बेरोजगारी (Hindi Essay Writing)

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बेरोजगारी


भूखा मनुष्य क्या पाप नहीं करता । धन से क्षीण मनुष्य दयाहीन हो जाता है । उसे कर्तव्य और अकर्तव्य का विवेक नहीं होता । यह सच की कहा गया है । आज हमारा भारत देश बेकारी के भीषणतम दौर से गुजर रहा है ।

हमारे देश में पढ़े-लिखे नौजवानों की कमी नहीं है । उनकी तुलना में नौकरी के अवसरों में कमी हुई है । कहते हैं ना, जब व्यक्ति को काम नहीं मिलेगा, तो उसका दिमाग खाली रहेगा । खाली दिमाग में अच्छे-बुरे विचार आते रहते हैं । जब उसके पास खाने को नहीं रहेगा, तो वह चोरी, डकैती, लूटमार, हत्या, आतंकी गतिविधियों में संलग्न होकर अपना विवेक खो बैठेगा ।

ऐसे में वह कई उल्टे-सीधे काम करने की ओर प्रवृत्त होगा । हमारे देश में इसी वजह से आतंकवादी पैदा हो रहे हैं । उनकी इस बेकारी का फायदा उठाकर धर्मो के ठेकेदार उन्हें कभी देशभक्ति, तो कभी धर्म का वास्ता देकर उनसे देशद्रोही गतिविधियां करवाते हैं ।

कइयों ने तो इसे स्वीकारा भी है कि इन कामों में संलग्न होना उनके पैसे कमाने की मजबूरी है । आज का युवा हताश व निराश है । उसकी समझ में नहीं आता कि किस तरह उसे रोजगार मिले । कहीं भी उसे उसका भविष्य सुनहरा नजर नहीं आता ।

 बेरोजगारी का अर्थ:


बेरोजगारी का अर्थ है: व्यक्ति रोजगार हेतु सभी योग्यताएं पूरी करता है, पर उसे काम नहीं मिलता ।

 बेरोजगारी के प्रकार:


1. शिक्षित बेरोजगारी ।

2. अशिक्षित बेरोजगारी ।

3. शहरी बेरोजगारी ।

4. ग्रामीण बेरोजगारी ।

5. अर्द्ध बेरोजगारी ।

8. खुली बेरोजगारी ।

7. घर्षणात्मक बेरोजगारी ।

8. मौसमी बेरोजगारी ।

9. संरचनात्मक बेरोजगारी ।

10. छिपी बेरोजगारी ।

4. बेरोजगारी के कारण:

(क) बढ़ती हुई जनसंख्या: बढ़ती हुई जनसंख्या बेकारी का प्रमुख कारक है । हमारे देश में बढ़ती हुई जनसंख्या की तुलना में रोजगार के अवसरों में वृद्धि नहीं हुई । जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों का बहुत अधिक दोहन हो चुका है । ये संसाधन अब हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं ।

हमारी अधिकांश जनसंख्या चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित, पुत्र की लालसा में सन्तान उत्पन्न करती जाती है । परिणामस्वरूप, वह उसका खर्च वहन नहीं कर पाती । सरकार भी क्या करे कितनों को सरकारी नौकरी दे फिर अधिकांश लोग केवल सरकारी नौकरी के भरोसे ही बैठे रहना पसन्द करते हैं ।

(ख) रोजगार के अवसरों में कमी:  आजकल सरकार द्वारा सभी क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में कमी कर दी गयी है । नौकरियां तो सीमित हैं, उसकी तुलना में बेकार अधिक हैं । प्राकृतिक संसाधन के दोहन के फलस्वरूप उद्योग-धन्धों में भी रोजगार के अवसरों में कमी हुई है ।

(ग) सरकारी नौकरियों में कटौती:  सरकार द्वारा हर क्षेत्र में सरकारी नौकरियों में कटौती कर दी गयी है । सरकारी क्षेत्रों में नौकरियां तो केवल सीमित लोगों के लिए ही हैं ।

(घ) कुटीर उद्योग-धन्धों का अभाव:  गांधीजी कहा करते थे कि ब्यक्ति अगर अपने घर में कुटीर उद्योग करेगा, तो बहुत कुछ बेकारी को कम कर लिया जा सकेगा । आजकल बड़े पैमाने के उद्योगों में आधुनिक मशीनों का उपयोग होता है । मशीनें कम समय में अच्छा व मितव्ययी काम करती हैं ।

