Category: Hindi Nibandh Lekhan हिंदी निबंध लेखन

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रेल-यात्रा (Hindi Essay Writing)

रेल-यात्रा ‘‘यात्रा’’ शब्द आते ही लोगों के मन में रेल-यात्रा का ही ख्याल आ जाता है। भारत जैसे राष्ट्र में जहां की आबादी 110 करोड़ को लांघ चुकी है वहाँ रेल यात्रा का अत्यन्त महत्व है। वैसे तो यात्रा हेतू लोग हवाई जहाज, बस, कारों और पानी जहाजों का भी प्रयोग करते हैं, परन्तु जो…
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भारत की परम्पराओं पर हावी होती पाश्चात्य संस्कृति (Hindi Essay Writing)

भारत की परम्पराओं पर हावी होती पाश्चात्य संस्कृति आज समस्त विश्व पाश्चात्य संस्कृति का अनुपालन कर रहा है, ऐसे में भला भारतवासी कहाँ पीछे रहने वाले हैं। अतः भारत में भी पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति का अनुगमन व अनुपालन धड़ल्ले से किया जा रहा है। लोग इसके अनुपालन कर स्वयं को आधुनिक एवं विकसित देषों के समक्ष…
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विज्ञान से लाभ या हानि (Hindi Essay Writing)

विज्ञान से लाभ या हानि जीवों में मानव ने सर्वाधिक प्रगति की है और आज समस्त ब्रह्मांड को अपने सन्मुख नतमस्तक कराया है। प्रकृति के गूढ़तम रहस्यों को जानने में मानव ने सफलता अर्जित की है। ये सभी विज्ञान और विज्ञान में मानव की दिलचस्पी से ही संभव हो पाया है।              विज्ञान की प्रगति ने मानव में नवचेतना का संचार किया है। आज मानव मुश्किल से मुश्किल और अत्यन्त खतरनाक कामों को भी करने से नहीं कतरा रहा है।              अब यह प्रश्न उठता है कि विज्ञान से लाभ हुआ है या हानि ?              जैसा कि हम जानते हैं कि हर किसी चीज का अच्छा और बुरा दोनों ही पहलू होता है, अर्थात् यदि कोई चीज हमें सुख दे सकती है तो कभी दुख का कारण भी बन सकती है। सर्वप्रथम हम विज्ञान से लाभों का आंकलन करें तो पाते हैं कि हमारे रोजमर्रा के कार्यकलापों और विकास में विज्ञान ने अहम भूमिका निभाई है। चाहे भोजन पकाना हो, शिक्षा की बात हो अथवा अन्य कामकाज की बात हो, हर जगह वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग होता दिखाई देगा। बिना टेलिफोन, बिजली, टी0वी0, कम्प्यूटर, वाहन आदि के हमारी जिन्दगी कैसी होगी यह सोचकर भी किसी का मन दहल उठेगा? इन साधनों ने हमारी जिन्दगी को अत्यन्त सुलभ बना दिया है। आज विश्व के हर कोने के लोग परस्पर किसी न किसी रूप में एक-दूसरे से जुड़ गए हैं। संसार में होने वाली हर गतिविधियों से हम अनभिज्ञ नहीं रहते।                अपितु, विज्ञान के दुष्प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता! विज्ञान ने हमारे जीवन को सुलभ बनाने के साथ ही नाना प्रकार के रोग, प्रदुषण और खतरे पैदा किये हैं। नाभिकीय और परमाण्वीय प्रयोगों तथा औद्योगिक गतिविधियों के कारण प्रदुषण विकराल रूप धारण कर चुकी है। पेयजल, वायु और भूमि प्रदुषण से हमारे अस्तित्व पर संकट के बादल छाने लगे हैं। अनेक प्रकार के वन्य जीव-जंतु एवं वन्य प्रजातियाँ या तो विलुप्त हो गयी हैं या विलुप्ति के कगार पर है। अत्यधिक वैज्ञानिक गतिविधियों ने संसार के विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा तथा तापमान में विषमता लायी है।                अतः यह कहना अत्योशक्ति न होगा कि विज्ञान ने जितना हमें दिया है, उतना हमसे लिया भी है। प्रगति अपने नैसर्गिक सौन्दर्य से वंचित हो रही है। अतः हमें और अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं को विज्ञान के सीमित प्रयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि पर्यावरण को संरक्षित किया जा सके। इस प्रकार हम विज्ञान तथा प्रकृति दोनों का लाभ उठा सकेंगे।

