नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य हमारे संविधान में निहित हैं। अब प्रश्न है, संविधान क्या है? प्रत्येक देश का एक संविधान होता है। यह संविधान उस देश का कानून होता है।इसलिए उसे उस देश का आधारभूत कानून कहा जाता है। यहां यह जान लेना जरूश्री है कि सरकार के तीन अंग होते हैं। पहला अंग ‘व्यवस्थापिका’ है। इसका काम कानून बनाना है। दूसरा अंग ‘कार्यपालिका’ है। यह कानून की बात न मानने वालों के लिए दंड का निर्धारण करता है। ‘व्यवस्थापिका’ का एक नाम और है, इसे ‘विधायिका’ भी कहते हैं। सरकार के अंगों में इसका सबसे अधिक महत्व है। इसका मुख्य कार्य है-कानून बनाना। अच्छे कानून पर ही संपूर्ण सरकार की सफलता निर्भर करती है। यदि कानून जनहित में नहीं है तो? तो साफ है कि ‘कार्यपालिका’ और ‘न्यायपालिका’ अपने काम ठीक ढंग से नहीं कर सकती। इस प्रकार सरकार पूरी तरह से अपंग ‘विकलांग’ हो सकती है। ‘कार्यपालिका’ सरकार का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह व्यवस्थापिका द्वारा बनाए हुए कानूनों को लागू करती है। फिर इन कानूनों के आधार पर ही सरकार के कार्य-कलाप चलते हैं। इसके अंतर्गत सरकार के वे सब अधिकारी और कर्मचारी शामिल हैं, जो व्यवस्थापिका और न्यायपालिका के सदस्य नहीं होते। इससे स्पष्ट हो जाता है कि भारत में ‘राष्ट्रपति’ से लेकर ‘चपरासी’ तक सब कार्यपालिका के सदस्य है। आम लोगों को इसके बारे में पार्यप्त ज्ञान नहीं है। इस कारण वे इसका एक सीमित अर्थ लगाते हैं। न्यायपालिका का लोकतंत्र में विशेष महत्व है। यह सभी जानते हैं कि लोकतंत्र के आधार ‘स्वतंत्रता’ और ‘समानता’ के सिद्धांत हैं। फिर इन दोनों सिद्धांतों की रक्षा की बात उठती है। इसके लिए न्याय-व्यवस्था अपने कानूनों को लेकर हर समय तैयार रहती है। यही कारण है कि न्यायपालिका की कार्य-प्रणाली पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। इस प्रकार हम जानते हैं कि हमारे संविधान में लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए सब प्रकार से नियम-कानूनों की व्यवस्था की गई है।