ऐसे में लघु व कुटीर उद्योग-धन्धों का बना माल, जो कि महंगा होता है, उसमें अधिक समय भी लगता है, भला वह मशीनों का मुकाबला किस तरह कर पायेगा ? इसी कारण लघु व कुटीर उद्योग-धन्धे पतन की अवस्था को अग्रसर हो गये हैं । इसलिए इसमें जो व्यक्ति पहले काम करते थे । जब उनके माल की गारण्टी ही नहीं रही, तो वे इनको चलायें कैसे ? वे अब बेकार हो गये हैं ।

(ड.) मिथ्या स्वाभिमान:  मिथ्या स्वाभिमान भी हमारे देश के लोगों को छोटा काम करने से रोकता है । कई युवा बेकार घूमकर अपना अमूल्य समय बर्बाद करते है । ऐसा नहीं कि वे कोई छोटा व्यवसाय या छोटी नौकरी ही कर ले । उन्हें बेकार रहना मंजूर है, पर छोटी नौकरी करना नहीं ।

(च) काम के प्रति अरुचि:  व्यक्ति को अगर अपनी रुचि का रोजगार नहीं मिलता, तो कुछ दिनों बाद वह उसे छोड़ देता है ।

(छ) दोषपूर्ण शिक्षा नीति:  पण्डित जवाहरलाल नेहरूजी ने कहा था कि ”प्रतिवर्ष नौ लाख पढ़े-लिखे लोग नौकरी के लिए तैयार हो जाते हैं, जबकि हमारैं पास खाली नौकरियां शतांश के लिए भी नहीं हैं ।” हमें बी॰ए॰ नहीं चाहिए, वैज्ञानिक और टेस्नीकल चाहिए ।

सच बात तो यह है कि हम जो शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, वह हमें इस योग्य नहीं बनाती कि हम उसका भविष्य में उपयोग कर रोजगार प्राप्त कर सकें । आज हमारे देश के हर क्षेत्र में अंग्रेजी अनिवार्य है । ऐसे में वह युवा, जिसने अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा प्राप्त नहीं की है, अंग्रेजी की अनिवार्यता के कारण इन क्षेत्रों में आवेदन करने से वंचित रह जाता है ।

(ज) सामाजिक व धार्मिक मनोवृत्ति:  हमारे देश की सामाजिक व धार्मिक मान्यताएं मनुष्य को अकर्मण्य बनाती हैं । अधिकतर कामचोर व आलसी व्यक्ति भीख मिलने के कारण अपना पेशा ही भीख मांगना बना लेते हैं । हाथ-पैर सही सलामत होते हुए भी वे काम नहीं करना  चाहते । हमें स्टेशन, बस स्टैण्ड, घरों, चौराहों पर हट्टे-कट्टे नौजवान साधु का मेष धरकर भीख मांगते मिल जायेंगे ।

बेकारी से हानि:


बढ़ती हुई बेकारी के कारण हमारे देश का युवा पथभ्रष्ट होकर कई अनैतिक कार्यों, दुर्व्यसनों हत्या लूटपाट, आतंकी गतिविधियों में संलग्न हो गया है । यदि सरकार ने इस समस्या का शीघ्र ही समाधान नहीं किया, तो देश में आपराधिक तत्त्वों का अधिक-से-अधिक समावेश होगा, जिस पर नियन्त्रण करना मुश्किल होगा ।

 बेकारी को दूर करने के उपाय:


(क) शिक्षा पद्धति में सुधार:  लार्ड मैकाले की क्लर्क पैदा करने वाली दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली की जगह ऐसी शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए, जिसमें तकनीकी, स्वावलम्बन व्यावहारिकता का समावेश हो । गांधीजी के अनुसार ”शिक्षा व्यक्ति को अधिक-से-अधिक रोजगार के योग्य बनाये, उसमें ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए ।  शिक्षा तो बेरोजगारी के विरुद्ध एक प्रकार का बीमा होना चाहिए ।” शिक्षा में व्यावहारिकता का समावेश होने पर व्यक्ति अपने जीवन में कुछ-न-कुछ कर पायेगा ।

(ख) उद्योग-धन्धों का विकास:  अंग्रेजों द्वारा जो हमारे यहां के उद्योग-धन्धे नष्ट किये गये हैं, जैसे-सूत कातना, कपड़े बुनना, शहद तैयार करना, गलीचों का निर्माण, अगरबत्ती निर्माण, खिलौनों, चौंक निर्माण आदि हेतु सरकार को आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित करना चाहिए ।

