ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी के सतही तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। इस वृद्धि के पीछे ग्रीन हाउस गैसों (कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन) का बड़ी मात्रा में उत्सर्जन होता है। वैज्ञानिकों द्वारा दिए गए कई सबूत साबित करते हैं कि 1950 के बाद से पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। पिछले कुछ दशकों में मानव गतिविधियों ने पृथ्वी पर जलवायु प्रणाली को गर्म करने के लिए प्रेरित किया है और यह भविष्यवाणी की जा रही है कि 21 वीं सदी में वैश्विक सतह का तापमान और ज्यादा बढ़ सकता है। बढ़ते तापमान से पृथ्वी पर कई तरह के बुरे हालात पैदा हो गये हैं। यहाँ नीचे उन्हीं बुरे हालातों पर एक विस्तृत नज़र डाली गई है:-जलवायु की स्थितियों पर प्रभावग्लोबल वार्मिंग ने दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा के पैटर्न में बदलाव ला दिया है। इसके परिणामस्वरूप, जबकि कुछ क्षेत्रों में सूखे जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, जबकि अन्य क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। जिन इलाकों में ज्यादा बरसात होती है वहां और ज्यादा बारिश होने लग गई है और सूखे क्षेत्रों में और ज्यादा सूखा पड़ने लगा है। बढ़ते तापमान से तूफ़ान, चक्रवात, तेज़ गरम हवाएं और जंगल में आग जैसी आपदाएं आम बात हो गई है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी पर कई क्षेत्र मौसम की स्थिति में भारी गड़बड़ी का अनुभव कर रहे हैं और भविष्य में ऐसी समस्यों के बढ़ने की संभावना है।समुद्र पर प्रभाव20वीं शताब्दी से वैश्विक समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है। समुद्र के स्तर बढ़ने के पीछे दो कारण है जिसमें पहला है महासागर के पानी का गरम होना जिससे पानी का थर्मल विस्तार हो रहा है तथा दूसरा कारण है ग्लेशियर पर बर्फ का लगातार पिघलना। यह भविष्यवाणी की जा रही है कि आने वाले समय में समुद्र के स्तर में और भी वृद्धि देखने को मिल सकती है। समुद्र के स्तर में होती निरंतर वृद्धि ने तटीय और निचले इलाकों में जीवन के लिए एक बड़ा खतरा उत्पन्न कर दिया है।वातावरण पर प्रभावग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी के वातावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। तापमान में होती यह वृद्धि वायु प्रदूषण के स्तर को और ज्यादा बढ़ा रही है। मूलतः कारखानों, कारों और अन्य स्रोतों द्वारा उत्सर्जित धुआं गर्मी और सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आकर पृथ्वी पर ओजोन के स्तर को बढ़ा देती है जिससे वायु प्रदूषण में भारी मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है। वायु प्रदूषण में होती बढ़ोतरी ने विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दिया है और इससे दिन प्रतिदिन मानव जीवन के लिए हालात खराब हो रहें है।पृथ्वी पर जीवन पर प्रभावतापमान में वृद्धि, अनिश्चित जलवायु की स्थिति और वायु तथा जल प्रदूषण में वृद्धि ने पृथ्वी पर जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। बार-बार आती बाढ़, सूखे और चक्रवातों ने कई जिंदगियां खत्म कर दीं तथा प्रदूषण के बढ़ते स्तर से कई स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो गयी हैं। मनुष्यों की तरह पशुओं की कई अलग-अलग प्रजातियां और पेड़ पौधें बदलते मौसम का सामना करने में असमर्थ हैं। जलवायु परिस्थितियों में होते तेजी से बदलाव के कारण भूमि के साथ ही समुद्र पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। जानवरों और पौधों की विलुप्त होने की दर भी बढ़ गई है। शोधकर्ताओं के अनुसार जलवायु में प्रदूषण और परिवर्तन के बढ़ते स्तर की वजह से पक्षियों, स्तनधारियों, सरीसृप, मछलियों और उभयचर की कई प्रजातियों गायब हो गई हैं।कृषि पर प्रभावग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप होती अनियमित वर्षा पैटर्न के कारण कृषि पर सबसे ज्यादा असर हुआ है। कई क्षेत्रों में अक्सर सूखे, अकाल जैसी स्थिति बन गयी है जबकि अन्य इलाकों में भारी वर्षा और बाढ़ ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। इससे न केवल उन क्षेत्रों में रहने वाले लोग प्रभावित हो रहे है बल्कि इसका फसलों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। कृषि भूमि अपनी प्रजनन क्षमता खो रही है और फसल क्षतिग्रस्त हो रही है।निष्कर्षग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर मुद्दा है। इसके नतीजे भयानक तथा विनाशकारी हैं। ग्लोबल वार्मिंग के परिणामों को कम करने के लिए सबसे पहले कार्बन उत्सर्जन करने वाले साधनों को तुरंत नियंत्रित किया जाना चाहिए। यह केवल तभी किया जा सकता है जब प्रत्येक व्यक्ति अपनी ओर से इस मानव कल्याणकारी कार्य के लिए अपना योगदान दे।