प्रस्तावना- आधुनिक युग में लाटरी को व्यवसाय का रूप दिया गया है तथा जुए को वैधानिक जामा पहना दिया गया है। लाटरी मुख्यतः जुए का ही रूप है। यह एक अनैतिक एवं बहुत बुरा धन्धा है। प्रतिदिन का धन्धा- प्राचीन काल में लाटरी तीन महीने, दो महीने, प्रत्येक महीने या सप्ताह में केवल एक दिन निकलती थी, परन्तु अब तो जिस प्रकार सट्टे एवं मटके के नम्बर रोजाना निकलते हैं उसी तरह आज लाटरी भी प्रतिदिन निकल रही है। जब हम लाॅटरी की दुकानों पर जाते हैं तो वहां पर उपस्थित भीड़ को देखकर ऐसा लगता है कि आजकल यह घन्धा बहुत अच्छा चल रहा हैं। राज्य सरकार द्वारा प्रयास- राज्य सरकार ने इस धन्धे को बन्द करने के लिए अपनी तरफ से हर सम्भव प्रयास किये, परन्तु आज तक यह ज्ञात नहीं हुआ कि न्यायालय इसे किस आधार पर व्यवसाय मानकर जनता को लाटरी बेचने की अनुमति प्रदान कर रहा हैघ् लाॅटरी हानिकारक – यह बात कुछ हद तक उचित है कि लाटरी के व्यवासय से अनेक व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त हुआ है, परन्तु हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि इस व्यवसाय से कई लोगों के घर भी बर्बाद या तबाह होते देखे गये हैं। लाॅटरी खरीदकर प्रत्येक व्यक्ति अमीर बनना चाहता है जिससे उनमें अकर्मण्यता एवं आलस्य की भावना उत्पन होती है। आज समाज का निर्धन वर्ग किसी भी तरह लाटरी खरीदने की कोशिश करता है। यदि कभी उसका नम्बर निकल आता है तो वह उस पैसे को शराब एवं अन्य वेकार की चीजों में खर्च कर देता है और िफर निर्धन बनकर रोता है। टगले दिन फिर लाटरी खरीदने पहुुंच जाता है। लाटरी की आदत भी जुए तथा शराब की लत की तरह ही है। जिस प्रकार व्यक्ति रोज जुए खेलकर व शराब पीकर अपने घरों में झगडा़ कर, घरों कोे नष्ट करते हैं उसी प्रकार लाटरी के द्वारा भी अनेक घर तबाह हो रहे हैं। जुआ और सट्टे का खेल ऐसा है जिसे लोग चोरी -छिपे खेलते हैं, परन्तु लाटरी के खेल को तो लोग खुलेआम सबके सामने खेलते हैं। इस खेल से प्रभावित होकर स्कूल एवं काॅलेज के छात्र भी घर से पैसे चुराकर लाटरी का टिकट खरीदते हैं, देश और समाज के लिए बहुत हानिकारक है। हर्ष की बात है कि कुछ वर्ष यह धंधा चलकर सरकारों द्वारा बन्द करा दिया गया है। पर कुछ राज्य सरकारें आय के साधन के रूप में इसे शुरू करने के लिए सोच रही हैं। उन्हें इस पर पुनः विचार करना चाहिए।