मानव एक विवेकशील प्राणी है. वह विचार और भावों में संतुलन रखकर समूची मानवता के कल्याण के लिए कार्य कर सकने में सक्षम है|उसका अस्तित्व ही उसकी विवेकशीलता पर निर्भर करता है| आंतकवाद मनुष्य के इसी विवेक का हरण कर लेता है| उसे विवेक्शुन्य कर देता है और वह अपनी मानवता से हाथ झाड़कर हिंसक और क्रूर कर्मों में लिप्त हो जाता है| पशु के स्तर पर उतार जाता है| आंतकवाद चाहे जिस देश में पनपे, वह स्मूची मानवता के लिए अभिशाप है| यदि मनुष्य को मनुष्य बने रहना है तो इस आंतकवाद को समाप्त करना ही होगा| समस्या हीन जीवन, जीवन नहीं मरण है और उन समस्याओं के नीराकरण की ओर प्रवृत्त होना अस्लीजीवन है| आंतकवादी कार्यवाइयों से आज तक समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है| यदि इस प्रकार की सोच पैदा हो जाए तो आंतकवाद जन्म ही ना ले, किंतु क्या इस प्रकार की सोच कभी जन्म लेगी?