दूरदर्शन की उपयोगिता (Hindi Essay Writing)

दूरदर्शन की उपयोगिता  आज घर-घर में टेलीविजन हैं। टेलीविजन एक प्रभावशाली प्रचार माध्यम बन चुका है। इस पर दिन-रात कोई न कोई कार्यक्रम आजा ही रहता है। फिल्म, चित्रहार, रामायण, महाभारत और अनेक धारावाहिक तो बूढ़ों से लेकर बच्चों तक सबकी जुबान पर रहते हैं। सारे काम धंधे को छोडक़र लोग इन कार्यक्रमों को देखने के लिए टी.वी. सेट के करीब खिंचे चले आते हैं।                रेडियो-प्रसारण में वक्ता अथवा गायक की आवाज रेडियोधर्मी तरंगों द्वारा श्रोता तक पहुंचती है। इस कार्यक्रम ट्रंासमीटर की मुख्य भूमिका होती है। रेडियो तरंगे एक सेकंड में 3 लाख किलोमीटर की गति से दौड़ती हैं। दूरदर्शन में जिस व्यक्ति अथवा वस्तु का चित्र भेजना होता है, उससे परावर्तित प्रकाश की किरणों को बिजली की तरंगों में बदला जाता है, फिर उस चित्र को हजारों बिंदुओं में बांट दिया जाता है। एक-एक बिंदु के प्रकाश को एक सिरे से क्रमश: बिजली की तरंगों में बदला जाता है। इस प्रकार टेलीविजन का एंटेना इन तरंगों को पकड़ता है।                 विद्युत तरंगों से सेट में एक बड़ी ट्यूब के भीतर ‘इलेक्ट्रॉन’ नामक विद्युत कणों की धारा तैयार की जाती है। ट्यूब की भीतरी दीवार में एक मसाला लगा होता है। इस मसाले के कारण चमकर पैदा होती है। सफेद भाग पर ‘इलेक्ट्रॉन’ का प्रभाव ज्यादा होता है और काले भाग पर कम।                टेलीविजन समुद्र के अंदर खोज करने में बड़ा सहायक सिद्ध होता है। चांद के धरातल का चित्र देने में भी यह सफल रहा। आज बाजार में रंगीन, श्वेत-श्याम, बड़े मझले तथा छोटे हर तरह के टेलीविजन सेट उपलब्ध हैं।                 सन 1925 में टेलीविजन का अविष्कार हुआ था। ग्रेट ब्रिटेन के एक वैज्ञानिक जॉन एल-बेयर्ड ने टेलिविजन का अविष्कार किया था।                  हमारे देश में टेलीविजन द्वारा प्रयोग के तौर पर 15 सितंबर 1951 को नई दिल्ली के आकाशवाणी केंद्र से इसका प्रथम प्रसारण किया गया था। प्रथम सामान्य प्रसारण नई दिल् ी से 15 अगस्त, 1965 को किया गया था। और हां, एक समय ऐसा आया, जब आकाशवाणी और दूरदर्शन एक-दूसरे से अलग हो गए। इस तरह से 1976 को दोनों माध्यम एक-दूसरे से स्वतंत्र हो गए।                   टेलीविजन के राष्ट्रीय कार्यक्रमों का प्रसारण ‘इनसेट-1 ए’ के माध्यम से 15 अगस्त 1982 से प्रारंभ हो गया था। उसके बाद आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, महाराष्ट्र में इसके प्रसारण केंद्र खोले गए। इस तरह टेलीविजन के विविध कार्यक्रमों का प्रसारण होने लगा।                   भारत में टेलीविजन तेजी से चचित होता जा रहा है। सन 1951 में टी.वी. ट्रांसमीटर की संख्या मात्र 1 थी। यह ट्रांसमीटर दिल्ली में स्थापित किया गया था। इनकी संख्या बढ़ते-बढ़ते सन 1973 में 42 तक पहुंच गई। वर्ष 1984 में यह संख्या 126 थी। कम शक्ति के ट्रांसमीटरों की स्थापना के साथ ही देश में टी.वी. ट्रंासमीटरों की संख्या 166 हो गई।              5 सितंबर 1987 तक देश के पास 201 ट्रंासमीटर थे। इनके बारह पूर्ण विकसित केंद्र, आठ रिले ट्रांसपमीटर वाले छह इनसेट केंद्र और 183 लो पॉवर ट्रांसमीटर थे।              टेलीविजन आज अपने लगभग 300 ट्रंासमीटरों के साथ देश के 47 प्रतिशत क्षेत्र में फेली 70 प्रतिशत आबादी की सेवा करता है।               सबसे बड़ी बात यह है कि दूरदर्शन के माध्यम से हम घर बैइे दुनिया की सैर कर लेते हैं। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, फिल्मोत्सव, ओलंपिक और क्रिकेट मैचों के सजीव प्रसारण देखकर मन झूम उठता है। समय-समय पर कई विशेष कार्यक्रमों का प्रसारण तो देखते ही बनता है।

