विद्यालय अर्थात्+आलय यानी विद्या का घर। विद्यालय में सभी जाति, धर्म और वर्ग के बच्चे बढ़ने आते हैं। विद्यालय शासकीय और अशासकीय दोनों प्रकार के होते हैं। मेरे नगर में कई विद्यालय हैं। मैं सुभाष माध्यमिक विद्यालय में पढ़ता हूं। यह नगर के मध्य नई सड़क पर स्थित है।मेरे विद्यालय का भवन नविनिर्मित है अत: भव्य और सर्वसुविधाओं से युक्त है। आगे बगीचा है जिसकी देखभाल हम सभी करते हैं, क्योंकि हमारे पाठ्ययक्रम में बागवानी भी है। 10 बड़े कमरे, 2 हॉल हैं। एक हॉल में प्रार्थना होती है व दूसरे हॉल में सभाएं एवं अन्य कार्यक्रम होते हैं। पानी पीने की समुचित व्यवस्था है। पीछे बड़ा खेल का मैदान है, जहां खेल व्यायाम होते हैं। हमारा विद्यालय परिवार बहुत बड़ा है। लगभग 400 विद्यार्थी यहां पढ़ते हैं। लगभग 20 अध्यापक/ अध्यापिकाएं और एक प्रधानाध्यापक तथा 2 चपरासी हैं। प्रधानाध्यापक शाला कार्य संचालन करते हैं। सभी गुरुजन विद्वान, परिश्रमी एवं छात्रों को हर समय मार्गदर्शन देते हैं।हमारे प्रधानाध्यापकजी का अनुशासन बड़ा कठोर है। शाला के नियमों का पालन करना सभी के लिए अनिवार्य है। वे स्वयं शाला में समय पूर्व आते हैं और विसर्जन के पश्चात घर जाते हैं। सभी गुरुजन लगनपूर्वक अध्यापन करवाते हैं इसलिए नगर के विद्यालयों में हमारे विद्यालय का परीक्षाफल सर्वश्रेष्ठ रहता है। बच्चे शाला से पलायन नहीं करते, क्योंकि प्रत्येक छात्र की कठिनाई को समझ उसे दूर करने का प्रयत्न किया जाता है।हमारे विद्यालय में अध्ययन के अतिरिक्त अन्य कार्यक्रम भी होते हैं। हर शनिवार को बालसभा होती है। गांधी जयंती, तुलसी जयंती, हिन्दी दिवस, बाल दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि मनाए जाते हैं। बाल फिल्म एवं प्रकृति निरीक्षण हेतु ले जाया जाता है। खेलकूद, साहित्यिक प्रतियोगिताएं होती हैं। विजेताओं को शाला के वार्षिक उत्सव में पुरस्कार दिए जाते हैं। पास के गांव में ले जाकर श्रमदान करवाया जाता है।इस प्रकार मेरी शाला में छात्रों के सर्वांगीण विकास हेतु सतत प्रयत्न किए जाते हैं। छात्र पुस्तकालय में अच्छीव-अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करते हैं और लाभ लेते हैं। मेरा विद्यालय नगर में सर्वश्रेष्ठ विद्यालय है। मुझे उस पर गर्व है।