प्रधानमन्त्री पर निबंध (Hindi Essay Writing)

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प्रधानमन्त्री पर निबंध


 

पंडित जवाहरलाल नेहरू
श्रीमती इन्दिरा गाँधी
युवाओं के ऊर्जास्त्रोत प्रधानमन्त्री स्व० श्री राजीव गांधी पर निबन्ध
प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी पर निबन्ध
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह


पंडित जवाहरलाल नेहरू


शान्ति के अग्रदूत और अहिंसा के संवाहक पंडित जवाहरलाल नेहरू का नाम विश्व के महानतम् व्यक्तियों में लिया जाता है । मानवता के प्रबल समर्थक और बन्धुत्व के पक्षधर पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर सन् 1889 ई. को इलाहाबाद में हुआ ।

आपके पिताश्री पंडित मोतीलाल नेहरू पूरे भारतवर्ष के सर्वसम्मानित और सर्वमेधावी वैरिस्टर थे । अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र होने तथा अत्यधिक सुविधामय परिवार में जन्म लेने के कारण आपका लालन-पालन बड़ी सुविधाओं और सुखद परिस्थितियों में हुआ ।

आपकी आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई । लगभग पन्द्रह वर्ष की आयु में आपको उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया गया । हैरी विश्वविद्यालय और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से आपने अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की । कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से आपने बी.ए, की डिग्री प्राप्त करके वैरिस्ट्री की उपाधि भी प्राप्त कर ली ।

वैरिस्टर बनकर आप सन् 1912 ई. में भारत लौट आए । सन् 1916 ई. में आपका विवाह पंडित कमला नेहरू से हो गया । भारत आकर इलाहाबाद में पंडित नेहरू ने अपने पिताश्री के साथ वकालत शुरू कर दी । सन् 1919 ई. में अमृतसर के जलियांवाला बाग के हत्याकाण्ड के बाद आपने वकालत छोड़ दी और महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर स्वतन्त्रता आन्दोलन के कर्मठ नेता बन गए ।

महात्मा गाँधी ने पंडित नेहरू की अद्‌भुत देश-भक्ति, दृढ-साहस तथा अदम्य पुरुषार्थ से प्रभावित होकर इन्हें अपना विश्वस्त अनुयायी स्वीकार कर लिया । पंडित नेहरू भारत माँ की स्वतन्त्रता के लिए बार-बार व्यग्र रहने लगे थे । उन्होंने भारत माँ की आजादी के लिए कमर कस ली ।

देश की आजादी के लिए पंडित नेहरू ने सब प्रकार की यातनाओं को सहने की हिम्मत बाँध ली । राजकुमारों से भी कहीं बढ़कर आनन्दमय और सुखविलास का जीवन जीने वाले पंडित जवाहरलाल जी ने विदेश की सभी चीजों का बहिष्कार अपने पथ-प्रदर्शक गुरु-स्वरूप महात्मा गाँधी के आह्वान पर कर दिया ।

खादी के कूर्त्ते और धोती पहनकर शहरों में ही नहीं, अपितु गाँवों में भी देश की आजादी के लिए जन-जागरण करने लगे । इन्होंने सम्पूर्ण भारतवासियों के दुःख को अपना दुःख स्वीकार किया और इसे दूर करने के लिए सब कुछ समर्पित कर देने का अपना पुनीत कर्त्तव्य समझ लिया ।

पंडित मोतीलाल नेहरू ने अपने सुपुत्र जवाहरलाल में अद्‌भुत देश-भक्ति की भावना देखी, तब वे मौन नहीं रह पाये । वे हाथ-पर-हाथ रखकर समाज और राष्ट्र की विभिन्न गतिविधियों के मूकदर्शक नहीं बन पाये । वे भी इस स्वाभिमान की प्रबल तरंग से प्रभावित होकर मचल उठे ।

उन्होंने भी वैरिस्टरी छोड़ दी और महात्मा गाँधी के मार्ग-दर्शन में अपने पुत्ररत्न जवाहरलाल का साथ देना उचित समझ लिया । देश की स्वतंत्रता को आन-मान के प्रतीक पंडित नेहरू का महात्मा गाँधी जी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आन्दोलन में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है ।

