Category: Hindi Nibandh Lekhan हिंदी निबंध लेखन

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भारतीय शिक्षा नीति (Hindi Essay Writing)

भारतीय शिक्षा नीति बहुत बार सोचा, शिक्षाविदों का सोचा हुआ, पढ़ा व मनन किया, शिखा आयोगों का अध्ययन किया और उसके कटु आलोचकों की बातों को जाना, परंतु मुझे लगा कि वे सब सोच की कलाओं और सिद्धांतों में डूबे रहे, उन्होंने शिक्षा के वास्तविक संकट को नहीं पहचाना और यदि पहचाना भी हो जो…
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युवा स्वरोजगार योजना (Hindi Essay Writing)

युवा स्वरोजगार योजना आज बेरोजगारी बढ़ती हुई महंगाई की तरह एक भयानक स्वस्या है। जीवन-स्तर लगभग तय हो चुका है। लोकतं9 ने आम आदमी को स्वप्नों से संबंध कियाहै, उनमें परिकल्पनाओं का स्वर्ग महाकाया और जीने की महती अकांक्षांए पैदा की है। उसके लिए रोजगार चाहिए। नई पीढ़ी तो स्वप्नों की पीढ़ी है जो बहुत…
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बचत (Hindi Essay Writing)

बचत ‘बात कीजिए और सुंदर और सुरक्षित भविष्य बनाइए।’ यह नारा आज के युग का है यों तो मनुष्य शुरू से ही बचत करता आ रहा है। लेकिन पूर्व काल में की गई बचत से आज की बचत के अर्थ में बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया है। भूखा या अधपेट रहकर बचत नहीं करनी है,…
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जीएसटी पर निबंध (Hindi Essay Writing)

जीएसटी पर निबंध भारत बिजली की गति के साथ प्रगति की ओर बढ़ रहा है, और इस गति को कायम रखने के लिए भारत सरकार को बढ़े बढे निर्णय करने पढ़ेंगे| विमुद्रीकरण (डेमोनेटिज़ेशन) के बाद, जीएसटी विधेयक भारत में सबसे बढ़ा सुधार है। जीएसटी विधेयक के अनुसार, सभी जटिल और कई अप्रत्यक्ष करों को एक…
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विवाह एक सामाजिक संस्था (Hindi Essay Writing)

विवाह एक सामाजिक संस्था विवाह एक सामाजिक व्यवस्था है। स्वस्थ तथा भागतिक समाज की स्थापना में उसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है। वह समाज का महोत्सव है। विवाह बिना समाज की कल्पना बिखर जाएगी और समाज पशुवत हो जाएगा। समाज मानव जाति के हजारों वर्षों के अनवरत प्रयत्नों, संघर्षों, उपलब्धियों, अविष्कारों आदि का परिणाम है। वह…
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रेगिस्तान की यात्रा (Hindi Essay Writing)

रेगिस्तान की यात्रा भारत में हिमालय भी है और रेगिस्तान भी, रेता के टीले भी भी हैं रेगिस्तान में। पानी को तरसता है रेगिस्तान। नदियों हैं नितांत अभा है वहां। मीलों तक जनहित प्रदेश वर्षों से सोया हुआ है। दिन में तपता रेगिस्तान रात में अत्यंत मधुर हो जाता है तपे हुए तीबे रात को…
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अनेकता में एकता (Hindi Essay Writing)