दूरदर्शन के लाभ-हानि (Hindi Essay Writing)

दूरदर्शन के लाभ-हानि  दूरदर्शन यानी टेलिविजन एक दृश्य-श्रव्य उपकरणों के मिश्रण से बना घरेलू उपकरण है। घरेलू इसलिए कि झोपड़ी से लेकर राजभवन तक सभी जगह आज मुक्त रूप से इसका व्यापक उपययोग हो रहा है। लोग दूरदर्शन को मनोरंजन का एक सबसे सस्ता साधन और घरेलू सिनेमा तक भी कहते हैं। इसमें संदेह नहीं कि यह मनोरंजन का सबसे सस्ता, बल्कि आजीवन मुफ्त में प्राप्त होने वाला साधन है। पर क्या इसके निर्माण एंव उपयोग का प्रयोजन मात्र मनोरंजन की सामग्री प्रस्तुत करना ही है? निश्चय ही एक विचारणीय प्रश्न है।                  जब हम उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर खोजने लगते हैं, तो कई प्रकार के लाभ-हानि मूलक तथ्य हमारे सामने स्वत: ही उभरकर आने लगते हैं। दूरदर्शन निस्संदेह आज मात्र ऐय्याशी का उपकरण न होकर जीवन की एक अपरिहार्य-सी आवश्यकता बन चुका है। अत: इसक ाउपयोग मनोरंजन के लि एतो किया ही जा सकता या जा रहा है, भारत जैसे विकासोन्मुख देश में जन-शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए भी किया जा सकता है। कहा जा सकता है कि जन-शिक्षण-प्रशिक्षण के कार्य भी समान्य स्तर पर, सामान्य रूप से भारतीय दूरदर्शन पर अवश्य किए जा रहे हैं। पर क्या उनका स्वरूप, समय और संख्या आदि वास्तव में उपयोगी एंव पर्याप्त हैं? ऊतर ‘नहीं’ ही हो सकता है। हम एक उदाहरण से इस ‘नहीं’ की वास्तविकता स्पष्ट करना चाहेंगे। सबसे पहले कृषि-दर्शन जैसे देहाती कार्यक्रम को ही लीजिए। इसके लिए प्राय: नित्य ही विशेषज्ञ बुाए जाते हैं। अच्छी बात है। वे लोग कृषि एंव कृषकोपयोगी आवश्यक, अच्छी-अच्छी बातें बताते हैं। पर होता यह है कि उनकी बातें पूरी नहीं हो पातीं कि कोई दूसरा कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया जाता है। प्राय: यह व्यवधान उन सभी कार्यक्रमों में पड़ते देखा-सुना जा सकता है कि जिनका प्रसारण जन-शिक्षण एंव ज्ञान-वद्र्धक के लिए किया जाता है। दर्शक एंव श्रोता तल्लीनता से ऐसे कार्यक्रम देश-सुन रहा होता है कि उन्हें तोडक़र अक्सर फिल्मी का कोई कार्यक्रम प्रसारि किया जाने लगता है। कितना दुखद पहलू है यह हमारे दूरदर्शन महोदय का? इसे हम नियोजकों, अधिकारियों की अदूरदर्शिता, कल्पना-शून्यता और इस सबसे बढक़र अयोज्यता ही कह सकते हैं?                अब दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले तथाकथित मनोरंजक कार्यक्रमों की बात लीजिए। मनोरंजन के नाम पर वेन-केन प्रकारेण मात्र सिनेमा एंव सिनमाई अंदाज ही दूरदर्शन पर छाया हुआ है। वह भी हा प्रकार से घटिया, स्तरहीन, अश्लील, नज्न एंव जीवन की वास्तविकताओं से कोसों दूर रहने वाला। उसमें भारतीय सभ्यता-संस्कृति, भाषा सभी की खुली भद्द उड़ रही होती है। उलटे आज के मनोरंजक कार्यक्रम, मनोरंजन के नाम पर अपसंस्कृति का प्रचार घर-घर में पहुंचा रहे हैं। सपने और कल्पनांए बेच रहे हैं। वहां मारधाड़, शराबखोरी, भ्रष्टाचार और उसके तरीके खुले रूप से दिखाए एंव बताए जा रहे हैं। एक इस प्रकार के हीरोइज्म का प्रचार किया जा रहा है जो नाम मात्र को भी वास्तविक या व्यावहारिक न तो हुआ करता एंव न हो ही सकता है? उस सबका प्रभाव हमारे किशोर एंव युवा वर्ग पर कैसा पड़ रहा है, समाचार-पत्रों में अक्सर पढऩे को मिलता रहता है। इससे प्रभावित एक किशोर ने छत से कूदकर जान दे दी। नशाखोरी तो हजारों ने सीखी और सीख रहे हैं। छुरेबाजी और चोरी-चकारी सीखने वालों को भी कभी नहीं। इस प्रकार दूरदर्शनी मनोरंजन छक कर हिंसा एंव भोंडेपन का प्रचार-प्रसार कर रहा है।                  