देवनारायण जी का जीवन परिचय इतिहास जयंती (Devnarayan Biography in Hindi)

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देवनारायण जी का जीवन परिचय

देवनारायण जी का जीवन परिचय इतिहास जयंती (Devnarayan Biography in Hindi)

देवनारायण जी भारत के राजस्थान राज्य के रहने वाले एक गुर्जर योद्धा थे, जिन्होंने बैसाला कबीले की स्थापना की थी. पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि वह विष्णु के एक अवतार थे, और उन्हें एक लोक देवता के रूप में पूजा जाता है. क्योकि उन्होंने अपना सारा जीवन लोगों के कल्याण में व्यतीत किया था. तब से उनके अनुयायियों ने उनसे प्रेरणा लेकर इस परम्परा को आगे बढ़ाया इस कार्य को वे बहुत ही अच्छे से कर भी रहे हैं. देवनारायण जी से जुडी कहानी एवं उनके जीवन के बारे में जानकारी हम यहाँ आपको बता रहे हैं. तो इस लेख के साथ अंत तक बने रहिये.   

Devnarayan Biography in Hindi

देवनारायण भगवान का जन्म परिचय (Devnarayan Birth and Introduction)

परिचय बिंदुपरिचय
पूरा नाम (Full Name)देवनारायण गुर्जर जी
अन्य नाम (Other Name)उदयसिंह, देव
पेशा (Profession)लोक देवता
हथियार (Weapons)तलवार एवं भाला
जन्म (Birth)1243 ई. (माघ महीने की शुक्ला पक्ष की छठ)
जन्म स्थान (Birth Place)मालासेरी
निवास क्षेत्र (Residencial Place)राजस्थान, उत्तरप्रदेश ओर मध्यप्रदेश
त्यौहार (Festival)देवनारायण जयंती, मकर सक्रांति एवं देव एकादशी
जाति (Caste)गुर्जर जाति

 

देवनारायण जी के परिवार की जानकारी (Devnarayan Family Details)

पिता का नाम (Father’s Name)राजा भोज (सवाई भोज) (वीर भोजा)
माता का नाम (Mother’s Name)साढू खटानी
पत्नी का नाम (Wife’s Name)रानी पीपलदे

 

देवनारायण जी का वंश (Devnarayan’s Vansh)

देवनारायण जी कौन से वंश से संबंध रखते हैं इसकी बात की जायें तो आपको बता दें कि वे बगडावत वंश के जोकि गुर्जर जाति से संबंध रखते है. यह अजमेर के पास में स्थित नाग पहाड़ था. दरअसल अजमेर में रहने वाले चौहान राजाओं द्वारा बगडावतों को गोठा जोकि एक स्थान है वह सौंप दिया गया था. आज के समय में गोठा भीलवाड़ा से अजमेर जिले के आसपास का क्षेत्र है. बगडावत अपने सभी भाइयों के साथ वहां पर अच्छे से बस गये थे. वे इतने वीर थे कि उनकी चर्चाएँ मेवाड़ तक फैली हुई थी. इस वंश के सबसे पहले राजा हरिराव थे जिनके पुत्र का नाम था बाघराव. और इनके 24 पुत्र थे जिनमें से एक देवनारायण जी के पिता यानि कि सवाई भोज (राजा भोज) थे.  

देवनारायण जी के जन्म के पहले की कथा (Devnarayan Story)

देवनारायण जी के पिता ने 2 विवाह किये थे. जिसमें से एक उज्जैन के रहने वाले सामंत दूधा खटाना की पुत्री साढू खतानी के साथ था, और दूसरी कोटपूतली के रहने वाले पदम पोसवाल की पुत्री पदमा थी. राजस्थान में मारवाड़ के पास में एक जगह थी जिसका नाम था गढ़ बुवाल जहाँ के सीमांत इडदे सोलंकी थे. उनकी राजकुमारी जिसका नाम जयमती था वह सवाई भोज से बहुत प्रभावित थी, इसलिए वे उनसे विवाह करना चाहती थी. दूसरी तरफ सोलंकी जी जयमती का विवाह किसी और से करना चाहते थे, उनका नाम था राणा दुर्जनसाल, जोकि राण के राजा थे. किन्तु विवाह में सहमती नहीं होने की वजह से राणा दुर्जनसाल और सवाई भोज के बीच युद्ध छिड़ गया. और राणा दुर्जनसाल ने अपनी सेना के साथ मिलकर बगडावतों का वध कर दिया. लेकिन इस युद्ध से दुर्जनसाल को कोई फायदा नहीं हुआ क्योकि इसमें जयमती की भी मृत्यु हो गई थी. जिसकी वजह से राणा दुर्जनसाल ने सवाई भोज का पूरा वंश खत्म करने की ठान ली.        

देवनारायण जी का शुरूआती जीवन (Devnarayan’s Early Life)