पंजाब की रावी नदी के तट पर 31 दिसम्बर सन् 1930 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यह घोषणा की थी ”हम पूर्ण स्वाधीन होकर ही रहेंगे ।” पंडित नेहरू की इस घोषणा से पूरे देश का रोम-रोम मचल उठा । स्वाधीनता का आन्दोलन पूर्वापेक्षा अधिक तीव्र और प्रभावशाली हो गया ।

इसके बाद नमक सत्याग्रह में भी पंडित जवाहरलाल का अपार योगदान रहा। सन् 1942 ई. में जव महात्मा गाँधी ने ‘भारत छोड़ो’ का आह्वान किया, तब इसमें भी पंडित नेहरू ने अपनी अहं भूमिका निभाई थी । अंग्रेजों का निशाना पंडित नेहरू अच्छी तरह से बन चुके थे ।

वे इन्हें बार-बार जेल भेजते रहे, लेकिन पंडित नेहरू ने तनिक भी हिम्मत नहीं हारी । विभिन्न प्रकार की यातनाओं से पंडित नेहरू और अधिक दिलेर और लौह-पुरुष होते गए । अत: हृदयविदारक कष्टों को देख-सुनकर भी जवाहरलाल जी फूल की तरह काँटों रूपी यातनाओं में मुस्कराते रहे ।

15 अगस्त 1947 ई. को देश की पूर्ण स्वाधीनता की प्राप्ति पर पंडित जवाहरलाल नेहरू जी को भारत का प्रथम प्रधानमंत्री सर्वसम्मति से नियुक्त किया गया । उस समय भारत को प्रथम बार मौलिक अधिकार प्राप्त हुआ था । अब समूचे राष्ट्र के सामने यह विकट प्रश्न था कि कौन-सी समस्या का समाधान कैसे और कितना किया जाए, जिससे अन्य समस्याएँ भी सुलझ सकें ।

उस समय देश में धीरे-धीरे साम्प्रदायिकता पनप रही थी । उसे दबाने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गाँधी के सुझावानुसार अनेक प्रकार की साम्प्रदायिक एकता के सूत्रों को तैयार किया । धीरे-धीरे शान्ति की हवा चलने लगी थी कि अचानक साम्प्रदायिकता की चिनगारी चहक उठी और इसने विभीषिका का रूप धारण कर लिया ।

फलत: बड़े पैमाने पर दंगे-फसाद हुए और नरसंहार भी । भारत का अंग दो भागों में बँट गया-भारत और पाकिस्तान । थोड़ा समय और बदल गया और देश के दुर्भाग्य ने सिर पर चढ़कर महात्मा गाँधी की बलि ले ली । हमें रोते-बिलखते देखकर पंडित नेहरू ने शान्ति अपनाने का दृढ़तापूर्वक मार्ग दिखाया ।

पंडित नेहरू ने अपने प्रधानमंत्रित्व के पद से भारत को विश्व में सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाई । नेहरू की विदेश-नीति, आर्थिक उन्नति की नींव पंचवर्षीय योजना, देश का औद्योगिकीकरण, विश्व-शान्ति आदि पंडित जवाहरलाल नेहरू के अमर कीर्ति के प्रधान स्तम्भ हैं ।

25 मई सन् 1964 ई. को पंडित नेहरू ने इस मानव तन से स्वर्गधाम को प्रस्थान किया, लेकिन उनकी यशस्वी काया आज भी हमें उनके आदर्शों पर चलने के लिए मधुर संदेश देती है । वास्तव में पंडित नेहरू जैसे स्पष्ट वक्ता, दृढ, साहसी और शान्तिदूत कभी-कभी ही इस धरती पर उत्पन्न होते हैं ।

श्रीमती इन्दिरा गाँधी


कुछ ऐसी भारतीय नारियाँ हुई हैं, जिन्होंने अपनी अपार क्षमता और विलक्षण शक्ति-संचार से न केवल भारतभूमि को ही गौरवान्वित किया है । अपितु सम्पूर्ण विश्व को भी कृतार्थ करके अहं भूमिका निभाई है ।