फिल्मों के अतिरिक्त दूरदर्शन पर अनेक धारावाहिक भी दिखाए जाते हैं। खेद के साथ स्वीकारना पड़ता है कि उनका स्तर भी बहुत गिरा चुका है। आरंभ में दिखाए गए धारावाहिक अवश्य हमारी सामाजिकता का अनेक प्रकार से सही चित्रण करते रहे पर आज? आज वे भी फिल्मों की तरह या तो कपोल-कल्पित और सफे बेचने वाले होते हैं, या फिर उच्च वर्गों की गंदगी एंव अंडरवल्र्ड की कारगुजारियों का चित्रण कर हिंसा एंवा चारित्रिक भ्रष्टता का प्रसार करन ेवाले ही होते हैं। संस्कृति में अपमिश्रण करने का बहुत बड़े कारण और साधन बन रहे हैं या दूरदर्शनी धारावाहिक एंव इस प्रकार के कार्यक्रम। जिसे सहज मानवीय सहदयता, सुरूची संपन्नता, आनंदोत्साह का स्वाभाविक उद्रक कहा जाता या कहा जा सकता है। उस सबका अभाव खटकने वाली सीमा से भी कहीं आगे तक विद्यमान है।                  भारत जैसे विकास की राह पर अग्रसर देश का दूरदर्शन वास्तव मं प्रगति एंव विकास को यथातथ्य उजागर करने वाला होना चाहिए। वह बेकारी, महंगाई, अराजकता के विरुद्ध शंखनाद कर सकने की शिक्षा एंव शक्ति प्रदान करने वाला होना चाहिए। वह बेकारी, महंगाई, अराजकता के विरुद्ध शंखनाद कर सकने की शिक्षा एंव शक्ति प्रदान करने वाला होना चाहिए। उसका साक्षरता का प्रचारक-प्रसारक बनाया जाना जरूरी है। वह जन-मन में न ई चेतना, स्वावलंबन और स्वाभिमान को जागृत कर सके, ऐसे कार्यक्रम उस पर प्रसारित-प्रदर्शित करना आवश्यक है। दूरदर्शन ऐसा सशक्त माध्यम है कि उसके द्वारा हर प्रकार से अपनी सभ्यता-संस्कृति एंव अपनेपन को बढ़ावा दिया जा सकता है। भारतीयता का तूर्यनाद विश्व के कोने-कोने तक पहुंचा पाना संभव है। पर नहीं, हमारा दूरदर्शन, ऐसा कुछ भी न कर मात्र सपनों की सौदागरी कर रहा है। अपनी सभ्यता-संस्कृति तो क्या अपने भाषा-भूषा और देश को बेच खाना चाहता है?                     आज राष्ट्रभाषा को सर्वाधिक प्रदूषित करने वाला, उसक ेसाथ भद्दा मजाक करने वाला सबसे सशक्त माध्यम दूरदर्शन ही प्रमाणित हो रहा है। भाषा को इसने एक अपच-अपथ्य खिचड़ी बनाकर रख दिया है। ऐसे स्वप्रिल और लुभावने कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा है। यह दूरदर्शन कि छोटे बच्चे तक इसी से चिपके रहना चाहते हैं। उससे इनके स्वास्थ्य, शिक्षा एंव दृष्टि का सर्वनाश होता है, तो उस पर जो एक ही प्रोडक्ट के कई-कई विज्ञापन लुभावने ढंग से दिखाए जाते हैं, उनका समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, सोचने की बात है। क्या वास्तव में वे देश का सही दिशा में निर्माण करना चाहते हैं पर फिर भावी पीढिय़ों तक को खोखला बनाकर रख देना चाहते हैं?                  इस सत्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारतीय दूरदर्शन अपने वास्तविक उद्देश्य से कतई भ्रष्ट हो चुका है। आम जन के साथ, वास्तविक निर्माण के साथ उसका दूर का भी नाता नहीं रह गया। वह मात्र ऐसी दूधारू गाय है सरकार एंव उसके कर्ता-धर्ताओं के लिए कि जिससे दूध पाने की चिंता तो उन्हें है, पर उसके स्तनों से लिपटकर रस चूस रही जोंकों को हटाने की तरफ कभी ध्यान ही नहीं गया।

