हमारा देश एक विशाल देश है। इस देश में सभी धर्मों, जातियों, वेश-भूषा व विभिन्न संप्रदायों के लोग निवास करते हैं। देश ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सफलता के नए आयाम स्थापित किए हैं। विकास की आधुनिक दौड़ में हम अन्य देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। पंरतु इतनी सफलताओं के पश्चात् भी जनसंख्या वृद्धि, जातिवाद, भाषावाद, बेरोजगारी, महँगाई आदि अनेक समस्याएँ हैं जिनका निदान नहीं हो सका है अपितु उनकी जड़ें और भी गहरी होती जा रही हैं। बाल-श्रम भी ऐसी ही एक समस्या है जो धीरे-धीरे अपना विस्तार ले रही है। इस समस्या का जन्म प्रायः पारिवारिक निर्धनता से होता है। हमारे देश में आज भी करोड़ों की संख्या मंे ऐसे लोग है जो गरीबी की रेखा के नीचे रहकर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। ऐसे लोगों को भरपेट रोटी भी बड़ी कठिनाई और अथक परिश्रम के बाद प्राप्त होती है। उनका जीवन अभावों से ग्रस्त रहता है। इन परिस्थितियांे मे उन्हे अपने बच्चों के भरण-पोषण में अत्यतं कठिनाई उठानी पड़ती है। जब परिस्थितयाँ अत्यधिक प्रतिकूल हो जाती हैं तो उन्हें विवश होकर अपने बच्चों को काम-धंधे अर्थात् किसी रोजगार में लगाना पड़ता है। इस प्रकार ये बच्चे असमय ही एक श्रमिक जीवन व्यतीत करने लगते हैं जिससे इनका प्राकृतिक विकास अवरूद्ध हो जाता है। अभी तो तेेरे पंख उगे थे, अभी तो तुझको उड़ना था। जिन हाथों में कलम शोभती, उनमें कुदाल क्यों पकड़ाना था। मूक बधिर पूरा समाज है, उसे तो चुप ही रहना था। देश मे श्रमिक के रूप में कार्य कर रहे 5 वर्ष से 12 वर्ष तक के बालक बाल श्रमिक के अंतर्गत आते हैं। देश में लगभग 6 करोड़ से भी अधिक बाल श्रमिक हैं जिनमें लगभग 2 करोड़ से अधिक लड़कियाँ हैं। यह बाल श्रमिक देश के सभी भागों मे छिटपुट रूप से विद्यमान हैं। देश के कुछ भागों, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश, उड़ीसा में इन श्रमिकों की संख्या तुलनात्मक रूप से अधिक है। देश में बढ़ती हुई बाल-श्रमिकों की संख्या देश के सम्मुख एक गहरी चिंता का विषय बनी हुई है। यदि समय रहते इसको नियंत्रण मे नहीं लाया गया तब इसके दूरगामी परिणाम अत्यंत भयावह हो सकते हैं। हमारी सरकार ने बाल-श्रम को अपराध घोषित कर दिया है पंरतु समस्या की जड़ तक पहुँचे बिना इसका निदान नहीं हो सकता है। अतः यह आवश्यक है कि हम पहले मूल कारणों को समझने व दूर करने का प्रयास करें। बाल-श्रम की समस्या का मूल है निर्धनता और अशिक्षा। जब तक देश में भुखमरी रहेगी तथा देश के नागरिक शिक्षित नहीं होंगे तब तक इस प्रकार की समस्याएँ ज्यों की त्यों बनी रहेंगी। देश मे बाल श्रमिक की समस्या के समाधान के लिए प्रशासनिक, सामाजिक तथा व्यक्तिगत सभी स्तरों पर प्रयास आवश्यक हैं। यह आवश्यक है कि देश में कुछ विशिष्ट योजनाएँ बनाई जाएँ तथा उन्हें बच्चों को श्रम की ओर विवश न करना पड़े। प्रशासनिक स्तर पर सख्त से सख्त निर्देंशों की आवश्यकता है जिससे बाल-श्रम को रोका जा सके। व्यक्तिगत स्तर पर बाल श्रमिक की समस्या का निदान हम सभी का नैतिक दायित्व है। इसके प्रति हमें जागरूक होना चाहिए तथा इसके विरोध में सदैव आगे आना चाहिए। हमें विश्वास हैं कि हमारे प्रयास सार्थक होंगे तथा बाल श्रमिक की समस्या का उन्मूलन हो सकेगा। राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार की व्यवस्था जन्म लेगी जिससे पुनः किसी बालक को अपना बचपन नहीं खोना पड़ेगा। ये सभी बच्चे वास्तविक रूप में बड़ सकेगें तथा अच्छी शिक्षा ग्रहण कर देश को गौरवान्वित करेंगे। कानून को और सख्त बनाने की आवश्यकता है ताकि कोई भी व्यक्ति इस कुप्रथा को बढ़ावा न दे सके। बाल श्रमिक की समस्या के निदान के लिए सामाजिक क्रांति आवश्यक है ताकि लोग अपने निहित स्वार्थों के लिए देश के इन भावी निर्माताआंे व कर्णधारों के भविष्य पर प्रश्न-चिह्न न लगा सकें।