ऐसी महिलाओं में विद्योत्तमा, मैत्री, महारानी लक्ष्मीबाई आदि की तरह श्रीमती इन्दिरा गाँधी का नाम भी यश-शिखर पर मंडित और रंजित है । भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी का जन्म 19 नवम्बर सन् 1917 ई. को पावन स्थल इलाहाबाद में हुआ था ।

आपके व्यक्तित्व पर आपके पितामह पंडित मोतीलाल नेहरू, पिता जवाहरलाल नेहरू और माता कमला नेहरू के साथ-साथ बुआ पंडित विजयलक्ष्मी का भी गम्भीर प्रभाव पड़ा था । आपका जन्म एक ऐसे ऐतिहासिक युग में हुआ था, जब हमारे देश को अंग्रेजी सत्ता ने पूण रूप से अपने अधीन कर लिया ।

चारों ओर से अशान्त और गंभीर वातावरण पनप रहा था । इसी समय हमारे देश के अनेक कर्णधारों और राष्ट्रभक्तों ने आजादी की माँग रखनी शुरू कर दी थी और इसके लिए पुरजोर प्रयास भी शुरू कर दिये थे । इन्दिरा गाँधी के बचपने व्यक्तित्व पर इन राष्ट्रीय प्रभावों का तीव्र प्रभाव पड़ना शुरू हो गया ।

उस राष्ट्रीय विचारधारा से तीव्र गति से पंडित मोतीलात का परिवार प्रभावित होता जा रहा था । घर के अन्दर काँग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं को जो भी प्रतिक्रिया होती थी, उसे बालिका प्रियदर्शनी (इन्दिरा) बहुत ही ध्यानपूर्वक देखती-सुनती रहतीं थी । यही कारण था कि लगभग 3 वर्ष की बाल्यावस्था में ही प्रियदर्शनी (इन्दिरा) राजनीति में अभिरुचि लेने लग गई थी ।

दस वर्ष की अल्पायु में प्रियदर्शनी ने देश की आजादी के लिए अपने समवयस्कों की टोली बनाई थी, जिसे ‘वानरी सेना’ का नाम दिया गया । सन् 1930 में प्रियदर्शनी ने काँग्रेस की बैठक में पहली बार भाग लिया था । प्रियदर्शनी द्वारा तैयार की गई, वानरी सेना ने काँग्रेस के असहयोग आन्दोलन में भारी सहायता पहुँचाई थी ।

इस तरह से इन्दिरा गाँधी का राजनैतिक जीवन ‘होनहार बिरवान् के होत चिकने पात’ को चरितार्थ करता हुआ अत्यधिक चर्चित होने लगा था । इससे सामाजिक तथा राष्ट्रीयधारा प्रभावित होने लगी थी । आपका पाणिग्रहण एक सुयोग्य पत्रकार और विद्वान् लेखक फिरोज गाँधी से हुआ था, जो विवाहोपरान्त एक श्रेष्ठ सांसद, कर्मठ युवा नेता और एक प्रमुख अंग्रेजी पत्र के सम्पादक के रूप में चर्चित रहे ।

फिरोज गाँधी के प्रेमबन्धन में इन्दिरा (प्रियदर्शनी) अपनी उच्च शिक्षा आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के दौरान ही बँध गयी थी । सन् 1959 में आप सर्वसम्मति से काँग्रेस दल की अध्यक्ष चुन ली गईं और सन् 1960 ई. में पति फिरोज गाँधी के आकस्मिक निधन से आपको गहरा सदमा पहुँचा ।

फिर आपने अपने दोनों पुत्ररत्नों राजीव और संजय के पालन-पोषण में कोई कमी नहीं आने दी । इन दोनों सन्तानों के भविष्य को उज्जल और स्वर्णिम बनाने के लिए आपने इन्हें लन्दन में उच्च शिक्षा दिलवाई थी । 15 अगस्त, 1947 को पंडित जवाहरलाल देश के आजाद होने पर प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वसम्मति से घोषित किए गए ।