(ग) जनसंख्या वृद्धि दर पर रोक:  सरकार द्वारा कड़े नियम बनाने चाहिए, जैसे-दो बच्चों वाले व्यक्ति को रोजगार में प्राथमिकता, ज्यादा बच्चे रखने वालों के लिए दण्ड की व्यवस्था, विवाह की आयु को बढ़ाना, परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू कर इसके बारे में लोगों को शिक्षित करना, जिससे जनसंख्या वृद्धि पर काफी हद तक रोक सम्भव है ।

(घ) अकर्मण्यता का अन्त:  सरकार तथा समाजसेवी संस्थाओं को चाहिए कि ”अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे न काज, दास मलूका कह गये सबके दाता राम ।” वाला दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्तियों को, जो भीख मांगते हैं, उन्हें पकड़कर जेल की हवा खिलायें । जो व्यक्ति धार्मिकता की आड़ लेकर अपना पेट भरते हैं, उन्हें भी सजा होनी चाहिए ।

(ड.) ग्राम विकास तथा कृषि सुधार:  हमारे देश की अधिकांश जनता गांवों में ही निवास करती है । गांवों में सिंचाई का समुचित प्रबन्ध नहीं होता । कुटीर व ग्रामीण उद्योग-धन्धे भी नष्ट होने की कगार पर हैं । इसी कारण ग्रामीण शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं । सरकार को चाहिए कि वे ग्रामीण जनता को ग्राम विकास हेतु आर्थिक सहायता प्रदान करे ।

कृषि सुधार हेतु ग्रामीण जनता को उन्नत बीज, खाद, सही तरीके से क्रम से फसल लेने के तरीकों, सिंचाई के साधनों आदि के बारे में जानकारी देकर उत्पादन बढ़ाने हेतु प्रेरित करे । उनकी उपज की सही कीमत देकर उसके क्रय-विक्रय की व्यवस्था करे ।

बेरोजगारी दूर करने हेतु सरकारी प्रयास:


चतुर्थ, पंचम एवं छठी पंचवर्षीय योजनाओं में अनेक उपायों की व्यवस्था की गयी  है । सातवीं योजना में कृषि क्षेत्र के महत्त्व को स्वीकार किया गया है । इस योजना मैं समन्दिंत ग्रामीण विकास कार्यक्रम पर 3,316 करोड़ रुपये खर्च किये गये, जिससे 1.82 करोड़ परिवारों को सहायता प्रदान की गयी । आठवीं योजना में समन्वित विकास कार्यक्रम के लिए 3,800 करोड़ का प्रावधान किया गया, किन्तु करोड़ रुपये खर्च हुए और लगभग 108 लाख परिवारों को लाभ हुआ ।

जवाहर रोजगार योजना:  अब ग्राम समृद्धि योजना के नाम से जाना जायेगा और इसके लिए निर्धारित धन को ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र की स्थिति के अनुसार उपयोग करेगी । ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों के लिए अब तक चल रही सभी स्वरोजगार योजना में विलय कर दिया गया है । नेहरू रोजगार योजना, प्रधानमन्त्री रोजगार योजना, रोजगार निश्चय योजना भी इस दिशा में कदम है ।

प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार पाने का अधिकार है । सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह सभी को रोजगार उपलब्ध कराये । आज सिर्फ भारत ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व बेरोजगारों की बढ़ती संख्या से परेशान है । अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार 3 अरब कार्यशील लोगों में से करोड़ लोग पूर्ण सम्पूर्ण बेरोजगार हैं, जिसमें भारत में 1060 लाख व्यक्ति बेकार हैं ।

सरकार द्वारा नौकरी में कटौती से पहले जिन कर्मचारियों की छंटनी की जा रही है, उनके लिए अन्य क्षेत्रों में रोजगार की व्यवस्था करनी चाहिए । सरकार द्वारा स्वरोजगार हेतु उचित मार्गदर्शक, आर्थिक मदद, ग्राम पंचायत स्तर पर करनी चाहिए । लघु-कुटीर उद्योगों हेतु प्रेरित कर महात्मा गांधी के ग्राम स्वरोजगार के स्वप्न को साकार करना चाहिए ।

