प्राचीन भारतीय इतिहास : 11 – जैन धर्म का उदय

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प्राचीन भारतीय इतिहास : 11 – जैन धर्म का उदय

जैन शब्द संस्कृत शब्द जिन से बना है, जिसका अर्थ है – विजेता। जो अपने मन, वाणी व शरीर पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है, उसे जिन कहा जाता है। जैन धर्म में वस्त्रहीन शरीर, शाकाहारी भोजन और निर्मल वाणी जैसे सिद्धांतों का पालन किया जाता है। जैन महात्मा को निर्ग्रन्थ कहा जाता है जबकि जैन धर्म के संस्थापकों को तीर्थंकर कहा जाता है।

जैन धर्म के कुल 24 तीर्थंकर थे। ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर थे। उनका मूल नाम आदिनाथ था, उनका जन्म अयोध्या में हुआ था। उन्होंने कैलाश पर्वत पर शरीर का त्याग किया था। ऋग्वेद में भी उनका उल्लेख किया गया है, ऋग्वेद में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि दो जैन तीर्थंकरों का वर्णन किया गया है। जबकि भागवत पुराण में ऋषभदेव भगवान विष्णु का अवतार माना गया है, और अरिष्टनेमि को वासुदेव कृष्ण का भाई बताया गया है। महाभारत युद्ध के समय इस सम्प्रदाय के प्रमुख नेमिनाथ थे। वे जैन तीर्थंकर थे। 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म काशी में हुआ था। उनके नाम पर सारनाथ नाम प्रसिद्ध है। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पाशर्वनाथ थे, वे राजा अश्वसेन के पुत्र थे। पाशर्वनाथ की प्रथम अनुयायी उनकी माता वामा और उनकी पत्नी प्रभावती थीं। सम्मेद शिखर पर उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया। पाशर्वनाथ ने अपने अनुयायियों को 4 आचरणों का पालन करने का निर्देश दिया था, यह 4 आचरण सत्य, अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रह हैं। उनके अनुयायियों को निर्ग्रन्थ कहा जाता है। जैन धर्म के 24वें व अंतिम तीर्थंकर महावीर थे।

महावीर स्वामी
जन्म540 ईसा पूर्व (कुण्डग्राम, वैशाली)
पितासिद्धार्थ
मातात्रिशला
पत्नीयशोदा
पुत्रीप्रियदर्शना
मृत्यु468 ईसा पूर्व (पावापुरी, नालंदा)

महावीर

महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक महावीर को माना जाता है, उनका मूल नाम वर्द्धमान था। 30 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने अग्रज नन्दी वर्द्धन से आज्ञा लेकर गृह त्याग कर दिया। उनकी भेंट नालंदा में मक्खलिपुत्त गोशाल से हुई, उन्होंने ने 6 वर्ष तक महावीर के साथ तप किया। महावीर को 42 वर्ष की आयु ने में ज्रिम्भिक ग्राम में ऋजुपालिका नदी के किनारे साल वृक्ष के नीचे के नीचे कैवल्य की प्राप्ति हुई।ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्हें कैवलिन नाम से जाना जाने लगा। ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने इस ज्ञान का प्रसार किया, इस दौरान उनके कई अनुयायी बने। उनके प्रमुख अनुयायियों में राजा बिम्बिसार, चेटक और कुनिक प्रमुख हैं।

इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने के कारण उन्हें जिन (विजेता) भी कहा गया। और तपस्या में पराक्रम दर्शाने के लिए उन्हें महावीर और निर्ग्रन्थ जैसे नाम भी दिए गये।उनके सन्यासी जीवन के बारे में कल्पसूत्र नामक पुस्तक में वर्णन किया गया है। आचारांगसूत्र में उनकी तपस्या व कायाक्लेश का वर्णन किया गया है। बौद्ध धर्म से सम्बंधित पुस्तकों में उन्हें “निगंठनाथपुत्र” कह कर संबोधित किया गया है। ज्ञान प्राप्त होने के बाद उन्होंने अपना पहला उपदेश राजगृह के समीप वितुलांचन पहाड़ी पर मेघउम्र को दिया था।

कुंडग्राम में महावीर ने देवनंदा ब्राह्मणी और ब्राह्मण ऋषभ को भी दीक्षा दी। जमाली उनके पहले शिष्य थे। चंपा नरेश दधिवहन की पुत्री चंदना उनकी प्रथम भिक्षुणी थी। चेटक, दधिवाहन, बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदायिन जैसे प्रसिद्ध शासकों ने जैन धर्म में आस्था व्यक्त की।

जैन धर्म का विस्तृत विवरण

जैन धर्म में अहिंसा के सिद्धांत को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है, इसमें प्राणिवध का त्याग सर्वप्रथम उपदेश है।जैन धर्म में ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया गया है।जैन धर्म में संसार को दुःख का मूल कारण बताया गया है। जैन धर्म के अनुसार मनुष्य वृद्धावस्था और मृत्यु से प्रताड़ित रहता है। उसके जीवन में सांसारिक इच्छाएं हावी रहती हैं। और इच्छाएं ही दुःख का मूल कारण हैं। त्याग और सन्यास से ही मनुष्य सही मार्ग पर जा सकता है। और सभी प्राणियों को उनके कर्मों के अनुसार कर्मफल प्राप्त होता है। कर्मफल से मुक्ति पा कर मनुष्य निर्वाण प्राप्त करता है। जैन धर्म में मुक्ति के लिए त्रिरत्न का उल्लेख किया गया है। जैन धर्म के त्रिरत्न सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक आचरण हैं। सम्यक ज्ञान के पांच प्रकार होते हैं।

प्रमुख सिद्धांत

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर ने अपने उपदेश प्राकृत भाषा में दिए। उस समय देश के अलग-अलग हिस्सों प्राकृत भाषा के अलग-अलग रूप मौजूद थे, इसे अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता था। मगध में इसे प्राकृत मागधी कहा जाता था। प्राकृत भाषा से ही अपभ्रंश भाषा का विकास हुआ।

त्रिरत्न और महाव्रत

  • मति अर्थात इन्द्रिय जनित ज्ञान
  • श्रुति अर्थात श्रवण ज्ञान
  • अवधि अर्थात दिव्य ज्ञान
  • मन: पर्याय अर्थात दूसरे के मन को जान लेना
  • कैवल्य ज्ञान अर्थात सर्वोच्च ज्ञान

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