वे इस पद पर लगभग लगातार 17 वर्षों तक रहे । उनके अचानक निधन के बाद लालबहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था, लेकिन शास्त्री जी भी लगभग डेढ़ वर्ष अल्पावधि में चल बसे थे । तब सर्वाधिक सक्षम और योग्यतम व्यक्ति के रूप में श्रीमती इन्दिरा गाँधी को ही देश की बागडोर सम्भालने के लिए प्रधानमन्त्री के रूप में नियुक्त किया गया ।

इससे पूर्व श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने श्री लालबहादुर शास्त्री के मन्त्रिमण्डल के विभिन्न पदों पर कुशलतापूर्वक कार्य करके अद्‌भुत सफलता दिखाई थी । आपको भारत की सर्वप्रथम महिला प्रधानमन्त्री पद की शपथ आपकी 48 वर्ष की आयु में 24 जनवरी सन् 1966 को तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णनन ने दिलाई थी ।

सन् 1967 के आम चुनाव में देश ने आपको अपार बहुमत देकर पुन: प्रधानमन्त्री के पद पर प्रतिष्ठित कर दिया था । आपके प्रधानमन्त्रित्व काल में सन् 1971 में जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया । तब आपने उसका मुँहतोड़ जवाब देते हुए उसे ऐसी करारी हार दिलाई कि पाकिस्तान पूर्वी अंग (पूर्वी पाकिस्तान) के स्थान पर बंगलादेश के रूप में उसका कायाकल्प करवा दिया ।

श्रीमती इन्दिरा गाँधी की यह अद्‌भुत सूझ-बूझ और रणनीति की ही करामात थी जिसे देखकर पूरा विश्व भौंचकित रह गया था । श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने देश की विषम-से-विषम परिस्थिति में चुनाव कराने की दिलेरी दिखाते हुए सन् 1977 में पराजय के बाद भी राजनीति से न तो संन्यास ही लिया और न देशोत्थान से भी मुख मोड़ लिया ।

वे दुगुने साहस के साथ सन् 1980 में पुन: सत्ता में आकर ही रहीं । श्रीमती गाँधी का पूरा जीवन एक अद्‌भुत दिलेर महिला की जीवनगाथा है । पराजय के बाद सन् 1980 में सत्ता में आने पर श्रीमती इन्दिरा गाँधी ही विश्व की सर्वप्रथम महिला प्रधानमन्त्री थीं जिन्होंने अपने नाम पर ही ‘इन्दिरा काँग्रेस’ नाम से एक नए दल को जन्म दिया, जो आज भी इस अद्‌भुत राष्ट्र का सबसे बड़ा दल है और सब दलों से अधिक लोकप्रिय भी है ।

इन्दिरा गाँधी ही एक ऐसी महान् नेता रही हैं, जिनके विरोधी भी उनके गुणगान करते रहे हैं । जयप्रकाश नारायण, राजनारायण, हेमवतीनन्दन बहुगुणा, मधुलिमये, चरणसिंह, वाई. बी. चौहान आदि राजनीतिज्ञों की लम्बी पंक्ति इन्दिरा गाँधी की प्रशंसक रहीं । श्रीमती गाँधी समय की अत्यन्त कुशल पारखी थीं ।

समय की पहचान करके मध्यावधि चुनाव कराना, आपात्‌काल के अन्तर्गत कड़ाई से शासन करना, गुटनिरपेक्ष सम्मेलन का अध्यक्ष बनना, कामनवेल्थ काँग्रेस का आयोजन करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना, पंजाब की गरमाती समस्या का चटपट समाधान के रूप में ब्लू स्टार की कार्रवाई करना आदि कार्य बेमिसाल और हिम्मत भरे हैं ।

श्रीमती गाँधी का व्यक्तित्व जहाँ दिलेरी और साहस भरा है वहीं वह प्रकृति के सौन्दर्य से आकर्षित और मोहित है । यही कारण है कि श्रीमती गाँधी की नृत्य और संगीत कला में विशेष अभिरुचि थी । देश को परम दुर्भाग्य का काल दिवस भी देखना पड़ा ।

31 अक्तूबर सन् 1984 को साम्प्रदायिकता के सपोलों ने श्रीमती गाँधी को गोलियों से भूनकर भारतीय इतिहास पर कालिख पोत दी । इसी के साथ न केवल हमारे देश का अपितु पूरे विश्व की राजनीति का परम एक उज्जवल और अपेक्षित अध्याय समाप्त हो गया ।