बेरोजगारी की समस्या


आज विश्व के लगभग हर एक देश के सामने कुछ समस्याएँ विद्यमान हैं । उन्हीं समस्याओं में से एक है: बेराजगारी की समस्या । कहीं कम तो कहीं ज्यादा यह समस्या समूचे विश्व में विद्यमान है । भारत जैसे विकासशील देश के सामने तो यह भयंकर रूप में उपस्थित है ।

कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाला यह देश आज जिन ग भीर समस्याओं से जूझं रहा है, उनमे बेकारी की समस्या प्रमुख है लोगों के पास हाथ हैं काम करने की इच्छा है लेकिन काम नहीं है । राजनेताओं के पास लंबे-चौड़े वायदे हैं, भविष्य के लिए आकर्षक योजनाएँ हैं परन्तु ये सब जनता को लुभाने के लिए है जिनका प्रयोग चुनाव जीतने या जनता को भ्रमित करने के लिए किया जाता है ।

बेकारी या बेरोजगारी की समस्या के कई रूप हैं लोगों की अपनी योग्यता के अनुरूप काम न मिलना, लोगों को अंशकालिक कार्य मिलना, एक ही कार्य में आवश्यकता से अधिक लोगों का कार्यरत रहना, मौसमी काम मिलना-ये सब बेरोजगारी के रूप हैं ।

आज देश के नगरों में रोजगार कार्यालयों में करोड़ों बेकार युवक-युवतियों के नाम दर्ज हैं । यह सख्या लगातार बढ़ती जा रही है । बेकारी की समस्या के अनेक कारण है जिसमें जनसख्या का तेज गति से बढ़ना सर्वप्रमुख है ।

आज में जनसंख्या जिस गति से बढ़ती जा रही है उसे देखकर तो लगता है कि बेकारी की समस्या कभी सुलझ ही न पाएगी क्योंकि जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में रोजगार प्राप्त करके अवसरों का विकास नहीं किया जा सकता । एक बड़ी औद्योगिक इकाई को खड़ा करने में कई वर्ष लग जाते हैं तब तक उसमें कार्य करने को इच्छुक बेरोजकारी की संख्या कई गुना बढ़ जाती है ।

बेकारी की समस्या का दूसरा कारण है: देश की कमजोर अर्थव्यवस्था और विकास के साधनों का अभाव । भारत एक विकासशील देश है । विश्व को उन्नत देशों की तुलना में यह निर्धन देश है । धन की कमी के कारण रोजगार के अवसरों पर त्वरित गति से विकास नहीं किया जा सकता ।

भारत की अधिकांश परियोजनाएँ शीघ्र पूरी हो सकें । अनेक बार ये योजनाएँ अधूरी ही रह जाती हैं । सरकारी नीतियाँ भी बेरोजगारी को बढ़ाने में पीछे नहीं है । स्वाधीनता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद भी हम उन्नत राष्ट्रों की श्रेणी में स्थान नहीं पा सके ।

हमारे पड़ोसी चीन को हमसे बाद स्वतंत्रता मिली मगर विकास की दौड़ में हमसे बहुत आगे निकल गया और हम कछुए की गति से चलते रहे । गांधीजी ने एक बार कहा था । हमारे देश को अधिक उत्पादन नहीं अधिक हाथों द्वारा उत्पादन करना चाहिए ।

उनका आश्य था कि बड़ी-बड़ी स्वचालित मशीनों से उत्पादन भले ही बढ़ जाए अधिक हाथों को काम नहीं मिल पाता । इसलिए देश के कुटीर उद्योग कम पूँजी से छोटे स्थान में कम लोगों द्वारा शुरू किए जा सकते हैं ।

आज देश के बड़े बड़े कारखानों में अनेक लघु उद्योगों को नष्ट कर दिया है तथ उनसे कार्यरत असंख्य लोग बेरोजगार हो गए हैं । कर्नाटक तथा आंध्र तथा तमिलनाडू में अनेक बुनकरों ने बेरोजगारी से तंग आकर आत्महत्या तक की है ।

फिर सरकार ने विदेशी कंपनियों को भारत में अपने उद्योग लगाने की छूट देकर बची-खुची कसर भी पूरी कर दी है । जो थोड़े बहुत स्वदेशी लघु-उद्योग बचे थे वे भी तबाह हो गए । शिक्षित युवक में बाबूगिरी करने की भावना भी बेराजगारी को बढ़ाने में सहायक हुई है ।

