महिला आरक्षण विधेयक पर निबंध सत्ता में सशक्त भागीदारी के बिना विकास असंभव है| अच्छा तो यह हो सकता है कि महिलाओं को विधायिकाओं में आरक्षण देने की अपेक्षा शैक्षिक एवं आर्थिक क्षेत्र में विकास के पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाते तथा समाज में ऐसा वातावरण निर्मित किया जाता, जिससे स्त्रियाँ स्वंय को प्रासंगिक एवं स्वतंत्र महसूस करती तथा देश के विकास में पुरुषों के समक्ष भागीदारी बनती, लेकिन पुरुष मानसिकता प्रधान समाज में संक्रिण विचारधारा के कारण लोग उन्हें घरो की चारदीवारी में ही रहने का समर्थन करते हैं, क्योंकि उन्हें वास्तव मे अपनी सत्ता पर खतरा नजर आता है| महिला आरक्षण के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि उन्हें पर्याप्त आरक्षण क्यों नहीं मिलना चाहिए ? समाज का सुधारवादी या प्रगतिशील वर्ग मानते है की आरक्षण के माध्यम से प्राप्त प्रतिनिधित्व होने से समाज का प्रयाप्त विकास संभव है, जबकि समाज के रुढ़िवादी वर्ग का मानना है कि विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर उसका बुरा प्रभाव पारिवारिक प्राणली पर पड़ेगा, जिससे समाज के विकास की नींव कमजोर हो जाएगी | बचपन मैं स्त्री की रक्षा पिता करता है, जवानी में पति तथा बुढ़ापे में पुत्र, इसलिए स्त्रियाँ स्वतंत्रता योग्य ही नहीं है| धीरे-धीरे मध्यकाल तक आते-आते उनके सभी अधिकार छीन लिए गए| उन्हें पुरुषों के उपयोग की वस्तुमात्र बना दिया| पर्दा प्रथा के आगमन के साथ- साथ उनकी स्थिति और दयनीय होती गयी, लेकिन समय के साथ आधुनिक काल में पाशचात्य शिक्षा के विकास एवं प्रसार के बाद महिलाओं के लिए एक बार फिर विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है| ऐसी स्थिति में महिलाओं को अपने सर्वागिण विकास के लिए हरसंभव कोशिश करनी चाहिए और पुरुष वर्ग को उनकी इस कोशिश में ईमानदारीपूर्वक सहायता करनी चाहिए| सभ्यता के आरंभ से ही मानव समाज के विकास में आधी आबादी की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है और हमेशा रहेगी| ऐसी स्थिति में किसी भी समाज का पूर्ण विकास समाज के आदर्श सदस्य को अलग थलग करके नहीं किया जा सकता| समय की मांग है की समाज चतुर्मुर्खी एवं समग्र विकास के लिए आधी आबादी की को सहयोगी बनाय जाए और उसकी सहभागिता के लिए यदि आरक्षण आवश्यक हो तो इस प्राणी को भी क्रियांवित किया जाए| प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के शासनकाल में महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने की पूरी कोशिश की गई उसके बाद भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन सरकार ने विधेयक को संसद में प्रस्तुत किया, लेकिन हर बार लोकसभा में विधानसभा में महिलाओं को 30% आरक्षण देने का मामला विभिन्न राजनीतिक दलों के मध्य तीव्र मतभेद होने के कारण टलता गया| इन दलों की मांग आरक्षण में आरक्षण देने की है, जिसका अर्थ महिलाओं के लिए आरक्षित 33% सीटों में भी एक-तिहाई सीटें अल्पसंख्यक, दलित एवं पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित करना| वर्ष 2014 में गुजरात सरकार द्वारा राज्य पुलिस बल में महिलाओं को 33% आरक्षण देने की घोषणा की गई| यह घोषणा करते हुए वहां के वर्तमान मुख्यमंत्री श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने कहा था समाज में महिलाओं की स्थिति बेहतर करने के लिए उन्हें सशक्त बनाने की आवश्यकता है| इसलिए हमारी सरकार ने पुलिस भर्ती में महिलाओं को आरक्षण देने का फैसला किया | केंद्र सरकार द्वारा अन्य राज्य में भी ऐसे ही पहल करने की सिफारिश की गई आशा है, भविष्य में इसके अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे| महिला आरक्षण विधेयक के अनुसार, संसद में 33.3% सीटें महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होंगी| चुनाव के लिए लॉटरी के द्वारा एक-तिहाई सीटे महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएँगी| वास्तव में, भारतीय राजनीति में आरक्षण का प्रावधान अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति का परिणाम था| अंग्रेजो ने भारत परिषद, अधिनियम, 1992 के माध्यम से पहली बार मुसलमानों को पृथक एवं प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व दिया| स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान के अनुच्छेद 15(04) एवं अनुच्छेद 16(04) के अतिरिक्त अनुच्छेद 330 से लेकर अनुच्छेद 342 तक भारतीय समाज में सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए विभिन्न प्रकार के आरक्षण की व्यवस्था की गई है, किंतु अभी तक गठित किसी भी समिति या आयोग ने महिलाओं के लिए स्वतंत्र रुप से आरक्षण प्रदान करने की कभी भी संस्तुति नहीं की| महिलाओं को आरक्षण देने संबंधी मुद्दे पहली बार राजीव गांधी ने उठाया था| शिक्षा के छेत्र में अपनी क्षमता का परिचय देने के बाद स्त्रियों ने जीवन के अन्य क्षेत्रों में जैसे व्यवसाय, प्रशासन आदि में भी अपना प्रभाव दिखाना प्रारंभ कर दिया, इसके बावजूद उन्होंने यह महसूस हो रहा है कि राजनीति में पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त किए बिना उन्हें अपने संपूर्ण विकास के लिए अनुकूल वातावरण प्राप्त नहीं हो सकता|