दूरदर्शन : शिक्षा का मनोरंजक माध्यम (Hindi Essay Writing)

दूरदर्शन : शिक्षा का मनोरंजक माध्यम प्रयोजन-सापेक्षता के इस आधुनिक युग में सभी कुछ परस्पर संबंद्ध और सापेक्ष है। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान ने मानव-जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने के लिए जो ढेर सारे अविष्कार किए हैं, उनमें से दूरदर्शन आज सर्वाधिक लोकप्रिय सर्वसुलभ अविष्कार है। इसके घर-घ्ज्ञक्र तक पहुंच जाने के कारण अब रेडियो और…
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दूरदर्शन (चैनल) (Hindi Essay Writing)

दूरदर्शन (चैनल) दूरदर्शन भारत का सरकारी दूरदर्शन प्रणाल(चैनल) है। यह भारत सरकार द्वारा नामित पर्षद् प्रसार भारती के अंतर्गत चलाया जाता है। दूरदर्शन के प्रसारण की शुरूआत भारत में दिल्ली सितंबर, 1959 को हुई। प्रसार-कक्ष तथा प्रेषित्रो की आधारभूत सेवाओं के लिहाज़ से यह विश्व का दूसरा सबसे विशाल प्रसारक है। हाल ही मे इसने अंकीय पार्थिव प्रेषित्रो(डिजिटल स्थलचर संचारी (Digital Terrestrial Transmitters)) सेवा शुरु की। दूरदर्शन के राष्‍ट्रीय नेटवर्क में 64 दूरदर्शन केन्‍द्र / निर्माण केन्‍द्र, 24 क्षेत्रीय समाचार एकक, 126 दूरदर्शन रखरखाव केन्द्र, 202 उच्‍च शक्ति ट्रांसमीटर, 828 लो पावर ट्रांसमीटर, 351 अल्‍पशक्ति ट्रांसमीटर, 18 ट्रांसपोंडर, 30 चैनल तथा डीटीएच सेवा भी शामिल है।प्रारंभदूरदर्शन की शुरुआत अत्यंत विनीत तरीके से, एक परीक्षण के तौर पर दिल्ली में 1959 में हुई थी। नियमित दैनिक प्रसारण की शुरुआत 1965 में आल इंडिया रेडियों के एक अंग के रूप में हुई थी। 1972 में सेवा मुम्बई (तत्कालीन बंबई) व अमृतसर तक विस्तारित की गई। 1975 तक यह सुविधा 7 शहरों मे शुरु हो गयी थी। राष्ट्रीय प्रसारण 1982, जिस वर्ष रंगीन दूरदर्शन का जन-जन से परिचय हुआ था, शुरु हुआ था।