ये युवक हाथ से काम करने में अपना अपमान समझते हैं और सफेदपोश बने रहकर दफ्तरों में थोड़े वेतन पर कार्य करना पसन्द करते हैं । आज की शिक्षा भी रोजगारोन्मूखी नहीं है इसलिए प्रतिवर्ष लाखों शिक्षित बेरोजगार बढ़ रहे हैं । बेरोजगारी की समस्या अपराधी वृत्ति को जन्म देती है ।

कहानी है: बुभुक्षित किं न करोति पाप अर्थात् भूखा व्यक्ति अपराध नहीं करता । आज देश में जिस प्रकार की अनुशासनहीनता हिंसा तस्करी, लूटपाट, चोरी, डाका जैसी असामाजिक बुराइयाँ व्याप्त है उनके पीछे कहीं न कहीं बेरोजगारी का हाथ आवश्यक है । छात्रों में असंतोष कर तो सर्वप्रमुख कारण बेरोजगारी ही है ।

यद्यपि भारत जैसे विकासशील देश में बढ़ती बेरोजगारी की समस्या को हल करना सरल नहीं है तथापि जनसंख्या पर रोक लगाकर, कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास करके शिक्षा को रोजगारोन्मूख बनाकर पड़े लिखे युवकों को कृषि या हाथ से काम करने को प्रोत्साहित करके विदेशी कंपनियों पर अंकुश लगाकर इस समस्या समाधान में कुछ सफलता मिल सकती है ।

 बेकारी की समस्या


बेकारी आज सारे विश्व की समस्या बनी हुई है । माता-पिता बेकार सन्तानों से दुःखी हैं और युवा-पगड़ी भी बेकारी के कारण पथभ्रष्ट हो रही है । वास्तव में बेकारी की समस्या के एक-दो नहीं बल्कि अनेक कारण हैं । जनसंख्या वृद्धि बेकारी का प्रमुख कारण माना जा सकता है ।

जनसंख्या वृद्धि ने नौकरियों अथवा रोजगार के लिए युवा-पीढ़ी में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा की स्थिति उत्पन्न कर दी है । एक नौकरी के लिए एक हजार उम्मीदवार खड़े हो जाते हैं । स्पष्टतया नौकरी एक ही व्यक्ति को मिलती है शेष बेकार रह जाते हैं । लेकिन जनसंख्या वृद्धि के अतिरिक्त बदलते आधुनिक युग में बेकारी के अन्य स्वनिर्मित कारण भी हैं ।

पहले युवा-पीढ़ी नौकरी करना अधिक पसन्द नहीं करती थी । ज्यादातर परिवार अपने परम्परागत काम-धन्धों से जीवनयापन किया करते थे और उसी में प्रसन्न रहा करते थे । नयी पीढ़ी भी अपने पुश्तैनी काम-धन्धे को आगे बढ़ाने में उत्साहित होकर सम्मिलित हो जाया करती थी ।

परन्तु आज आधुनिकता की अच्छी दौड़ में अनेक परम्परागत काम-धंधे स्थ्य हो चुके हैं अनेक बन्द होने के कगार पर हैं । आधुनिक ‘साहब’ बनने की इच्छा में किसान परिवारों से जुड़े युवा भी नौकरी करना पसन्द कर रहे है, जबकि कृषि आरम्भ से एम्स सम्मानित काम-धन्धा रहा है ।

नये-नये उद्योग-धंधों और विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर अवश्य बड़े हैं । मुद्रा-पड़ी विभिन्न क्षेत्रों के प्रति आकर्षित भी हो रही है । परन्तु इससे बेकारी की समस्या कम नहीं हुई है । एक तो किसी भी क्षेत्र में सभी के लिए रोजगार की व्यवस्था नहीं है ।

जबरदस्त प्रतियोगिता तो है ही, साथ ही रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद आदि के कारण युवाओं के लिए नौकरी प्राप्त करना कठिन हो गया है । दूसरे, पर्याप्त योग्यता न होने पर भी आज प्रत्येक युवा उच्च पद के स्वप्न देखता है ।

आज युवा-पीढ़ी संघर्ष से जी बुराने लगी है और बहुत शीघ्र ‘सब कुछ’ प्राप्त कर लेने की उसमें प्रबल इच्छा पनपने लगी है ।  समाज की देखा-देखी आज युवाओं की जीवन शैली धनाढ्‌यों से प्रभावित तो हो रही है परन्तु वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि जीवन में धन-वैभव योग्यता एवं कठिन परिश्रम के उपरान्त प्राप्त होता है ।