अनेकता में एकता  भारत की संस्कृति विविधारूप है। भारत एक विशाल देश है। यहां अनेक धर्म और जातियों के लोग रहते हैं। सनातन धर्म, वैदिक धर्म, बौद्ध धर्म, और जैन धर्म, ईसाई, इस्लाम आदि अने धर्म हैं। और हूण, तुर्क, पठान, पुर्तगाली, फे्रंच, मुगल, अंग्रेज, डच, पारसी अनेक जाति के निवासी हैं। वहां मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, मठ, चर्च आदि पूजा-स्थल है। इसी प्रकार यहां विविध पोशाकें पहनने वाले लोग रहते हैं। वे अलग-अलग भाषाएं-बोलियां बोलते हैं। यहां आस्तिक भी। सब अलग-अलग प्रकार के उत्सव, पर्व, त्यौहार आदि अलग-अलग महीनों में मनाते हैं। कभी रथ यात्रांए निकलती है तो कभी शोभायात्रा का मनमोहक दृश्य सामने आता है। कभी परिक्रमा का धूम मचाती है तो कभी ईद की बधाईयां दी जाती हैं। यहां दीपों का पर्व भी है और बैशाखी व हुड़दंग का महोत्सव भी इस प्रकार यहां का प्रत्येक दिन एक त्यौहार है या पर्व अथवा उत्सव।                इस सबसे यह सोचा जा सकता है कि यहां एकता कैसे है? यहां तो धर्म, रीति, पद्धति, पहनावा, बोली, रहन-सहन आदि सबमें भिन्नता है। यह सही है परंतु यह इससे ज्यादा सही है कि इस विविधता के बाद यहां एकता है, परस्पर प्रेम और त्याग की भावना है। जैसे अनेक वाद्य मिलकर अत्यंत मधुर वातावरण बना देते हैं ठीक उसी प्रकार यहां अनेकता एकता में मिलकर प्रयाग के आनंद की अनुभूति कराती है।                यह इस धरती की माटी की अपनी विशेषता है कि आक्रामक उसे जीतने आता है और कू्ररता, घृणा, और आतंक से भरा होता है, कत्लेआम कराता है, फिर भी वह बहुत जल्दी अपनी धरती को भूलकर हमेशा-हमेशा के लिए यहां का हो जाता है। जैसे ऋर्षि आश्रम में पहुंच डाकू, शैतान, शेर, सर्प आदि अपने दु:स्वभाव को भूलकर संत स्वभाव धारय कर लेते हैं। उसी प्रकार आक्रामक कौंमें भी अपने पैने दांतों और नापाक इरादों को छोडक़र इस मिट्टी को अपनी मां मानती रही हैं।                वास्तव में इस धरती ने संस्कृति की ऊंचाईयों को जिया है। तप से यह धरती-पावन हुई है। इस धरती ने मां की ममता को अपने से व्यक्त होने दिया। यहां स्नेहहीन को स्नेह मिला है, घृणा को प्यार मिला है, दस्यु को सन्तता और कू्ररता को दया व सहानुभूति। इस कारण यहां की संस्कृति ओर सभ्यता अन्यतम ऊंचाईयों को अपने से सूर्योदय सी व्यक्त कर सकती है।                यहां की धरती हृदय है। यहां का समीर मन है। यहां का वातावरण मनुज समर्पित है। यहां का जीवन उसकी सुगंध है। यहां हर मौसम में उत्सव, पर्व और त्यौहार है। यही कारण है कि यहां का निर्धन से निर्धन चैन से जीता है और झोपड़ी में रहकर जीवन का सुगंध से भरपूर रहता है। सच्चा सुख क्या है, यहां का जन-जन यह जानता है। त्याग उसके लिए गौरव की बात है और अपनाना चाहे वह शत्रु ही क्यों न हो, विशालता व महानता की।                भारत करुणा, दया, सहानुभूति, प्रेम, अहिंसा और त्याग का देश है और इसकी संस्कृति इस बात की साक्षी है। संस्कृति ने अपने को त्यौहार पर्व और उत्सव के रूप में प्रकट किया है। यह देश अपने में महोत्सव मन को जाता है।               संस्कृति किसी देश का हृदय व मस्तिष्क दोनों ही होती है। जनमानस प्रसन्नता, आहाद और आनंद से जीवन-यापन कर सके, जीवन का यही लक्ष्य है इस लक्ष्य को प्राप्त कराने का उत्तरदायित्व उस देश की संस्कृति पर है। यह बात भारतीय संस्कृति से स्वंय सिद्ध हो जाती है कि यहां का जन-जीवन पर्वों के उल्लास, उमंग से प्रसन्न रहता है।               रक्षा-बंधन, बुद्ध पूर्णिमा, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, क्रिसमस, दशहरा, दीपावली, शिवरात्रि, नौ-दुर्गा, बसंत पंचमी, होली, जयंतियां, परिक्रमांए, मंदिर-दर्शन, तीर्थ यात्रांए, कुंभ, अद्र्धकुंभ, भैया दूज आदि अनेक उत्सव और त्यौहार हैं जिनसे समाज में ममता और आनंद की अनुभूति होती है और जीवन में एक उल्लास भरा परिवर्तन परिलक्षित होता है जन-मन एक हो जाता है।               हरऋतु में उत्सव है, त्यौहार है। उनके पीछे जीवन-दर्शन है, जीने का नवीन दृष्टिकोण है। जीवन एक मेला है, यहा बात यहां के जीवन को देखने से अनुभूत होती है। रानी से यहां के जीवन में उदातर और आदर की भावना है।               उत्सव-त्यौहारों और पर्वों और इस संस्कृति को कुप्रथाओं, ढोंग, अंधविश्वासों, ने गलत दिशा में मोड़ दिया है। आडंबर को इसी कारण प्रधानता दी जाने लगी है और वास्तविकता को नकार दिया है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने व्यक्ति को अर्थकेंद्रित करने व्यक्तिवादी बना दिया है। फलत: वह आम सामूहिक उत्सवों को छोडक़र पांच-सितारा संस्कृति में भाग लेने लगा है। इस कारण धीरे-धीरे अब संस्कृति अपना जीवन-अर्थ पूर्व की  भांति प्रकट नहीं कर पा रही है।              फिर भी भारतीय संस्कृति अध्यात्मवादी है अत: उसका स्त्रोत कभी सूख नहीं पाता है। वह निरंतर अलख जमाती रहती है और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आनंद से जोड़ती रहती है। उसकी चेष्टा मानव-जीवन को नव-से-नव ज्योति, बल, संगीत, स्नेह, उल्लास और उत्साह से भरने की है। यही इस संस्कृति की सबसे सशक्त विशेषता है। वस्तुतया पर्व, उत्सव और त्यौहार ही इस संस्कृति की अन्त: अभिव्यक्ति है।

