भ्रष्टाचार (Hindi Essay Writing)

Created with Sketch.

भ्रष्टाचार


संसार में जब एक बच्चा जन्म लेता है तो उसकी आत्मा इतनी अधिक सात्विक, उसके विचार इतने कोमल होते हैं और उनकी बुद्धि इतनी निर्मल होती है कि अगर उसे भगवान कहा जाये तो भी कुछ गलत नहीं होता है। इसी वजह से ही तो कुछ लोग बच्चों को बाल-गोपाल भी कहते हैं।जिस तरह से वह सभी के संपर्क में आता है तो उसके विचारों और बुद्धि में भी परिवर्तन होने लगता है। इसकी वजह से वह समाज में जो कुछ भी देखता है, सुनता है और अनुभव करता है उसी की तरह ढलता चला जाता है। एक दिन वह बालक या तो उच्च स्थान पर पहुंच जाता है या तो दुराचारी बनकर समाज पर एक कलंक बन जाता है। किसी भी देश के विकास के रास्ते में उस देश की समस्याएं बहुत ही बड़ी बाधाएं होती हैं। इन सभी समस्याओं में सबसे प्रमुख समस्या है भ्रष्टाचार की समस्या। जिस राष्ट्र या समाज में भ्रष्टाचार का दीमक लग जाता है वह समाज रूपी वृक्ष अंदर से बिलकुल खाली हो जाता है और उस समाज व राष्ट्र का भविष्य अंधकार से घिर जाता है।इस क्षेत्र में भारत बहुत ही दुर्भाग्यशाली है क्योंकि उस पर यह समस्या पूरी तरह से छाई हुई है। अगर उचित समय पर इसका समाधान नहीं ढूंढा गया तो इसके बहुत ही भयंकर परिणाम निकलेंगे। वर्तमान समय में भ्रष्टाचार हमारे देश में पूरी तरह से फैल चुका है। भारत देश में आज के समय लगभग सभी प्रकार की आईटी कंपनियां, बड़े कार्यालय, अच्छी अर्थव्यवस्था होने के बाद भी आज भारत पूरी तरह से विकसित होने की दौड़ में बहुत पीछे है। इसका सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार ही है।भ्रष्टाचार का अर्थ : भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ होता है – आचार से अलग या भ्रष्ट होना। अत: यह भी कहा जाता है कि समाज स्वीकृत आचार संहिता की अवहेलना करके दूसरों को कष्ट पहुँचाकर अपने निजी स्वार्थों और इच्छाओं को पूरा करना ही भ्रष्टाचार कहलाता है। अगर दूसरे शब्दों में कहा जाये तो भ्रष्टाचार वह निंदनीय आचरण होता है जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य अपने कर्तव्य को भूलकर अनुचित रूप से लाभ प्राप्त करने का प्रयास करने लगता है।भाई-भतीजावाद, बेरोजगारी, गरीबी इसके दुष्परिणाम हैं जो लोगों को भ्रष्टाचार की वजह से भोगने पड़ते हैं। जो मनुष्य का दुराचार होता है वहीं पर यह अपना व्यापक रूप धारण करके भ्रष्टाचार की जगह को ग्रहण कर लेता है। कुछ लोग भ्रष्टाचार को बहुत ही संकुचित अर्थों में समझाते हैं।अगर मैं अपने विचारों को व्यक्त करूं तो भ्रष्टाचार वह बुराई होती है जो समाज को अंदर-ही-अंदर खोखला करती रहती है। वास्तव में भ्रष्टाचार की स्थिति भी एक राक्षस की तरह होती है जिसमें काला बाजार उनका दूषित ह्रदय होता है और मिलावट होता है उनका पेट। रिश्वत भ्रष्टाचार के हाथ हैं और व्यवहार और अनादर इसके पैर हैं, सिफारिश इसकी जीभ है तो शोषण इसके कठोर दांत हैं। यह राक्षस बेईमानी की आँखों से देखता है और कुनबापरस्ती कानों से सभी को सुनता है और अन्याय की नाक से सूँघता है। जब भ्रष्टाचार रूपी राक्षस अपना रूप धारण करके निकलता है तो समाज रूपी देवता भी घबरा जाता है।भ्रष्टाचार के मूल कारण : हर बड़ी समस्या के पीछे कोई-न-कोई बड़ा कारण अवश्य होता है। इसी तरह से भ्रष्टाचार के पीछे भी बहुत से कारण हैं। वस्तुत: जहाँ पर सुख और एश्वर्य पनपता है वहीं पर भ्रष्टाचार भी पनपता है। भ्रष्टाचार के मूल में मानव का कुंठित अहंभाव, स्वार्थपरता, भौतिकता के प्रति आकर्षण, कुकर्म और अर्थ की प्राप्ति का लालच छुपा हुआ होता है।आज के मनुष्य की कभी न समाप्त होने वाली इच्छाएं भी भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण होती हैं। इसके आलावा अपनों का पक्ष लेना भी भ्रष्टाचार का एक प्रमुख कारण है। किसी कवि ने भी कहा है कि परिजनों में पक्षपात तो होता ही है और यही पक्षपात भ्रष्टाचार का मूल कारण बनता है। भ्रष्टाचार को उत्पन्न करने का कारण एक प्रकार से मनुष्य खुद होता है।