँ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रुप से मजबूत हो. एक बेहतर शिक्षा की शुरुआत बचपन से घर पर हो सकती है, महिलाओं के उत्थान के लिये एक स्वस्थ परिवार की जरुरत है जो राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिये आवश्यक है. आज भी कई पिछड़े क्षेत्रों में माता-पिता की अशिक्षा, असुरक्षा और गरीबी की वजह से कम उम्र में विवाह और बच्चे पैदा करने का चलन है. महिलाओं को मजबूत बनाने के लिये महिलाओं के खिलाफ होने वाले दुर्व्यवहार, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक अलगाव तथा हिंसा आदि को रोकने के लिये सरकार कई सारे कदम उठा रही है.

महिलाओं के खिलाफ कुछ बुरे चलन को खुले विचारों के लोगों और महान भारतीय लोगों द्वारा हटाया गया जिन्होंने महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण कार्यों के लिये अपनी आवाज उठायी. राजा राम मोहन रॉय की लगातार कोशिशों की वजह से ही सती प्रथा को खत्म करने के लिये अंग्रेज मजबूर हुए. बाद में दूसरे भारतीय समाज सुधारकों आचार्य विनोबा भावे, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद, महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले आदि ने भी महिला उत्थान के लिये अपनी आवाज उठायी और कड़ा संघर्ष किया. भारत में विधवाओं की स्थिति को सुधारने के लिये ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने अपने लगातार प्रयास से विधवा पुर्न विवाह अधिनियम 1856 की शुरुआत करवाई.

महिलाओं की समस्याओं का उचित समाधान करने के लिये महिला दूसरे क्षेत्रों में भी महिलाओं को सक्रिय रुप से भागीदार बनाने के लिये कुछ प्रतिशत सीटों को आरक्षित किया गया है. सरकार को महिलाओं के वास्तविक विकास के लिये पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में जाना होगा और वहाँ की महिलाओं को सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं और उनके अधिकारों से अवगत कराना होगा जिससे उनका भविष्य बेहतर हो सके. महिला सशक्तिकरण के सपने को सच करने के लिये लड़िकयों के महत्व और उनकी शिक्षा को प्रचारित करने की जरुरत है. इसके साथ ही हमें महिलाओ के प्रति हमारी सोच को भी विकसित करना होगा.

कानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये संसद द्वारा पास किये गये कुछ अधिनियम है –

अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956
दहेज रोक अधिनियम 1961
एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976
मेडिकल टर्म्नेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987
लिंग परीक्षण तकनीक एक्ट 1994
बाल विवाह रोकथाम एक्ट 2006
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013

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