दूरदर्शन के विभिन्न चैनलराष्‍ट्रीय चैनल (5): डीडी 1, डीडी न्‍यूज़, डीडी भारती, डीडी स्‍पोर्ट्स और डीडी उर्दूक्षेत्रीय भाषाओं के उपग्रह चैनल (11): डीडी उत्तर पूर्व, डीडी बंगाली, डीडी गुजराती, डीडी कन्‍नड़, डीडी कश्‍मीर, डीडी मलयालम, डीडी सहयाद्रि, डीडी उडिया, डीडी पंजाबी, डीडी पोधीगई और डीडी सप्‍‍तगिरीक्षेत्रीय राज्‍य नेटवर्क (11): बिहार, झारखण्‍ड, छत्तीसगढ़, मध्‍य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखण्‍ड, हिमाचल प्रदेश, राजस्‍थान, मिजोरम और त्रिपुराअंतरराष्‍ट्रीय चैनल (1): डीडी इंडियाडीडी डायरेक्‍ट + : दूरदर्शन की फ्री टु एयर डीटीएच सेवा डीडी डायरेक्‍ट + का शुभारंभ प्रधानमंत्री द्वारा 16 दिसंबर, 2004 को किया गया। 33 टीवी चैनलों (दूरदर्शन / निजी) और 12 रेडियो (आकाशवाणी) चैनलों से शुरूआत हुई। इसकी सेवा क्षमता बढ़कर ५५ टीवी चैनल और 2१ रेडियो चैनल हो गई। अंडमान और निकोबार को छोड़कर इसके सिगनल पूरे भारत में एक रिसीवर प्रणाली से मिलते हैं। इस सेवा के ग्राहकों की संख्‍या १०० लाख से अधिक है।[क्षेत्रीय चैनल- डीडी मलयालम, डीडी सप्‍‍तगिरी (तेलुगु), डीडी बंगाली, डीडी चंदन (कन्‍नड़), डीडी उडिया, डीडी सहयाद्रि (मराठी), डीडी गुजराती, डीडी कश्‍मीर (कश्‍मीरी), डीडी पंजाबी, डीडी उत्तर पूर्व, डीडी पोधीगई (तमिल),दिन व दिन लोगों की अभिरूचि दूरदर्शन से प्रसारित कार्यक्रमों के प्रति कम होती जा रही है। यह चैनल पूर्णत राजनीतिक हो गया है, जिससे आम जनता के विचारों और मनोरंजन की अनदेखी की जाती है। अच्छे कार्यक्रमों का अभाव तथा गुणवत्ता की कमी से इस चैनल पर दर्शकों का टोटा लगा रहता है। अतः सरकार द्वारा चैनल की महत्ता को पुनः स्थापित करने हेतु दीर्घगामी उपाय ढूंढ़ना चाहिए।

समाचार-पत्र या अखबार (Hindi Essay Writing)