जब अंग्रेज भारत से गये थे तो भारत में भ्रष्टाचार की बहुत कम मात्रा थी। अंग्रेज भारत में कुछ परिक्षण छोड़ गये थे लेकिन भारत को इस बात पर पूरा विश्वास था कि भारत के स्वतंत्र होते ही वे उनका पूरी तरह से नाश कर देंगे लेकिन इसका बिलकुल उल्टा हुआ था। भ्रष्टाचार कम होने की जगह पर और अधिक बढ़ जाता है। भारत के वासी और भारत की सरकार दोनों ने ही स्वतंत्रता के असली अर्थ को नहीं समझा हैं।भ्रष्टाचार की व्यापकता एवं प्रभाव : भ्रष्टाचार का प्रभाव और क्षेत्र बहुत ही व्यापक है। आज के समय में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ पर भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ों को न फैला रखा हो। भ्रष्टाचार की गिरफ्त में व्यक्ति, मनुष्य, समाज, राष्ट्र यहाँ तक की अंतर्राष्ट्रीय भी फंसे हुए हैं। भ्रष्टाचार कण-कण और घट-घट में श्री राम की तरह समाया हुआ है।ऐसा लगता है जैसे इसके बिना संसार में कोई भी काम नहीं किया जा सकता है। राजनीतिक क्षेत्र तो पूरी तरह से भ्रष्टाचार का घर ही बन चुका है। आज के समय में चाहे विधायक हो या संसद हो सभी बाजार में रखी वस्तुओं की तरह बिक रहे हैं। आज के समय में भ्रष्टाचार के बल पर ही सरकारे बनाई और गिराई जाती हैं।आज के समय में तो पुजारी भी भक्तों की स्थिति को देखकर ही फूल डालता है। किसी भी धार्मिक स्थल पर जाकर देखा जा सकता है कि जो लोग धर्मात्मा कहलाते हैं वही लोग भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकियाँ लगाते हैं। भ्रष्टाचार ने आर्थिक क्षेत्र में तो कमाल ही कर दिया है। आज के समाज में करोड़ों की रिश्वत लेने वाला व्यक्ति सीना तान कर चलता है, अरबों का घोटाला करने वाला नेता समाज में सम्मानीय बना रहता है।चुरहट कांड, बोफोर्स कांड, मंदिर कांड, मंडल कांड और चारा कांड ये सभी भ्रष्टाचार के ही भाई बंधु होते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। योग्य छात्र को ऊँची कक्षा में दाखिला नहीं मिल पाता है लेकिन अयोग्य छात्र भ्रष्टाचार का सहारा लेकर उपर तक पहुंच जाते हैं लेकिन योग्य छात्र ऐसे ही रह जाते हैं।जब मनुष्य स्वार्थ में अँधा हो जाता है तो वह अभिमान के नशे में झुमने लगता है, वह कामवासना से वशीभूत होकर उचित और अनुचित में फर्क करना छोड़ देता है, वह धर्म कर्म को छोड़कर नास्तिकता और अकर्मण्यता के संकीर्ण पथ पर आरूढ़ हो जाता है। करुणा और सहानुभूति की भावना को त्यागकर निर्दय और कठोर बन जाता है।वह धीरे-धीरे ऐसी स्थिति में फंस जाता है जिससे निकलना उसके लिए असंभव हो जाता है। भ्रष्टाचार की वजह से सिर्फ मनुष्य की ही नहीं बल्कि राष्ट्र की भी हानि होती है। भ्रष्टाचार कुछ इस तरह से भारत में दीमक की तरह फैल चुका है कि इसके प्रभाव बता पाना बहुत मुश्किल है।भले ही कोई ढोंगी बाबा हो या कोई रोड, ईमारत या पुल बनाने वाला कॉन्ट्रेक्टर का काम हो हर जगह भ्रष्टाचार दिख ही जाता है। भारत की बहुत सी जगहों पर धर्म संप्रदाय, आस्था और विश्वास के नाम पर लोगों का शोषण किया जा रहा है। सरकारी दफ्तरों में पैसे या घूस न देने पर काम पूरे नहीं होते हैं।दुकानों में मिलावट का सामान मिल रहा है और कई कंपनियों का सामान खाने के लायक न होने पर भी भ्रष्टाचार के कारण दुकानों पर मिल रहा है। कुछ पैसों के लिए बड़े-बड़े कर्मचारी और नेता गलत चीजों को पास कर देते हैं जिसका प्रभाव अक्सर आम आदमी पर पड़ता है।भ्रष्टाचार कम इसलिए नहीं हो रहा है क्योंकि भ्रष्टाचार हर किसी की आदत बन चुका है। आज के समय में भ्रष्टाचार होने पर लोगों को लगता है कि यह तो आम बात है। जब तक भारत देश से भ्रष्टाचार मुक्त नहीं होगा तब तक हम भारत को एक विकसित देश नहीं बना सकते हैं। आज के समय में भ्रष्टाचार की वजह से सरकार द्वारा शुरू किए गए सार्वजनिक काम पूरे नहीं हो पाते हैं।