आदिकाल से ही बच्चों को भगवान् का रूप माना जाता है,परन्तु आज के समय में गरीब बच्चों की स्थिति अच्छी नहीं है. जहाँ एक और हम बच्चो को भगवान् का रूप मानते हैं तो वही दूसरी और अपने स्वार्थ के लिए बच्चो से मजदूरी करवाने से भी गुरेज नहीं खाते. बाल श्रम समाज की गंभीर बुराइयों में से एक है. जिंदगी के सबसे खूबसूरत पलों में से एक होता है बचपन,जहा किसी से कोई मतलब नहीं किसी चीज का कोई तनाव नहीं, जिन्दगी का मतलब सिर्फ खेल कूद और मजे करना,परन्तु कुछ बच्चे ऐसे भी है जिनका बचपन काम से ही सुरु होता है, कोई जीवन व्यापन के लिए तो कोई बुरी परिस्थियों के चलते या कोई प्रताड़ित होकर घर से निकल जाता है.उसके बाद वह बाल श्रम नाम के काली कोठरी में इस तरह कैद हो जाता है की कभी वहां से बाहर नहीं निकल पाता.
जिन बच्चो के कंधो में देश का भविष्य होता है वही बच्चे गुमनाम जिन्दगी जीने को मजबूर हो जाते है.उन्हें स्कूल से निकाल दिया जाता है और शिक्षा से वंचित होना पड़ता है, साथ ही बाल श्रम हेतु मजबूर होना पड़ता है .किसी भी राष्ट्र के लिये बच्चे नए फूल की शक्तिशाली खुशबू की तरह होते है जबकि कुछ लोग थोड़े से पैसों के लिये गैर-कानूनी तरीके से इन बच्चों के अधिकारों का हनन करते ही है साथ में देश का भी भविष्य बिगाड़ देते है. ये लोग बच्चों और निर्दोष लोगों की नैतिकता से खिलवाड़ करते है. बाल मजदूरी से बच्चों को बचाने की जिम्मेदारी देश के हर नागरिक की है. ये एक सामाजिक समस्या है जो लंबे समय से चल रहा है और इसे जड़ से उखाड़ने की जरुरत है. नाबालिक बच्चे घरेलु नौकर के रूप में काम करते हैं . वे होटलों, कारखानों, दुकानों एवं निर्माण स्थलों में कार्य करते हैं और रिक्शा चलाते भी दिखते हैं . यहाँ तक की वे फैक्ट्रियों में गंभीर एवं खतरनाक काम के स्वरुप को भी अंजाम देते दिखाई पड़ते हैं.कई एनजीओ समाज में फैली इस कुरीति को पूरी तरह नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं. बाल मजदूरी को जड़ से खत्म करने के लिए जरूरी है गरीबी को खत्म करना. इन बच्चों के लिए दो वक्त का खाना मुहैया कराना. इसके लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे. सिर्फ सरकार ही नहीं आम जनता की भी इसमें सहभागिता जरूरी है. हर एक व्यक्ति जो आर्थिक रूप से सक्षम हो अगर ऐसे एक बच्चे की भी जिम्मेदारी लेने लगे तो सारा परिदृश्य ही बदल जाएगा.