देवनारायण जी की माता इनके पिता की दूसरी पत्नी थी. इनकी माता के एक गुरु जिनका नाम रूपनाथ था. जब वे गर्भवती थी तो उनके गुरु ने उन्हें यह बताया कि आपकी कोख में जो बच्चा है वह एक बहुत ही महान व्यक्ति होगा. जोकि अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लड़ेगा. वे अपने पुत्र को राणा दुर्जनसाल से बचाने के लिए मालासेरी चली गई और वहीँ पर देवनारायण जी पैदा हुए. इनके बचपन का नाम उदयसिंह था. किन्तु इनके बारे में राणा दुर्जनसाल को खबर लग गई और वह उन्हें मारने का निर्णय कर सेना को उनके पीछे जाने को बोल दिया. किन्तु देवनारायण जी की माता को जब इसकी भनक लगी तो उन्होंने मालासेरी से भागने का फैसला किया और वे अपने मायके चली है. उनका मायका देवास में था. वहीँ पर देवनारायण जी पले बढ़े. जैसे जैसे वे बड़े होते गए उन्होंने अनेक चीजों में शिक्षा प्राप्त करनी शुरू कर दी. जिसमें घुड़सवारी एवं हथियार चलाना आदि शामिल था. इसके बाद उन्होंने भगवान की साधना में लीन होने का फैसला किया, और उन्होंने शिप्रा नदी के किनारे जाकर एक स्थान पर साधना करना शुरू कर दी. वह स्थान वही पर एक सिद्ध वट नाम का है. वहां पर उन्होंने अपने गुरुओं से तंत्र की शिक्षा भी प्राप्त की. और जब तक वे अपनी युवावस्था में पहुंचे तब तक वे एक बहुत ही शक्तिशाली योद्धा बन चुके थे. इसके बाद वे गोठा जाने के लिए एक दम तैयार हो गए थे.   

देवनारायण जी के चमत्कार (Devnarayan Miracles)

देवनारायण जी भगवान विष्णु की साधना कर एक शक्तिशाली व्यक्ति बन गये थे. एक बार की बात है धार के रहने वाले राजा जयसिंह की एक पुत्री थी जिसका नाम था पीपलदे, वे काफी बीमार थी. देवनारायण जी ने उन्हें अपनी शक्तियों से एकदम ठीक कर दिया. और उसके बाद उन्हीं के साथ उनका विवाह भी हुआ. देवनारायण जी ने कुछ आश्चर्यजनक कार्य किये थे, जिनमें सूखी नदी में पानी पैदा करना, सारंग सेठ को पुनर्जीवित कर देना, छोंछु भाट को जीवित करना जैसे किस्से सामने आते हैं. लोगों ने उसे उनका चमत्कार माना.

उनके इसी तरह के कई चमत्कारों के चलते ही उनके अनुयायी उन्हें भगवान विष्णु का अवतार कहते थे. इन्हें भगवान विष्णु की आराधना करने से जो शक्तियां प्राप्त हुई थी, उसका उपयोग उन्होंने हमेशा ही लोगों के कल्याण एवं उनकी हमेशा मदद करने के लिए किया. इसी वजह से उन्हें लोग पूजते थे.

देवनारायण जी की मृत्यु (Devnarayan’s Death)

देवनारायण जी केवल 31 वर्ष के थे जब उनका देहवसान हो गया. कुछ लोगों का कहना है कि वह तिथि जिसमें देवनारायण जी ने अपना देह त्याग किया था, वैसाख के शुल्क पक्ष की तृतीय तिथि थी जिस तिथि को अक्षय तृतीय भी कहा जाता है. तो कुछ कहते हैं कि वे भाद्रपद की शुल्क पक्ष की सप्तमी के दिन बैकुंठ वासी बने थे. 

देवनारायण जी की फड़ (Devanarayan Phad)

जिस तरह से भगवान श्रीराम जी की पूरी गाथा को रामायण एवं रामचरितमानस में व्याख्यित किया गया है. उसी तरह से देवनारायण जी एवं उनके पिता सवाई राजा भोज की कहानी को देवनारायण की फड़ में बताया गया है. इसमें अद्भुत चित्र द्वारा पूरी कथाओं को प्रदर्शित किया गया है. जोकि काफी आकर्षक लगती है. आगे जाकर यह भारत की लोक संस्कृति बन गई.

देवनारायण जी के बारे में रोचक जानकारी (Devnarayan Interesting Facts)

  • राजस्थान के निवासी देवनारायण जी की पूजा करते हैं, मुख्य रूप से देवनारायण जी का जो सबसे सिद्ध पूजा स्थल है वह भीलवाड़ा जिले के पास स्थित आसींद में है. और हर साल उनकी जन्म तिथि के दिन यहाँ पर खीर एवं चूरमा का भोग लगाकर उनकी पूजा की जाती है.
  • देवनारायण जी का जो वंश हैं वह गुर्जर जाति से संबंध रखता हैं और साथ ही इनके सबसे ज्यादा भक्त भी गुर्जर जाति के ही थे.
  • गुर्जर जाति के लोगों में यह मान्यता है कि देवनारायण जी की जन्म एवं मृत्यु दोनों तिथि में वे दूध को फाड़ते या जमाते नहीं है. और सबसे खास बात यह है कि यहाँ पर दूध का व्यापार भी सबसे ज्यादा इसी जाति के लोग करते हैं.
  • देवनारायण जी एवं उनके पूर्वजों की गाथाओं को ना केवल ‘देवनारायण की फड़’ में दर्शाया गया है, बल्कि ‘बगडावत महाभारत’ में भी इनकी कहानी को बहुत अच्छे तरीके से दर्शाया गया है. इस तिथि में लोग इन महाकाव्य का गायन करते हैं.
  • देवनारायण जी के काव्य ‘बगडावत महाभारत’ के बारे में रोचक बात यह हैं कि यह बहुत ही विशाल है. इसे जब प्रतिदिन 3 पहर में गाया जाता हैं तब जाकर यह 6 महीने में पूरी हो पाती है.
  • देवनारायण जी का अन्य पूजा स्थल जोधपुरिया में भी स्थित है, जोकि उनका देवधाम भी कहा जाता है. यह क्षेत्र टोंक जिले में स्थित हैं. इस प्रसिद्ध मंदिर में देवनारायण जी की पूजा के साथ एक लोह भी चलाई जाती हैं जोकि देशी घी की होती हैं, और यह अखंड होती

अतः इसलिए देवनारायण जी को हमारे देश के राजस्थान राज्य में लोग एक भगवान के रूप में पूजते हुए उनकी अराधना करते हैं.

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