समाचार-पत्र या अखबार समाचार-पत्र का हमारे दैनिक जीवन में अत्यन्त महत्व है। विश्व का शायद ही ऐसा कोई प्रदेश हो, जहाँ के लोग समाचार पत्र का उपयोग न करते हों। सुबह होते ही लोगों को समाचार पत्र की सुध हो जाती है। इससे लोगों को विश्व की तमाम महत्वपूर्ण जानकारियां कुछ ही क्षणों में प्राप्त हो जाती है।               समाचार-पत्र का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। प्रथम ज्ञात समाचार पत्र 59 ई0 पू0 का ’’द रोमन एक्टा डिउरना’’ है। भारत में समाचार-पत्र की शुरूआत श्बंगाल गजटश् नामक पत्रिका के साथ हुई। हिन्दी में प्रथम दैनिक समाचार-पत्र ‘‘उदंत मार्तण्ड’’ का प्रकाशन 30 मई 1826 ई0 को हुआ। समाचार पत्र का वर्गीकरण तीन रूपों में किया जा सकता है। प्रथम, दैनिक समाचार-पत्र हैं, जो प्रतिदिन प्रकाशित होते हैं और प्रतिदिन होने वाली घटनाओं को प्रस्तुत करते हैं। द्वितीय, साप्ताहिक समाचार-पत्र हैं, जो पूरे सप्ताह में एक बार ही प्रकाशित होते हैं। ऐसे समाचार-पत्रों में पूरे सप्ताह भर के खबरों को संकलित कर प्रस्तुत किया जाता है। तृतीय, मासिक समाचार-पत्र हैं, जिससे हमें पूरे महीने होने वाली घटनाओं का पुनराभास हो जाता है। आज विश्व भर में हजारों दैनिक, साप्ताहिक और मासिक समाचार-पत्र उपलब्ध हैं, जो अनेक भाषाओं में छापे जाते हैं। भारत के प्रमुख समाचार पत्रों में अमर उजाला, दैनिक भास्कर, हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, आदि ;हिन्दीद्ध तथा द टाइम्स आॅफ इंडिया, द हिन्दु, द इंडियन एक्सप्रेस, डेक्कन हेराल्ड, आदि ;अंगे्रजीद्ध हैं।                समाचार-पत्र को समाज का दर्पण कहा जाता है, क्योंकि यह उन समस्त घटनाओं को जो प्रतिदिन घटती हैं यथासंभव वैसे ही हमारे सन्मुख प्रस्तुत करता है। इनमें देश-विदेश की घटनाओं, रोजगार, प्रचार, मनोरंजन, उदघोषणाओं आदि की लिखित जानकारियाॅं होती हैं। कुछ ही पलों में हम इनके अध्ययन से अपने आस-पास की खबरों के साथ-साथ, देश-विदेश के अनेक प्रांतों में क्या हो रहा है घर बैठे जान जाते हैं। हम इसके माध्यम से अपने संदेश, उदघोषणाएॅं, शिकायत आदि प्रचारित कर सरकार सहित आम जनता को सूचित कर सकते हैं। संपादकों तथा पत्रकारों के माध्यम से समाज में होने वाले आपराधिक कृत्यों, अपराधों आदि को रोकने में तथा जन-जागरण में मदद मिलती है। यह नौजवानों को नई दिशा तो प्रदान करता ही है, लेकिन साथ ही बच्चों की अभिरूचि पढ़ाई में लाता है। अनेक समाचार-पत्रों में बच्चों के लिए विशेष काॅलम होते हैं।                समाचार-पत्र का मूल्य पुस्तकों की तुलना में अत्यन्त कम होता है। अतः समाचार के हर तबके के लोगों तक इसकी पहुॅंच है। इनके नियमित अध्ययन से हमें पुस्तकों से कहीं अधिक रोचक और ज्ञानवर्द्धक जानकारियाॅं प्राप्त हो जाती हैं। हालाॅंकि समाचार-पत्रों में अनेक गैर-जरूरी सूचनाएॅं छाप दी जाती हैं, जिससे लोग दिग्भ्रमित हो जाते हैं। अतः ऐसे खबरों तथा सूचनाओं के प्रकाशन से पूर्व संपादक को इनके दुष्प्रभावों का आॅंकलन कर लेना चाहिए। समाचार-पत्र केवल व्यवसाय का साधन नहीं है, यह तो समाज को उसकी वास्तिविक छवि दिखाता है। आज के पत्रकार तथा संपादक व्यावसायिकता के जमाने में खबरों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने लगे हैं। अतः इनके प्रकाशक को खबरों की विश्वसनियता और महत्वत्ता का आॅंकलन जरूर करना चाहिए, तभी यह समाज के लिए वरदान साबित होगी।