 युवाओं के ऊर्जास्त्रोत प्रधानमन्त्री स्व० श्री राजीव गांधी


1. प्रस्तावना:

राजीव गांधी विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र भारत के एकमात्र ऐसे युवा प्रधानमन्त्री थे, जिनकी उदार सोच, स्वप्नदर्शी व्यापक दृष्टि ने भारतवर्ष को एक नयी ऊर्जा और एक नयी शक्ति दी । देश को विश्व के अन्य उन्नत राष्ट्रों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देने वाले सबसे कम उम्र के वे ऐसे प्रधानमन्त्री थे, जिन्होंने इक्कीसवीं सदी का स्वप्न देते हुए भारत को वैज्ञानिक दिशा दी ।

2. उनका व्यक्तित्व:

देश की प्रधानमन्त्री स्व० श्रीमती इन्दिरा गांधी के सबसे बड़े इस होनहार सपूत का जन्म बम्बई में 20 अगस्त 1944 को हुआ था । पिता फिरोज गांधी की ही तरह वे एक सम्मोहित व्यक्तित्व के धनी थे । नाना जवाहरलाल नेहरू और मां इन्दिरा गांधी से उन्हें राजनैतिक विरासत की समृद्ध परम्परा मिली । राजनीति में यद्यपि उनकी रुचि नहीं थी, तथापि वे पारिवारिक वातावरण के कारण उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके ।

माता इन्दिरा की असामयिक मृत्यु के बाद देश को उनकी ही तरह एक सशक्त प्रधानमन्त्री की आवश्यकता थी । अत: राजीव गांधी को लोगों की इच्छा का सम्मान करते हुए राजनीति में आना पड़ा । राजनीति में आने से पूर्व वे इण्डियन एयरलाइन्स में एक पायलट थे । छात्र जीवन में उनकी भेंट इटली की सोनिया से हुई, जो आगे चलकर उनकी अर्द्धांगिनी बनी ।

1981 में अमेठी से सांसद का चुनाव जीतकर वे 1883 में कांग्रेस पार्टी के महासचिव बने । 31 अक्टूबर 1984 के दिन इन्दिरा गांधी की मृत्यु के बाद कार्यवाहक प्रधानमन्त्री के रूप में अपनी शपथ ग्रहण की । 1985 के आम चुनाव में वे प्रचण्ड बहुमत से विजयी हुए ।

मिस्टर क्लीन की छवि से माने जाने वाले राजीव गांधी बहुत कुछ अर्थों में ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल थे । हालांकि उनकी इस छवि में कालान्तर में कुछ विवाद भी उत्पन्न हुए थे । अपने श्रेष्ठ प्रशासन व निर्णय शक्ति की बदौलत इस जनप्रिय नेता ने काफी ख्याति प्राप्त की ।

किन्तु 21 मई 1991 को मद्रास से 50 कि०मी० दूर श्रीपेरूंबुदुर में एक चुनावी सभा के दौरान सुरक्षा घेरे को तोड़ने के बाद फूलों की माला ग्रहण करते समय श्रीलंकाई आतंकवादी संगठन लिट्टे द्वारा आत्मघाती बम विस्फोट में उनकी नृशंस हत्या कर दी गयी । अपने चहेते युवा नेता की मृत्यु पर सारा देश जैसे स्तब्ध रह गया ।

3. उनके कार्य:

राजीव गांधी एक सशक्त और कुशल राजनेता ही नहीं थे, अपितु स्वप्नदृष्टा प्रधानमन्त्री थे । समय से पूर्व भारत को 21वीं सदी में ले जाने वाले इस प्रधानमन्त्री ने भविष्य के भारत का जो सपना देखा था, उसमें सम्पूर्ण भारत में ज्ञान, संचार, सूचना, तकनीकी सेवाओं के साथ मुख्यत: उसे कम्प्यूटर से जोड़ना था । वे भारत को एक अक्षय ऊर्जा का स्त्रोत बनाना चाहते थे ।