आज ज्यादातर युवाओं के लिए परिश्रम शान के खिलाफ माना जाने लगा है । आलसी स्वभाव के कारण युवा-पीढ़ी स्वयं अपने लिए बेकारी की समस्या उत्पन्न कर रही है । आलस्य बेकारी का एक प्रमुख कारण है । आलसी स्वभाव के लोग कठिन परिश्रम को मजदूर-वर्ग के ‘छोटे लोगों’ का कार्य मानते हैं ।

ऐसे लोग न तो रोजगार पाने के लिए अधिक प्रयत्न करते हैं न ही कोई कार्य मिलने पर उसे ठीक से अंजाम दे पाते हैं । ऐसे लोगों को कोई भी कार्य पसन्द नहीं आता और वे भाग्य के भरोसे बड़ा आदमी बनने के स्पप्न-लोक में विचरण करते रहते हैं । बेकारों का यह ऐसा वर्ग है, जिसने स्वयं बेकार रहने के साथ बेकारी की समस्या को भी बढ़ावा दिया है ।

बेकारी एक राष्ट्रीय समस्या है, जिसके समाधान पर विचार करना आवश्यक हो गया है । बेकारी के कारण युवा-पीढ़ी पथभ्रष्ट हो रही है और आपराधिक गतिविधियों में सम्मिलित हो रही है । बेकारी की समस्या के समाधान के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बहस की आवश्यकता है । सरकार को तुरन्त बेकारी की समस्या के समाधान के लिए प्रयत्न करने चाहिएँ ।

एक तो शिक्षा में विशेष सुधार करनें चाहिएँ । व्यावसायिक शिक्षा को अधिक बढ़ावा देना चाहिए, ताकि डिग्री के साथ युवाओं के पास रोजगार की भी योग्यता हो । सरकारी विभागों में व्याप्त रिश्वत, भाई-भतीजावाद आदि पर भी अंकुश लगाने की आवश्यकता है ।

दूसरे, स्वयं युवा-पड़ी को अपनी मानसिकता में बदलाव की विशेष आवश्यकता है । उच्च पद की इच्छा और धन-वैभव की लालसा के स्थान पर खुला-पड़ी को परिश्रम के द्वारा अपनी योग्यता बढ़ाने पर अधिक ध्यान देना चाहिए ।

भारत एक विशाल देश है । जनसंख्या की दृष्टि से यह विश्व का दूसरा महादेश है । प्राकृतिक दृष्टि से यह देश सर्व सपन्न है । यहाँ संसार की हर वस्तु पैदा होती है । नदियों, पहाड़ इस देश को हरे-भरे बनाने में सहायक हैं । समुद्रीय व्यापार के लिए हमारे पास विस्तृत समुद्र तट है ।

प्रकृति ने इस देश को सर्व प्रकारेण समृद्धि प्रदान की है परन्तु फिर भी यह देश ससार के गरीब देशो में से एक है । निर्धनता व दरिद्रता का सर्वत्र साम्राज्य छाया है क्योकि इस देश के नागरिको को आजीविका के समुचित साधन उपलब्ध नही है । यहाँ बेरोजगारी अत्यन्त व्यापक स्तर पर व्याप्त है । बेकारी भारत की एक भीषण समस्या बनी हुई है ।

बेकारी के कारण औद्योगिकीकरण:


कारखानो में सौ आदमियो के काम को एक आदमी मशीनों द्वारा कर लेता था । फलत: बेरोजगारी बढ़ने लगी । तब से बेरोजगारी बढ़ती ही जा रही है । आज भी कुटीर उद्योग नहीं के बराबर है । सरकार की औद्योगिक नीति पूर्ववत् है जिससे दिन-प्रति-दिन युवक बेरोजगार होते जा रहे हैं ।

दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली:


हमारे यहाँ प्राचीन काल से परम्परागत शिक्षा-प्रणाली ही प्रचलित है । प्राइमरी, मिडिल, हाईस्कूल, इन्टर, बी॰ए॰एम॰ए॰ की सीढ़ियों को पार कर आज का नवयुवक अन्त में बेरोजगारी की मंजिल पर पहुँचता है । यहाँ उसको अशान्ति, निराशा, कुण्ठा ही हाथ लगती है । हमारी शिक्षा में रोजगार उपलब्ध कराने की क्षमता नहीं है ।

जनसंख्या वृद्धि के कारण:


अधिक जनसंख्या के कारण ही समाज में बेरोजगारी बढ़ने लगती है । आजीविका के साधन सीमित होते हैं और उसको पाने वाले असीमित होते हैं । इसलिए सीमित लोगों को ही रोजगार मिल पायेगा । शेष व्यक्ति बेरोजगारी के शिकार बन जाते हैं ।

इसके अतिरिक्त सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार, पक्षपात, भाई-भतीजावाद आदि से जनसाधारण को बेकारी का शिकार होना पड़ता है । मन्त्री, नेतागण, आइ धकारी अपने रिश्तेदारो व चहेतों के लिए रोजगार उपलब्ध कराते हैं और इन्ही के हाथों में हमारी बागडोर व भाग्य की कलम होती है ।

बेकारी के दुष्यरिणाम:


रोजगार के साधन उपलब्ध न होने पर आज का युवक गलत दिशा की ओर मुड़ जाता है । समाज में चोरी करना, डाका डालना, धोखाधडी करना यहीं तक कि हत्याएँ जैसे अपराध, बेरोजगारी के कारण ही पनपते हैं जो सरकार व समाज के लिए समस्या बन जाते हैं ।

ऐसे  अपराधों की लगभग सभी घटनाएं बेकारी के कारण ही होती हैं । बेकारी के कारण कुशल व शिक्षित युवकों का अपने अनुकूल रोजगार खोजने के लिए दूसरे स्थानो को पलायन हो जाता है । ग्रामो में बेकारी के कारण गाँव का नवयुवक आज गाँव छोड़कर शहर की ओर भाग रहा है जिससे गाँवों में योग्य व कुशल व्यक्तियो का अभाव होने के कारण यहाँ का सुधार रुक जाता हे ।

विभिन्न क्षेत्रो के अनेक वैज्ञानिक देश में अच्छे रोजगार न मिलने के कारण विदेशों की ओर दौड़ रहे है । आज यूरोप के लगभग सभी देशो में भारतीय वैज्ञानिक व डाक्टर कार्यरत पाये जाते हैं जो अब नहीं की नागरिकता प्राप्त कर चुके हैं ।

अमेरिका में वहीं के कुल वैज्ञानिको व डाक्टरो के 20 प्रतिशत भारतीय वैज्ञानिक व डाक्टर है जो अब अमेरिकन नागरिक बन चुके हैं । इसी तरह अन्य देशो को भी भारत के योग्य एवं कुशल नागरिको का पलायन हो रहा है ।

बेकारी दूर करने के उपाय:


बेकारी की इस भीषण समस्या का समाधान यथाशीघ्र खोलना चाहिए अन्यथा यह समस्या दिन-प्रति-दिन भीषण बनती ज रही है । इसलिए इस बढ़ती हुई बेरोजगारी को रोकना अत्यावश्यक है । देश में कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित कर दस्तकारी को बढ़ावा देना चाहिये जिससे हर व्यक्ति को अपनी योग्यता के अनुकूल रोजगार मिल सके ।

कुटीर उद्योगों के निर्माण से गाँवो से नवयुवकों का पलायन रुक सकेगा । हर क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाया जाए, उसके लिए स्वत: रोजगार के अवसर मिलेगे । सरकार को शहर की बजाय की ओर ज्यादा ध्यान देना चाहिये । आधुनिक शिक्षा प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन किए जाए । बच्चो को विद्यालय से ही रोजगार एवं अपने पैरों पर खड़े होने वाली शिक्षा दी जाए ।

विद्यालयो में वही शिक्षा दी जाए जो व्यवहारिक जीवन में काम आ सके । देश में वैज्ञानिको, डाक्टरों व अन्य कुशल व्यक्तियो को अपने देश में ही प्रोत्साहित किया जाए । उन्हे उनकी योग्यता के अनुकूल रोजगार के अवसर प्रदान किये जाये ।

हर क्षेत्र में आरक्षण को स्थान नही देना चाहिये । राजनैतिक नेताओ व अधिकारियो को पक्षपातपूर्ण नीतियो को नहीं अपनाना चाहिये । सरकार को धन का समान वितरण करना चाहिये, क्योंकि गलत नीतियो के कारण धन का अधिकेंशि भाग कुछ ही व्यक्तियों तक पहुँच जाता है ।

जनता को भी रोजगार के लिए केवल नौकरी की ही खोज नही करनी चाहिये, बल्कि अपने नये-नये विकास कार्यो की ओर ध्यान देकर किसी भी प्रकार से उत्पादन बढाना चाहिये, किसी दूसरे पर निर्भर नही रहना चाहिये ।