देश प्रेम (Hindi Essay Writing)

देश प्रेम विश्व में ऐसा तो कोई अभागा ही होगा जिसे अपने देश से प्यार न हो। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी अपने देश या घर से अधिक समय तक दूर नहीं रह पाते। सुबह-सवेरे पक्षी अपने घोसले से जाने कितनी दूर तक उड़ जाते हैं दाना-दुनका चुगने के लिए पर शाम ढलते ही चहचहाता…
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पर्वतों का राजा : हिमालय (Hindi Essay Writing)

पर्वतों का राजा : हिमालय ‘मेरे नगपति मेरे विशाल साकार दिव्य गौरव विराट पौरुष के पुंजीभूत ज्वाल मेरी जननी के हिमकिरीट मेरे भारत के दिव्य भाल मेरे नगपति मेरे विशाल।’ उपर्युक्त पंक्तियों में राष्ट्रकवि दिनकर जी ने हिमालय की वंदना की है। हिमालय भारत का गौरत है। भारत प्रकृति नदि की क्रीड़ास्थली है और पर्वतराज…
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स्वंय पर विश्वास (Hindi Essay Writing)

स्वंय पर विश्वास संस्कूत में कहा गया है कि मत ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है ‘मन एंव मनुष्याणां कारण बंधा न मोक्ष्यों।’ मन की स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। मन ही व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से बांधता है, मन ही उसे अन बंधनों से छुटकारा दिलाता है। मन ही मन उसे अनेक…
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