उनकी इस नवीन कार्यशैली और सृजनात्मकता का ही परिणाम है कि आज भारत सौर ऊर्जा से लेकर देश के कोने-कोने में कम्प्यूटर से जुड़ गया है । आज देश के घर-घर में कम्प्यूटर का उपयोग राजीव गांधी की ही दूरदर्शी सोच का परिणाम है । अपनी विदेश नीति के तहत उन्होंने कई देशों की यात्राएं की । भारत के आर्थिक, सांस्कृतिक सम्बन्ध बढ़ाये ।

1986 में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का नेतृत्व करते हुए भारत को अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर सम्मानित किया । फिलीस्तीनी संघर्ष, रंग-भेद विरोधी द० अफ्रीकी संघर्ष, स्वापो आन्दोलन, नामीबिया की स्वतन्त्रता का समर्थन, अफ्रीकी फण्ड की स्थापना के साथ-साथ माले में हुए विद्रोह का दमन, श्रीलंका की आतंकवादी समस्या पर निर्भीक दृष्टि रखना, हिन्द महासागर में अमेरिका तथा पाक के बढ़ते सामरिक हस्तक्षेप पर अंकुश लगाना, यह उनकी महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां हैं ।

4. उपसंहार:

युवाओं की ऊर्जा के प्रतीक राजीव गांधी देश को भी अक्षय ऊर्जा की दृष्टि से सम्पन्न राष्ट्र बनाना चाहते थे । इस स्वप्नदृष्टा ने भारत को कम्प्यूटर, संचार, सूचना और तकनीकी के क्षेत्र में नया आयाम दिया । 21वीं सदी की ओर जाने का नारा देकर शक्तिशाली राष्ट्र का वैभव दिया ।

नयी शिक्षा नीति में शिक्षा को व्यावसायिकता के साथ जोड़ने का सार्थक प्रयास किया । भारत सरकार ने देश के इस कर्मठ युवा को देश का सर्वोच्च सम्मान ”भारत रत्न” सन् 1991 में प्रदान कर अपनी कृतज्ञता प्रकट की । वे अपने अच्छे कार्यों की वजह से भारतवासियों के हृदय में सदा जीवित रहेंगे ।

. प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी


1. प्रस्तावना:

प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी देश के एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो अपनी पार्टी में ही नहीं, विपक्षी पार्टी में समान रूप से सम्माननीय रहे हैं ।

उदार, विवेकशील, निडर, सरल-सहज, राजनेता के रूप में जहां इनकी छवि अत्यन्त लोकप्रिय रही है, वहीं एक ओजस्वी वक्ता, कवि की संवेदनाओं से भरपूर इनका भाबुक हृदय, भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति आस्थावान इनका व्यक्तित्व सभी को प्रभावित कर जाता है ।

ये देश के सफल प्रधानमन्त्रियों में से एक हैं । इनकी विलक्षण वाकपटुता को देखकर लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने यह कहा कि- ”इनके कण्ठ में सरस्वती का वास है ।” तो नेहरूजी ने इन्हें ”अद्‌भुत वक्ता की विश्वविख्यात छवि से नवाजा ।”

2. जन्म व शिक्षा:

श्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले में हुआ था । इनके पिता पण्डित कृष्णबिहारी वाजपेयी एक स्कूल शिक्षक थे और दादा पण्डित श्यामलाल वाजपेयी संस्कृत के जाने-माने विद्वान् थे । वाजपेयीजी की प्रारम्भिक शिक्षा भिंड तथा ग्वालियर में हुई ।

विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान महारानी लक्ष्मीबाई कला एवं वाणिज्य विश्वविद्यालय) से स्नातक की उपाधि ग्रहण की । राजनीति शास्त्र में एम०ए० करने हेतु ये डी०ए०वी० कॉलेज कानपुर चले आये । कानून की पढ़ाई करते-करते अधूरी छोड़कर राजनीति में सक्रिय हो गये ।

ये अपने प्रारम्भिक जीवन में छात्र नेता के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय एवं समर्पित कार्यकर्ता रहे हैं । राष्ट्रीय स्वयंसेवक के रूप में लखनऊ में इन्होंने राष्ट्रधर्म एवं पांचजन्य नामक पत्रिका का सम्पादन किया । इसी तरह वाराणसी से प्रकाशित वीर चेतना साप्ताहिक, लखनऊ से प्रकाशित दैनिक स्वदेश और दिल्ली से प्रकाशित वीर अर्जुन का भी सम्पादन किया ।