दहेज प्रथा (Hindi Essay Writing)

दहेज प्रथा  दहेज.प्रथा का उदभव कब और कहां हुआ यह कह पाना असंभव है। विश्व के विभिन्न सभ्यताओं में दहेज लेने और देने के पुख्ता प्रमाण मिलते हैं। इससे यह तो स्पष्ट होता है कि दहेज का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। अब हम यह जान लें कि दहेज कि वास्तविक परिभाषा क्या है दहेज के अंतर्गत वे सारे सामग्रियां अथवा रकम आते हैं जो वर पक्ष को वधू पक्ष के माध्यम से विवाह के प्रक्रिया के दौरान अथवा विवाह के पश्चात प्राप्त होते हैं। इन वस्तुओं की मांग या तो वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष से की जाती है अथवा वे स्वेच्छा से इसे प्रदान करते हैं।                  हालांकि दहेज का पूरे विश्व में किसी न किसी रूप में बोलबाला है। अपितु भारत में यह तो एक भयंकर बीमारी के रूप में मौजूद है। देश का शायद ही ऐसा कोर्इ भाग बचा हो जहां के लोग इस बीमारी से ग्रसित न हों। आए दिन दहेज लेने.देने के सैकड़ों मामले दिखार्इ देते हैं। जिन व्यकितयों की बेटियां होती हैंए वे अल्प काल से ही दहेज के लिए रकम संग्रह में लीन हो जाते हैं। इस वजह से समाज का एक बड़ा तबका बेटियों को मनहूस समझता है और प्रतिवर्श देश में ही लाखों बेटियों को लिंग परीक्षण कर समय से पूर्व ही नष्ट कर दिया जाता है। विवाह के पश्चात लड़कियों को दहेज के लिए प्रताडि़त करने के सैकड़ों मामले हमारे समाज का हिस्सा बनती जा रही है। हालांकि सरकार द्वारा दहेज विरोधी अनेक सख्त कानून और सजा का प्रावधान हैए अपितु दहेज के मामले घटने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं। देश भर में दहेज के लोभी राक्षसों द्वारा जलाया जा रहा हैए मारा जा रहा है और प्रताडि़त किया जा रहा है। दहेज लोभी लोग मानवीयता भूलकर अमानवीय कृत्यों से परहेज नहीं करते।                 आज हमारी सरकारों द्वारा लड़कियों के उत्थान व विकास के लिए अनेक योजनाएं चला रही हैंए जिनमें शिक्षाए रोजगार सहित विवाहोपरांत मदद भी शामिल है। यह सब इसलिए ताकि बेटियों के परिवारों को बेटियां बोझ न लगें और लड़कियां आत्मनिर्भर हो सकें। दहेज लेना और देना तो कानूनन अपराध है ही लेकिन साथ ही इससे संबंधित किसी प्रकार की शिकायत पर तुरंत कार्रवार्इ की जाती है। अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं सांस्कृतिक कार्यक्रमोंए चलचित्रों आदि के माध्यम से समाज में दहेज के प्रति जागरूकता का आहवान किया जा रहा है। इन सब के बावजूद हमारे देश से दहेज को मिटाना तभी संभव होगा जब आज कि युवा पीढ़ी यह प्रण करें कि वे दहेज से परहेज करेंगे। युवाओं का यह प्रयास भविष्य में दहेज को नेस्ताबूत कर सकता है। इससे समाज एक बार फिर खुशहाल हो सकेगा और भारत अपना गौरव हासिल कर सकेगा।

सरस्वती पूजा (Hindi Essay Writing)

सरस्वती पूजा सरस्वती पूजा प्रतिवर्ष बसंत पंचमी के दिन मनाया जाता है। यह पूजा माँ सरस्वती जिन्हें विद्या की देवी माना जाता है के सम्मान में आयोजित किया जाता है। भारत के कुछ क्षेत्रों में इसे बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। माँ सरस्वती को विद्यादायिनी एवं हंसवाहिनी कहा जाता है। सरस्वती पूजा के…
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