पेशवा सदाशिवराव भाऊ का जीवन परिचय
पेशवा सदाशिवराव भाऊ का जीवन परिचय (Peshwa Sadashivrao Bhau Biography in hindi, Story, Panipat War Movie)
इतिहास के बारे में जानने के लिए हर कोई इंसान उत्सुक रहता है। सभी यह जानना चाहते हैं कि हमारे इतिहास को रचने वाले महावीर पुरुष कौन थे? और अपने जीवन में कैसे महान कार्य करके वे हमारे इतिहास के सुनहरे पन्नों में अपना नाम लिखवा पाए? आज हमें ऐसे ही ऐतिहासिक महापुरुष के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका नाम है सदाशिवराव। उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के साथ-साथ हम उनके जीवन की कुछ सामान्य बातें भी आज आपको इस पोस्ट के जरिए बताने वाले हैं।
सदाशिव राव का परिचय (Sadashivrao Introduction)
परिचय बिंदु | परिचय |
पूरा नाम (Full Name) | सदाशिवराव पेशवा |
अन्य नाम (Other Name) | चिमाजी अप्पा |
निक नाम (Nick Name) | |
पेशा (Profession) | वीर सिपाही |
शैली (Genre) | दीवान के पेशवा |
जन्म (Birth) | 3 अगस्त, 1730 |
मृत्यु ( Death) | 14 जनवरी, 1761 |
जन्म स्थान (Birth Place) | सासवड, पुणे |
राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय |
गृहनगर (Hometown) | सातारा |
जाति (Caste) | मराठा |
खाने में पसंद (Food Habit) | शाकाहारी |
पसंद (Hobbies) | सैन्य प्रदर्शन |
शैक्षिक योग्यता (Educational Qualification) | – |
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | विवाहित |
प्रेरणा स्त्रोत (Role Model) | शिवाजी राव पेशवा |
बालों का रंग (Hair Color) | काला |
आँखों का रंग (Eye Color) | काला |
कौन है सदाशिवराव?
शायद कुछ ही लोगों ने यह नाम सुना हो कि सदाशिवराव कौन है? सदाशिव राव, महान ऐतिहासिक राजा पेशवा बाजीराव के भाई चिमाजी अप्पा के पुत्र थे। पेशवा बाजीराव के बारे में तो आपने सुना भी होगा और बाजीराव मस्तानी फिल्म के जरिए उनका पूरा चरित्र देखा भी होगा। सदाशिव राव का संबंध पेशवा बाजीराव से भी था इसलिए उनका जीवन परिचय बेहद महत्वपूर्ण है।
सदाशिवराव के परिवार की जानकारी (Family Details)
पिता का नाम (Father’s Name) | स्वर्गीय श्री चिमाजी अप्पा |
माता का नाम (Mother’s Name) | रुखमा बाई |
पत्नि का नाम (Wife’s Name) | उमाबाई |
बेटे (Son) | 2 |
बेटी (Daughter) | – |
सदाशिव राव का प्रारंभिक जीवन
सदाशिवराव जिनकी मां रुखमा बाई कि उस समय मृत्यु हो गई जब सदाशिवराव मात्र 1 महीने के थे। उनके जीवन में उन्होंने बहुत दुखों का सामना किया जब 10 साल के थे तब उनके पिता की भी अकस्मात मृत्यु हो गयी। उनकी पूरी शिक्षा महाराष्ट्र के सतारा में ही पूरी हुई। उनके माता पिता की मृत्यु के बाद वे अकेले हो गए थे, परंतु उनकी चाची काशीबाई और उनकी दादी राधा बाई ने उन्हें उनके माता-पिता की कमी कभी भी महसूस नही होने दी। उन दोनों ने मिलकर सदाशिव को अपने बच्चे से भी ज्यादा प्यार दिया। उनकी पूरी शिक्षा-दीक्षा उन्हें रामचंद्र बाबा शेनवी से प्राप्त हुई। नानासाहेब जिनको बालाजी बाजीराव के नाम से भी जाना जाता था, वे सदैव ही सतारा में रहे और बाद में वे पेशवा बन गए।