3. राजनीतिक जीवन:

श्री वाजपेयीजी की लेखन क्षमता, भाषण कला को देखकर श्यामाप्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय जैसे नेताओं का ध्यान इनकी ओर गया । 1953 में अटलजी को जनसंघ के प्रथम अध्यक्ष डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी का निजी सचिव नियुक्त किया गया । साथ में जनसंघ का सचिव भी बनाया गया । 1955 में पहली बार चुनाव मैदान में कदम रखते हुए विजयलक्ष्मी पण्डित की खाली की गयी सीट के उपचुनाव में इन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा ।

1957, 1967, 1971, 1977, 1980, 1991, 1996 और 1998 में सातवीं बार लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए । 1962 और 1986 में ये राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए । 1977 से 1979 तक जनता पार्टी के शासनकाल में ये विदेश मन्त्री रहे । सन् 1980 से 1986 तक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे । विदेश मन्त्री के रूप में इन्होंने निःशस्त्रीकरण, रंगभेद नीति आदि की ओर सदस्य राष्ट्रों का ध्यान आकर्षित किया ।

संयुक्त राष्ट्र संघ में इनका हिन्दी में दिया गया भाषण इन्हें एक कुशल वक्ता साबित करता है । इन्होंने अमेरिका, इजराइल, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ्रांस तथा पूर्वी एशियाई देशों की यात्राएं भी कीं । आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण तथा अन्य नेताओं के साथ इन्होंने जेलयात्रा भी की । 19 अप्रैल 1998 को भारत के राष्ट्रपति के०आर० नारायणन ने इन्हें प्रधानमन्त्री पद की शपथ दिलायी । ये 21 मई 2004 तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे ।

4. इनके कार्य व विचार:

श्री अटल बिहारी वाजपेयी का सम्पूर्ण जीवन एवं इनके सम्पूर्ण विचार राष्ट्र के लिए समर्पित रहे हैं । राष्ट्रसेवा के लिए इन्होंने गृहस्थ जीवन का विचार तक त्याग दिया । अविवाहित प्रधानमन्त्री के रूप में ये एक ईमानदार, निर्लिप्त छवि वाले प्रधानमन्त्री रहे हैं । इन्होंने राजनीति में रहते हुए कभी अपना हित नहीं देखा ।

प्रजातान्त्रिक मूल्यों में इनकी गहरी आस्था है । हिन्दुत्ववादी होते हुए भी इनकी छवि साम्प्रदायिक न होकर धर्मनिरपेक्ष मानव की रही है । लेखक के रूप में इनकी प्रमुख पुस्तकों में मेरी 51 कविताएं, न्यू डाइमेंशन ऑफ इण्डियाज, फॉरेन पालिसी, फोर डिकेड्‌स इन पार्लियामेंट तथा इनके भाषणों का संग्रह उल्लेखनीय है ।

5. उपसंहार:

सन् 1992 में ”पद्मविभूषण” तथा 1994 में श्रेष्ठ सांसद के रूप में पण्डित गोविन्द वल्लभ पन्त और लोकमान्य तिलक पुरस्कारों से इन्हें सम्मानित किया गया । आज भी विपक्ष में रहते हुए ये राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों के निर्वाह में पूर्णत: आस्थावान हैं । ये एक कुशल राजनेता एवं जनप्रिय प्रधानमन्त्री के रूप में श्रद्धेय और सम्मानित हैं ।

प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह | |Essay on  Prime Minister Manmohan Singh for College Students in Hindi Language

प्रस्तावना:

भारत विश्व का एक महानतम लोकतत्र देश है । यहाँ देश में शासन करने वाली सरकार का चयन प्रति पाँच वर्ष बाद जनता के मताधिकार द्वारा होता है । हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार प्रधानमत्री देश का प्रमुख शासनाध्यक्ष होता है । स्वतंत्र भारत में देश का शासन चलाने वाले महान प्रधानमत्रियो की शृंखला में  डा. मनमोहन सिह का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है ।

