दूरदर्शन की उपयोगिता
आज घर-घर में टेलीविजन हैं। टेलीविजन एक प्रभावशाली प्रचार माध्यम बन चुका है। इस पर दिन-रात कोई न कोई कार्यक्रम आजा ही रहता है। फिल्म, चित्रहार, रामायण, महाभारत और अनेक धारावाहिक तो बूढ़ों से लेकर बच्चों तक सबकी जुबान पर रहते हैं। सारे काम धंधे को छोडक़र लोग इन कार्यक्रमों को देखने के लिए टी.वी. सेट के करीब खिंचे चले आते हैं। रेडियो-प्रसारण में वक्ता अथवा गायक की आवाज रेडियोधर्मी तरंगों द्वारा श्रोता तक पहुंचती है। इस कार्यक्रम ट्रंासमीटर की मुख्य भूमिका होती है। रेडियो तरंगे एक सेकंड में 3 लाख किलोमीटर की गति से दौड़ती हैं। दूरदर्शन में जिस व्यक्ति अथवा वस्तु का चित्र भेजना होता है, उससे परावर्तित प्रकाश की किरणों को बिजली की तरंगों में बदला जाता है, फिर उस चित्र को हजारों बिंदुओं में बांट दिया जाता है। एक-एक बिंदु के प्रकाश को एक सिरे से क्रमश: बिजली की तरंगों में बदला जाता है। इस प्रकार टेलीविजन का एंटेना इन तरंगों को पकड़ता है। विद्युत तरंगों से सेट में एक बड़ी ट्यूब के भीतर ‘इलेक्ट्रॉन’ नामक विद्युत कणों की धारा तैयार की जाती है। ट्यूब की भीतरी दीवार में एक मसाला लगा होता है। इस मसाले के कारण चमकर पैदा होती है। सफेद भाग पर ‘इलेक्ट्रॉन’ का प्रभाव ज्यादा होता है और काले भाग पर कम। टेलीविजन समुद्र के अंदर खोज करने में बड़ा सहायक सिद्ध होता है। चांद के धरातल का चित्र देने में भी यह सफल रहा। आज बाजार में रंगीन, श्वेत-श्याम, बड़े मझले तथा छोटे हर तरह के टेलीविजन सेट उपलब्ध हैं। सन 1925 में टेलीविजन का अविष्कार हुआ था। ग्रेट ब्रिटेन के एक वैज्ञानिक जॉन एल-बेयर्ड ने टेलिविजन का अविष्कार किया था। हमारे देश में टेलीविजन द्वारा प्रयोग के तौर पर 15 सितंबर 1951 को नई दिल्ली के आकाशवाणी केंद्र से इसका प्रथम प्रसारण किया गया था। प्रथम सामान्य प्रसारण नई दिल् ी से 15 अगस्त, 1965 को किया गया था। और हां, एक समय ऐसा आया, जब आकाशवाणी और दूरदर्शन एक-दूसरे से अलग हो गए। इस तरह से 1976 को दोनों माध्यम एक-दूसरे से स्वतंत्र हो गए। टेलीविजन के राष्ट्रीय कार्यक्रमों का प्रसारण ‘इनसेट-1 ए’ के माध्यम से 15 अगस्त 1982 से प्रारंभ हो गया था। उसके बाद आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, महाराष्ट्र में इसके प्रसारण केंद्र खोले गए। इस तरह टेलीविजन के विविध कार्यक्रमों का प्रसारण होने लगा। भारत में टेलीविजन तेजी से चचित होता जा रहा है। सन 1951 में टी.वी. ट्रांसमीटर की संख्या मात्र 1 थी। यह ट्रांसमीटर दिल्ली में स्थापित किया गया था। इनकी संख्या बढ़ते-बढ़ते सन 1973 में 42 तक पहुंच गई। वर्ष 1984 में यह संख्या 126 थी। कम शक्ति के ट्रांसमीटरों की स्थापना के साथ ही देश में टी.वी. ट्रंासमीटरों की संख्या 166 हो गई। 5 सितंबर 1987 तक देश के पास 201 ट्रंासमीटर थे। इनके बारह पूर्ण विकसित केंद्र, आठ रिले ट्रांसपमीटर वाले छह इनसेट केंद्र और 183 लो पॉवर ट्रांसमीटर थे। टेलीविजन आज अपने लगभग 300 ट्रंासमीटरों के साथ देश के 47 प्रतिशत क्षेत्र में फेली 70 प्रतिशत आबादी की सेवा करता है। सबसे बड़ी बात यह है कि दूरदर्शन के माध्यम से हम घर बैइे दुनिया की सैर कर लेते हैं। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, फिल्मोत्सव, ओलंपिक और क्रिकेट मैचों के सजीव प्रसारण देखकर मन झूम उठता है। समय-समय पर कई विशेष कार्यक्रमों का प्रसारण तो देखते ही बनता है।