आज का वैज्ञानिक मानव धरती के सारे रहस्य पा लेने के बाद, उसकी सीमा से ऊब अब अंतरिक्ष में विचरण करने लगा है। हमारा देश भी इस दिशा में पीछे नहीं। विकासशील देश होते हुए भी अंतरिक्ष-विज्ञान के क्षेत्र में कुछ अदभुत करिश्में दिखाकर भारत ने विश्व के समुन्नत देशों को भी कई बार चकित-विस्मित कर दिया है। रूस और अमेरिका के बाद भारत ही इस क्षेत्र में विशेष चमत्कार दिखा सका है। यह अवश्यह है कि ये चमत्कार दिखाने के लिए भारत को उपर्युक्त दोनों देशों से थोड़ी-बहुत सहायता अवश्य लेनी पड़ी है, फिर भी यह सत्य है कि अंतरिक्ष-विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों ने अपनी अदभुत प्रतिभा और कार्य-क्षमता का परिचय देकर इस देश की वैज्ञानिक परंपराओं को विकास का नया आयाम प्रदान किया है। भारत की अंतरिक्ष-यात्रा की कहानी अधिक पुरानी नहीं। वह सन, 1975 से आरंभ होती है। सोवियत भूमि से भारत ने जब उपग्रह आर्यभट्ट को अंतरिक्ष की कक्ष्शा में सफलतापूर्वक पहुंचाया, तो सारे संसार ने उनके वैज्ञानिकों को प्रतिभा का लोहा तत्काल मान लिया। इसके बाद यह क्रम निरंतर आगे बढ़ता गया। 1981 में भारत ने फ्रांस की भूमि में ‘एप्पल’ नाम उपग्रह तथा अमेरिका से इनसेट-1 ए. छोड़ा। यद्यपि ये बाद के उपग्रह योजना के अनुरूप सफल न हो सके, पर यह तो विश्व के देशों के सामने प्रमाणित हो ही गया कि भारत इस क्षेत्र में अब वह सभी कुछ कर पाने में समर्थ है, जो समुन्नत एंव विकसित देश कर रहे एंव कर सकते हैं। 1981 में एप्पल के बाद छोड़ा गया ‘भास्कर’ द्वितीय नाक उपग्रह आज भी अंतरिक्ष में सक्रिय रहकर योजनाबद्ध रूप से वैज्ञानिक उपयोग की सूचनांए भेज रहा है। इसके बाद वन 1983 में ‘रोहिणी’ उपग्रहों के अंतरिक्ष-प्रक्षेपण का कार्यक्रम आरंभ हुआ। अभी तक इस श्रंखला में कई उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजे जा चूके हैं। इससे अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की निरंतर प्रगति एंव सफलता का सहज अनुमान प्रत्येक व्यक्ति स्वंय ही लगा सकता है। कुछ असफलतांए प्रेरणा देकर आगे बढ़ाने वाली ही प्रमाणित हुई हैं, पीछे हटने वाली कदापि नहीं। अंतरिक्ष-विज्ञान के क्षेत्र में भारत के कदम केवल मानव-रहित उपग्रह-प्रक्षेपण तक ही नहीं रुके रहे, बल्कि इससे कहीं आगे बढ़ चुके हैं। भारत-रूस संयुक्त सहयोग से भारत के स्क्वॉड्रन लीडर राकेश शर्मा सन 1984 के आरंभ में अंतरिक्ष यात्रा भी कर आए हैं। इसके लिए उन्हें अपने एक साथी विंग कमांडर रवीश मल्होत्रा के साथ सोबियत रूस में गहन प्रशिक्षण लेना पड़ा। रूसी भाषा तो सीखनी ही पड़ी, अंतरिक्ष्ज्ञ की विभिन्न, विषम और परस्पर विपरीत परिस्थितियों में रह पाने का कठोर अभ्यास भी करना पउ़ा। कठोर अभ्यास, योगाभ्यास और कठिन परीक्षा के बाद उपर्युक्त दोनों से राकेश शर्मा को अंतरिक्ष उड़ान के योज्य समझा गया और वे अपनी यह पहली यात्रा सफलतापूर्वक करके, भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री होने का गौरव प्राप्त कर सके। अंतरिक्ष में विभिन्न प्रकार के प्रयोग करते हुए उनके साथ संपर्क साधकर जब प्रधानमंत्री ने पूछा- ‘अंतरिक्ष से भारत कैसा लगा या दिखाई पड़ रहा है?’ तो स्क्वॉड्रन लीडर राकेश शर्मा ने सटीक उत्तर दिया ‘सारे जहां से अच्छा।’ यह उत्तर प्रत्येक भारतीय जन की राष्ट्रीय मानसिकता का प्रतीक और परिचायक कहा जा सकता है। कई तरह की मिसाइलों का निर्माण इसके बाद ही संभव हो पाया। इस अंतरिक्ष यात्रा का लाभ उठाकर भारत अब पूर्णतया निजी तौर पर, निजी संसाधनों से भविष्य में और अंतरिक्ष यात्राओं का आयोजन कर सकेगा। ऐसी आशा ही नहीं बल्कि पूरी तैयारी है। इस यात्रा से जो लाभ हुए हैं, भारतीय अंतरिक्षश् यात्री ने जो विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण ओर परीक्षण किए हैं, उनसे रेडियो, टेलीविजन, दूरसंचार और प्राकृतिक दुर्घटनाओं की रोक-थाम की दिशा में विशेष सहायता मिलेगी। भावी योजनाओं के लिए भी इस अनुभव से लाभ उठाया जाएगा। वास्तव में यह एक महान वैज्ञानिक उपलब्धि तो है ही, अंतरिक्ष यात्री के साथ-साथ हम सभी का एक महान एंव अभूतवूर्व अनुभव भी है। दूरदर्शन पर जब राकेश शर्मा को उपग्रह में कार्य करते या भारतीयों के साथ संपर्क साधते हुए दिखाया जाता, तो सहसा रोमांच हो उठता था। इसी प्रकार उनकी उड़ान औरवापसी की प्रक्रियांए जो दूरदर्शन पर दिखाई गई, वे भी अदभुत, रोमांचक, ज्ञानवद्र्धक और मनोरंजक थीं। हमें आशा करनी चाहिए कि अंतरिक्ष में भारत के कदम निरंतर इसी प्रकार बढ़ते रहेंगे। एक दिन वह पूर्ण स्वावलंबी बनकर उन्नत देशों की समानता अवश्य पा लेगा। इस दिशा में निरंतर बढ़ रहे प्रयोगात्मक कदम बड़े ही विश्वसनीय एंव उत्साहवद्र्धक रेखांकित किए जा सकते हैं। हमारे वैज्ञानिक अब संपूर्णत: अपने ही संसाधनों एंव तकनीक से इस दिशा में सक्रिय हैं, यह और भी प्रसन्नता का विषय है।