भ्रष्टाचार के निवारण के उपाय : भ्रष्टाचार को रोकना बहुत ही मुश्किल होता है क्योंकि जब-जब इसे रोकने के लिए कदम उठाये जाते हैं तब-तब कुछ दिनों तक व्यवस्था ठीक प्रकार से चलती है लेकिन बाद में फिर से व्यवस्था में भ्रष्टाचार आ जाता है। भ्रष्टाचार एक संक्रामक रोग की तरह होता है। यह एक व्यक्ति से शुरू होता है और पूरे समाज में फैल जाता है। अगर भ्रष्टाचार को रोकना है तो फिर से समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना करनी होगी। जब तक हमारे जीवन में नैतिकता नहीं आएगी तब तक हमारा भौतिकवादी दृष्टिकोण नहीं बदल सकता है। जब तक हमारे जीवन में नैतिकता नहीं आएगी तब तक हमारे जीवन की सारी बातें केवल कल्पना बनकर ही रह जाएँगी।इसी वजह से हमें हर व्यक्ति के अंदर नैतिकता के लिए सम्मान और श्रद्धा को उत्पन्न करना होगा। समाज से भ्रष्टाचार को कम करने के लिए ईमानदार लोगों को प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि उन्हें देखकर दूसरे लोग भी उनकी होड़ करने लगें हैं और ईमानदारी के लिए लोगों के मनों में आस्था जागने लगे।भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सख्ती के कानूनों और दंडों की व्यवस्था की जानी चाहिए। आज के समय में दंड व्यवस्था इतनी कमजोर हो गयी है कि अगर कोई व्यक्ति रिश्वत लेता पकड़ा जाता है तो दंड से बचने के लिए रिश्वत देकर बच जाता है। ऐसी स्थिति में भी भ्रष्टाचार को बहुत बढ़ावा मिलता है।इसके साथ ही किसी भी नए मंत्री की नियुक्ति के समय चल और अचल संपत्ति का पूरी तरह से ब्योरा करना चाहिए। सरकार को निष्पक्ष समिति का उपयोग करना चाहिए ताकि वे बड़े-बड़े लोगों पर लगे आरोपों की जाँच कर सकें। लगभग सभी केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों को 7 वें वेतन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बहुत हद तक अच्छा वेतन मिल रहा है।अभी भी राज्य सरकार के कर्मचारियों को ठीक तरह से वेतन नहीं मिल पाया है। लेकिन वेतन ठीक प्रकार से मिलने के बाद भी भ्रष्टाचार अब दफ्तरों में एक आदत बन चुकी है जिसकी वजह से भ्रष्टाचार बढ़ता चला जाता है। इसलिए सोच समझकर और सही समय पर वेतन बढ़ाया जाना चाहिए जिससे कर्मचारियों के मन में भ्रष्टाचार की भावना उत्पन्न न हो सके।बहुत सारे सरकारी दफ्तरों में जरूरत से बहुत कम कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं जिस वजह से काम करने वाले कर्मचारियों पर भार बढ़ जाता है। इस तरह से दो तरह की असुविधाएं उत्पन्न होती हैं पहले आम आदमी का काम सही समय पर पूर्ण नहीं हो पाता है और दूसरा काम को जल्दी पूर्ण कराने के लिए लोग भ्रष्टाचार का रास्ता अपनाते हैं। इस स्थिति में जो लोग घूस देते हैं उनका काम सबसे पहले हो जाता है और जो लोग घूस नहीं देते हैं उनका काम पूरा होने में साल भर का समय लग जाता है। सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए हर विभाग में भ्रष्टाचार के विरुद्ध काम करने वाले आयोग बनाने चाहिए जो ऐसे अनैतिक कार्यों पर ध्यान रख सकें। आज के समय में सभी कार्यालयों में कैमरे लगाए जाते हैं जिससे कार्यालय में निगरानी रखी जा सके।उपसंहार : भ्रष्टाचार को खत्म करना केवल सरकार का ही नहीं बल्कि हम सब का कर्तव्य बनता है। आज के समय हम सभी को एक साथ मिलकर भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए प्रयास करने चाहियें। हर मनुष्य को सिर्फ अपने स्वार्थों तक सिमित नहीं रहना चाहिए बल्कि दूसरे लोगों के सुख को अपना सिद्धांत बनाकर चलना चाहिए तभी हम कुछ हद तक भ्रष्टाचार को कम कर सकेंगे।यह बात स्पष्ट हैं कि जब तक भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म नहीं किया जायेगा तब तक राष्ट्र उन्नति नहीं कर सकता है। भ्रष्टाचार की वजह से ही आज के समय में अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब और अधिक गरीब होता जा रहा है। भ्रष्टाचार कभी भी देश की स्वतंत्रता के लिए खतरा बन सकता है। जब भारत से भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा तो भारत फिर से सोने की चिड़िया कहलाने लगेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This is a free online math calculator together with a variety of other free math calculatorsMaths calculators
+