जन्म एवं पैत्रिक परिचय:

अपने मृदुल व्यवहार व मनमोहक व्यक्तित्व से जनमानस को मोहित करने वाले डी मनमोहन सिह का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के लाहौर और इस्लामाबाद के मध्य याह नामक ग्राम में सन् 1932 ई में हुआ । उनके पिता का नाम सरदार गुरमुख सिह कोहली था । वे अपने दस भाई-बहिनो में सबसे बड़े थे ।

विभाजन के बाद उनका परिवार अमृतसर के तग बाजार खोतीवाला में आकर रहने लगे और उनके पिता जी ड्राइफ्रूट के कारोबार में जुट गए । उस समय डी मनमोहन सिह की आयु 13-14 वर्ष की थी । तब वे जिस मकान में किराये पर रहे थे उसको सत राम का तबेला कहते थे । इनकी माता का नाम कृष्णा दौर था जो अत्यत धार्मिक महिला थी ।

बाल्यकाल व शिक्षा:

डा मनमोहन सिह का बाल्यकाल पाकिस्तान व अमृतसर में व्यतीत हुआ । वे बचपन से ही शात गम्भीर व एकाकी प्रवृति के बालक थे । वे किसी के साथ, फालतू बात नही करते थे हमेशा अपनी पढ़ाई मे ही लगे रहते थे । बचपन में उन्हे पढ़ाई के अतिरिक्त अन्य किसी का भी शौक नही था ।

उन्होने ज्ञान आश्रम व हिन्दू महासभा से आरभिक शिक्षा प्राप्त की थी । उसके बाद खालसा कॉलेज होशियारपुर से अर्थशास्त्र विषय में प्रथम श्रेणी में एम.ए. की परीक्षा पास की । तदुपरान्त अर्थशास्त्र में ही ऑक्सफोर्ड से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की ।

कर्मक्षेत्र:

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त करने के बाद वे पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के प्राध्यापक के पद पर नियुक्त हुए । उनकी सूझ-बूझ व प्रखर प्रतिभा के कारण उन्हें राज्य सरकार का आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया गया कुछ समय तक वे केन्द्र सरकार के भी आर्थिक सलाहकार रहे ।

उनकी योग्यता को देख कर भारत सरकार ने उन्हें रिजर्व बैक का गवर्नर नियुक्त किया । इस प्रकार वे देश-विदेश में घड़े-बड़े ऊँचे पदो पर कार्यरत रहे ।

राजनीति में प्रवेश:

जब केन्द्र में नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने तब डा मनमोहन सिंह के वित्त सबधी ज्ञान का लाभ उठाने के लिए उन्हे भारत सरकार का वित्त मंत्री नियुक्त किया गया । यहीं से उनका भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ, उसके बाद वे काँग्रेस पार्टी में विभिन्न पदों पर कार्य करते रहे और भारतीय जनता में एक लोकप्रिय नेता बन गए ।

स्वभाव व शौक:

डॉ॰ साहब की बहन नरेन्द्र कौर कहती हैं कि मनमोहन अन्तर्मुखी प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं । उन्हें गुस्सा बहुत कम आता है । बच्चे जब खेला करते थे तो वै पढ़ाई में व्यस्त रहते थे । बचपन में उन्हें केवल पढ़ाई का शौक था, वे नम्र व दयालु स्वभाव के व्यक्ति हैं, वे ईमानदार, परिश्रमी व सादगीपसंद व्यक्ति हैं ।

विभिन्न ऊँचे पदों पर रहते हुए भी उन्होंने कभी भी अपने लोगों को फायदा पहुँचाने की कोशिश नहीं की, उन्होंने कभी अपनी औलाद के लिए भी सिफारिश नहीं की ।

प्रधानमंत्री के रूप में:

सन् 2004 के चौदहवें लोकसभा चुनाव में काँग्रेस की विजय होने पर डॉ॰ मनमोहन सिंह को भारत का प्रधानमंत्री चुना गया । 22 मई, 2004 को भारत के राष्ट्रपति ने डॉ॰ मनमोहन सिंह को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई ।

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