बाबूजी नाईट और फतेह सिंह भोंसले को सौंपे गए कार्य में जब वे असफल रहे तो उन दोनों के सभी कार्य सदाशिव को सौंपे गए। उन्होंने अपने कार्यों को बखूबी निभाते हुए सन 1746 कर्नाटक में एक अभियान चलाया। यह अभियान 1747 तक चलता रहा जिसकी मदद से जनवरी 1749 में उन्होंने कोल्हापुर के दक्षिण में अजरा में अपनी पहली लड़ाई जीती।
सदाशिव राव बने मराठा सेनापति
- मात्र 31 साल की उम्र में वे एक बहुत बड़ी सेना के नेतृत्व करते हुए नजर आए। उस समय वे अब्दाली से जंग के मैदान में लड़ाई करने के लिए कूच कर गए थे। उस दौरान उनके साथ विश्वास राव भी थे जिनकी उम्र मात्र 20 साल की जो बालाजी बाजीराव के सुपुत्र थे।
- पेशवाई के अगले पेशवा के लिए विश्वास राव का नाम पहले से ही घोषित कर दिया गया था। परंतु सबसे दुखद तो यह हुआ जब उस युद्ध के दौरान युद्ध के मैदान में ही उनकी मृत्यु हो गई। मात्र 20 साल की उम्र में ही विश्वास राव वीरगति को प्राप्त हुए।
- मराठा सेनापति बनने के बाद सदाशिव राव ने पानीपत की सबसे बड़ी लड़ाई में हिस्सा लिया। इस लड़ाई में उनका सामना अहमद शाह अब्दाली के साथ हुआ जो अफगानिस्तान पर शासन किया करता था।
- अहमद शाह अब्दाली ने सबसे बड़ा हमला जनवरी 1757 में दिल्ली में किया। दिल्ली में उसने बहुत कोहराम मचाया और उस समय लगभग एक माह तक दिल्ली में ही ठहर कर लोगों के साथ लूटपाट की. लगभग करोड़ों की संपत्ति वह लोगों से लूट चुका था।
- पेशवा के सभी महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी मराठा सेनापति सदाशिवराव पर ही थी, इसलिए दिल्ली को बचाने की जिम्मेदारी भी उन पर ही आई। यूरोपियन ढंग से अपनी सेना को तैयार करने के बाद उन्होंने सबसे पहले हैदराबाद में हुए हमले को बंद कराया और युद्ध जीतकर हैदराबाद से हमलावरों को भगा दिया।
- कई सारी रणनीतियां बनाने के बाद सदाशिवराव, अहमद अब्दाली से लड़ने के लिए मैदान में उतरे परंतु उनके सामने ज्यादा देर टिक नहीं सके और उनसे युद्ध हार गए।
मराठाओं के हारने के मुख्य कारण
- मराठों के युद्ध को हार जाने का सबसे पहला कारण यह था कि वे जिस प्रदेश में रहते थे वहां ज्यादा सर्दी नहीं पड़ती थी जबकि अफगानिस्तान से आए बागियों को सर्दी झेलने की आदत थी इसकी वजह से जहां युद्ध चल रहा था वहां की सर्दी मराठा नहीं झेल पाए। युद्ध में अपना कौशल सर्दी की वजह से नहीं दिखा पाए और युद्ध हार गए।
