आरक्षण नीति
सरकार ने 104वें संविधान संशोधन के द्वारा देश में सरकारी विद्यालयों के साथ-साथ गैर सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थानों में भी अनुसूचित जातियों/जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थियों को आरक्षण का लाभ प्रदान कर दिया है| सरकार के इस निर्णय का समर्थन और विरोध दोनों हुआ| वास्तव में, निजी क्षेत्रों में आरक्षण लागू होना अत्यधिक कठिन है, क्योंकि निजी क्षेत्र लाभ से समझौता नहीं कर सकते, यदि गुणवत्ता प्रभावित होने से ऐसा होता हो| तुलियन सिविजियन ने कहा था “जब आप पर खाने के लिए कुछ भी नहीं होगा, तब आप अद्भुत आविष्कार करेंगे, आप बिना डर या आरक्षण के बड़ा जोखिम लेने हेतु तैयार रहेंगे|” पिछले कई वर्षों से आरक्षण के नाम पर राजनीति हो रही है, आए दिन कोई न कोई वर्ग अपने लिए आरक्षण की मांग कर बैठता है एवं इसके लिए आंदोलन करने पर उतर जाता हैं| इस तरह, देश में अस्थिरता एवं अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है| आर्थिक एवं सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर निम्न तबके के लोगों के उत्थान के लिए उन्हें सेवाएं एवं शिक्षा में आरक्षण प्रदान करना उचित है, लेकिन जाति एवं धर्म के आधार पर तो आरक्षण को कतई उचित नहीं कहा जा सकता, क्योंकि एक और तो इससे समाज में विभेद उत्पन्न होता है, तो दूसरी और आरक्षण पाकर व्यक्ति कर्म के क्षेत्र से भी विचलित होने लगता है| वर्ष 2014 के प्रारंभ में कांग्रेस पार्टी के महासचिव श्री जनार्दन द्विवेदी ने कहा था कि देश में आरक्षण जाति आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर किया जाना चाहिए| वास्तव में जनार्दन द्विवेदी जी की कही बात पर गंभीरता पूर्वक विचार विचारने का समय आ गया है, क्योंकि आज प्रशन गरीबी का है और गरीबी की कोई जाति या धर्म नहीं होता| आज समाज के हर वर्ग के उत्थान हेतु आरक्षण के अलावा अन्य विकल्प भी खोजा जाना चाहिए, ताकि समाज में सब के साथ न्याय हो सके और सभी वर्गों के लोग एक साथ उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सके|