अपने काम अपने आप ही किये जाये । ऐशो-आराम की जिन्दगी का लालच नहीं करना चाहिये । अपने जीवन को ऐसा कठोर बनाया जाए कि किसी भी समय व किसी भी कठिनाइयो का सामना सरलता से किया जा सके ।

बेरोजगारी की समस्या व समाधान

प्रमुख राष्ट्रीय समस्याओं में बेरोजगारी का स्थान अवल नंबर पर है । सरकार ने इस समस्या को नकेल देने के लिए जितने भी प्रयास किए व नाकाफी साबित हुए हैं । असल में इस समस्या ने अनेक सामाजिक व कानूनी पहलुओं पर प्रश्नवाचक सवाल भी खड़े कर दिए हैं ।

बेरोजगारी के कारण युवकों में फैले आक्रोश व असंतोष ने समाज में हिंसा, तोड़फोड़, मारधाड़ व अनेक तरह के आर्थिक अपराधों को जन्म दिया है । औद्योगिकीकरण, यंत्रीकरण व मौजूदा दौर में चल रही सरकार की आर्थिक उदारीकरण की नीति ने इस समस्या के स्वरूप को और भी जटिल बना दिया है ।

भारत में जनसंख्या का आधिक्य, बेकारी की समस्या को जटिल बनाता है । अन्न, आवास, कपड़े, शिक्षा सभी पर जनसंख्या का प्रभाव पड़ता है । थोड़ी-सी आमदनी से दर्जनों बच्चों का पालन कैसे संभव हो सकता

है ।

जनसंख्या नियंत्रण का कार्यक्रम भारत में फेल हो चुका है । इस पर नियंत्रण पाने के लिए कई पूर्वाग्रही तथा एक सम्प्रदाय विशेष के लोग रोड़ा अटकाते हैं और मजहब की दुहाई देकर ज्यादा बच्चे पैदा करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं ।

स्वयं संजय गांधी ने एक बार इस दिशा में सही कदम उठाया था किन्तु दैवी दुर्घटना के कारण एक संकल्परत् युवक असमय ही काल के ग्रास में चला गया और जनसंख्या पर जो रोक लगाई जा रही थी वह कालान्तर में प्रभावहीन हो गई ।

पंचवर्षीय योजनाओं की असफलता भी बेकारी बढ़ने का एक कारण है । योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए जो समय-सीमा तथा लक्ष्य रखें जाते हैं, वे बहुत कम पूरे हो पाते हैं । नतीजा यह निकलता है कि राष्ट्रीय आमदनी का एक बड़ा भाग तो शहरों को सजाने-संवारने में खर्च हो जाता है और गांवों को हम पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं करा पाते ।

वहां के बेचारे युवक रोजी-रोटी की तलाश, बीमार मां-बाप की चिकित्सा, नवजात शिशु को मामूली-सा दूध उपलब्ध कराने की आशा में शहर भागते हैं जहां आकर वे हैवान उद्योगपतियों के चंगुल में पड़कर दिन-रात मशक्कत करते हैं, रिक्शे चलाते हैं और जब परिश्रम करके थोड़े पैसे समेटकर गांव पहुंचते हैं तब तक वे शहर की कोई महाव्याधि: टी॰बी॰, आत्रशोथ, कैंसर का शिकार बन चुके होते हैं और मर जाते हैं ।

मानवता के साथ यह मजाक देश में बेकारी बढ़ने के कारण किया जा रहा है । इसको रोकने का काम सरकार का है, किन्तु आज सरकार बेकारी और गरीबी हटाने का नाटक तो करती है, परन्तु उनकी राजनीति तो वोट बटोरने की ओर ज्यादा रहती है ।

विडम्बना यह है कि सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, जनसहयोग एवं सहकारिता, कुटीर उद्योगों की उपेक्षा करती है । इनके लिए स्थिर नीति निर्धारित नहीं की जाती और प्रतिवर्ष हजारों बच्चे स्कूल-कॉलेज की शिक्षा पूरी करके रोजगार केन्द्रों के चक्कर काटने के लिए मजबूर हो जाते हैं ।

यू.पी.ए सरकार द्वारा लागू राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून हालांकि इसी समस्या से निजात पाने के लिए लागू किया गया है परन्तु सरकार को इसका सफल क्रियान्वयन भी सुनिश्चित कराना होगा तभी तेजी से बढ़ती इस समस्या पर कुछ हद तक काबू पाया जा सकता है ।

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