किसी देश की मानसिकता, इच्छा-आकांक्षाओं, तत्कालीन और दीर्घकालीन आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही उसका संविधान बनाया जाता है। वह संविधान वहां की राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक और परिचायक हुआ करता है।भारत के संविधान के संबंध में भी यही सब कुछसहज भाव से कहा एंव स्वीकारा जा सकता है। 15 अगस्त सन 1947 तक क्योंकि भारत ब्रिटिश सत्ता के अधीन था, अत: उसका अपना कोई स्वतंत्र संविधान नहीं था। ब्रिटिश पार्लियामेंट अपनी साम्राज्यवादी इच्छाओं के अनुरूप अपने देश में बैठकर जो संविधान बना देती, वहीं यहां पर लागू हो जाता। वह यहां के जन-मानस की इच्छा-आकांक्षांए और आवश्यकतांए कहां तक पूरी कर पाता है, इसकी चिंता कतई नहीं की जाती थी। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद हमारे पहले निर्वाचित संसद ने जो नया संविधान प्रसिद्ध संविधानविद डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में बनाया, उसी का मूल स्वरूप आज भारत में लागू है। यद्यपित समय और स्थितियों के अनुरूप अब तक उसमें कई सुधार, संशोधन और परिवद्र्धत किए जा चुके हैं, समय-समय पर अब भी किए जाते हैं, फिर भी कुल मिलाकर उसका मूल ढांचा अभी तक सुरक्षित बना हुआ है। सन, 1950 से लागू भारतीय संविधान में भारत को एक जन-कल्याणकारी राज्य या गणतंत्र घोषित किया गया है। इसमें देश के हर भूभाग पर रहने वाले हर धर्म, जाति और वर्ग के लोगों को समानता के आधार पर अपने-अपने विश्वासों के अनुसार रहने, प्रगति और विकास करने का समान अधिकार प्रदान किया गया है। सभी देशी धर्मों, सभ्यता-संस्कृतियों और जातियों-अनुजातियों की समान रूप से रक्षा और विकास की गारंटी भी दी गई है। इस दृष्टि से भारतीय संविधान को हम विश्व का एक जनवाद का प्रबल समर्थक प्रमुख संविधान कह सकते हैं। भारतीय संविधान की ओर भी अनेक आधारभूत विशेषतांए गिनाई जा सकती हैं। यहां प्रशासन चलाने के लिए हर पांच वर्ष के बाद जन-प्रतिनिधियों का व्यक्ति एंव दलीय आधार पर चुनाव होता है। हर बालिक व्यक्ति को मतदान का स्पष्ट अधिकार प्राप्त है। चुनावों में बहुमत प्राप्त दल का नेता ही केंद्रीय एंव प्रांतीय मंत्रिमंडल का प्रमुख अर्थात प्रधान या मुख्यमंत्री हुआ करता है। संसद और विधानसभाओं के सदस्य मिलकरभारत के प्रथम नागरिक या सर्वोच्च अधिकारी राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। हर स्थिति और वर्ग का व्यक्ति बालिक होने पर मतदान का अधिकारी तो हो ही जाता है, वह उच्च से उच्चतम पद का दावेदार भी बन सकता है। इस प्रकार संविधान के स्तर पर यहां सभी को समान अधिकार प्राप्त है। भारतीय संविधान में विदेश-नीतियों के बारे में भी स्पष्ट उल्लेख है। उसके अनुसार हमारा देश किसी भी शक्ति-गुट का सदस्य न रह, गुट-निरपेक्षता के सिद्धांत और नीति का पालन करेगा। यही इस स्तर पर भी हो रहा है। सहअस्तित्व, सहयोग, प्रेम और भाईचारा, अहिंसा आदि अन्य संवैधानिक बुनियादी विशेषतांए हैं कि जिन पर भारत आरंभ से ही दृढ़तापूर्वक चल रहा है। न केवल पड़ोसी देशों बल्कि विश्व के सभी देशों के साथ समानता के आधार पर व्यवहार करना भी यहां की घोषित नीति है। भारतीय संविधान हर नागरिक को हर स्तर पर सुरक्षा की गारंटी देता है। यह अधिकार देता है कि मर्यादा में रहते हुए कोई व्यक्ति अपनी रोजी-रोटी और प्रगति के लिए किसी भी प्रकार का रोजगार एंव काम-धंधा कर सकता है। इस प्रकार समता, समानता, समन्वयवाद जैसी प्रवतियों को हम भारतीय संविधान की बुनियाद कह सकते हैं। संविधान भारतीय जनता को यह अधिकार भी प्रदान करता है कि यदि स्थानीय केंद्रीय प्रशासन जन-अकांक्षाएं पूरी न कर पाए तो मतदान के द्वारा उसे बदल दिया जाए। इस प्रकार हर दृष्टि से, हर स्तर पर भारतीय संविधान की मूल भावना और प्रतिष्ठापना को सहज मानवापयोगी एंव लचीला कह सकते हैं। यदि उसकी सभी धाराओं-उपधाराओं आदि का दृढ़-संकल्प एंव प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ पालन किया जाए, केवल वोटों और कुर्सी की सुरक्षा पर ध्यान न दिया जाए तो कोई कारण नहीं कि जन-कल्याण न हो पाए। भारतीय संविधान में तरह-तरह की सामाजिक बुराइयों को दूर करने का भी पूर्ण प्रावधान है। समाज के हर व्यक्ति को शिक्षित एंव उन्नत बनाने की व्यवस्था है। सभी के लिए अपने विश्वासों-मान्यताओं के अनुसार जीवन जीने की भावना और मर्यादा अंतर्निहित है। किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार से मुक्त-जीनव और समाज के विनिर्माण की प्रबल व्यवस्था और चुनौती है। कहा जा सकता है कि लोक-कल्याणकारी और जनतंत्री व्यवस्था को संचालित कर पाने के सभी प्रकार के प्रावधान विद्यमान हैं। फिर भी आज यहां मुख्य रूप से हर क्षण संवेधानिक संकट ही खड़े रहते हैं। जन-आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं हो पा रही है। भ्रष्टाचार बढ़ रहे हैं। काले-धंधे और बाजार गरम हैं। आखिर क्यों? इसलिए कि संविधान की धाराओ-उपधाराओं को लागू करने की व्यवस्था जिनके हाथों में हैं, उनमें संकल्प और दृढ़ इच्छा शक्ति का अभाव है। जनतंत्र का दूसरा पाया अर्थात विपक्ष कटा हुआ और दुर्बल है। इस प्रकार की कमियों को दूर करके ही भारतीय संविधान की पवित्रता और आश्वासनों की रक्षा संभव हो सकती है। ऐसा करना बहुत आवश्यक लगने लगा है।