- युद्ध को हार जाने का दूसरा सबसे बड़ा कारण मराठों को न मिलने वाला खाना भी था। अफगानीयो ने यमुना नदी के किनारे ही अपना डेरा डाल लिया और वहीं पर रहकर आलू की खेती करने लगे, जिससे उन्हें वहां पर काफी लंबे समय तक टिकने में मदद मिली, परंतु मराठाओं के पास भोजन की कोई सुविधा नहीं थी और अबदालियों ने उनके दिल्ली से आने वाले भोजन की सप्लाई भी बंद करा दी थी, जिसकी वजह से वे वहां पर रहकर उचित खान-पान प्राप्त नहीं कर पा रहे थे।
- कई प्रदेशों की सेना एक साथ मिलकर अफगानी सेना के खिलाफ युद्ध लड़ रही थी जिसमें युद्ध की रणनीतियों पर उनके एकमत नहीं थे। जहां एक तरफ एक सरदार कुछ और रणनीति के साथ युद्ध लड़ना चाहते थे, वहीं दूसरी तरफ सदाशिवराव अपनी रणनीति का पालन करते हुए युद्ध लड़ना चाहते थे। जब सेना ने एकमत होकर युद्ध नहीं लड़ा तो उनकी हार निश्चित हो गयी थी।
- चौथे कारण के रूप में उनका शासन तंत्र सामने आया। जैसे-जैसे मराठा साम्राज्य देश के सभी राज्यों पर अपना शासन प्राप्त करता जा रहा था, वैसे वैसे वहां की जनता में लूट पाट जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही थी जिसकी वजह से जनता उनके विरुद्ध हो चुकी थी। सबसे बड़ा कारण पानीपत की लड़ाई का हारने का यही था कि जनता ने मराठाओं का साथ नहीं दिया।
- पांचवा सबसे महत्वपूर्ण कारण यह था कि अब्दाली की राजनीति बहुत ही शातिर दिमाग वाली थी। अब्दाली की राजनीति में दुश्मनों को दोस्त बनाना सम्मिलित था। अहमद शाह अब्दाली केवल लुटेरों से ही नही बल्कि हिंदू व मुस्लिम शासकों को पहले ही अपना दोस्त बना चुका था। जिसकी वजह से जब उसने भारत पर आक्रमण किया तो उसका सामना भारत में रहने वाले मुगलों और क्षत्रियों दोनों ने ही नहीं किया। ऐसे में मराठा सेना अकेली पड़ गई और युद्ध हार गई।
- मराठाओं की पानीपत की लड़ाई हारने का छठा कारण यह था कि वे अपने युद्ध की रणनीतियां व जीत को लेकर बेफिक्र हो गए थे। उनके अंदर जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास भरा हुआ था कि वे इस युद्ध को जीत ही जाएंगे। ऐसे में वे अपने परिवार को साथ लेकर मतलब महिलाओं व बच्चों को साथ लेकर युद्ध के मैदान में पहुंच चुके थे। जब युद्ध में हमले होने लगे तो आधी सेना स्त्रियों और बच्चों को बचाने में ही लगी रही ऐसे में वे युद्ध हार गए।
युद्ध में हुए इन सभी कारणों की वजह से युद्ध की हार का पूरा श्रेय सदाशिवराव को दिया गया। लोगों ने यही कहा कि सदाशिव राव की विफलताओं की वजह से पानीपत की यह लड़ाई भारतीय सैनिक द्वारा हारी गई। भारत के कई सारे शासक ऐसा सोचते थे कि यदि अहमद अब्दाली युद्ध जीत जाता है तो भारत छोड़कर अपने आप ही चला जाएगा। यदि वही मराठा और सदाशिवराव इस युद्ध को जीत जाते हैं तो वे अब्दाली पर राज करेंगे। ऐसी सोच रखते हुए कई सारे शासकों ने सदाशिव राव का युद्ध में साथ ही नहीं दिया जिसकी वजह से भी वे युद्ध हार गए। काफी लंबे समय तक पानीपत का वह युद्ध चलता रहा और आखिरकार 15 जनवरी 1761 ईस्वी को देश के लिए लड़ते हुए सदाशिव राव ने वीरगति प्राप्त की।