दीपावली पर निबंध – Diwali Essay In Hindi

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दीपावली पर निबंध – Diwali Essay In Hindi

Essay On Diwali In Hindi

भूमिका

भारत को त्यौहारों का देश माना जाता है। भारत के प्रमुख त्यौहार होली, रक्षाबंधन, दशहरा और दीपावली हैं पर इन सभी त्यौहारों में दीपावली सबसे अधिक प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार दीपों का पर्व है। जब हम अज्ञान रूपी अंधकार को हटाकर ज्ञान रूपी प्रकाश प्रज्ज्वलित करते हैं तो हमें एक असीम और आलौकिक आनन्द का अनुभव होता है। दीपावली भी ज्ञान रूपी प्रकाश का प्रतीक है।

इस दिन दीप जलाये जाते हैं इसलिए इसे दीपों का पर्व भी कहा जाता है। दीपावली को तद्भव भाषा में दीवाली भी कहा जाता है। दीपावली को हिन्दुओं का सबसे प्रमुख त्यौहार माना जाता है। दीपावली को लोग बहुत ही उत्साह के साथ मनाते है।

दीपावली का त्यौहार पांच दिन तक मनाया जाता है। दशहरे के त्यौहार के बाद से ही दीपावली की तैयारियां की जाने लगती हैं। जो लोग नौकरियां करते हैं उन्हें दीपावली का पर्व मनाने के लिए कुछ दिनों की छुट्टियाँ भी दी जाती हैं ताकि वे अपने परिवार के साथ खुशी से दीपावली मना सकें।

दीपावली को अक्टूबर या नवम्बर के महीने में मनाया जाता है।  इस पर्व के दिन लोग रात को अपनी प्रसन्नता प्रकट करने के लिए दीपों की पंक्तियाँ जलाते हैं और प्रकाश करते हैं। नगर और गाँव दीपों की पंक्तियों से जगमगाने लगते हैं ऐसा लगता है मानो रात दिन में बदल गयी हो।

दीपावली का अर्थ

दीपावली शब्द संस्कृत से लिया गया है। दीपावली दो शब्दों से मिलकर बना होता है दीप और आवली जिसका अर्थ होता है दीपों से सजा। दीपावली को रोशनी का त्यौहार और दीपोत्सव भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन चारों और दीपों की रोशनी होती है। इस दिन हम सभी दीपों की पंक्ति बनाकर अंधकार को मिटाने में जुट जाते हैं और अमावस्या की अँधेरी रात जगमग असंख्य दीपों से जगमगाने लगती है।

दीपावली का यह पावन पर्व कार्तिक मांस की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। गर्मी और वर्षा ऋतू को विदा कर शीत ऋतू के स्वागत में यह पर्व मनाया जाता है। उसके बाद शीत के चन्द्र की कमनीय कलाएं सबके चित्त-चकोर को हर्ष विभोर कर देती है। शरद पूर्णिमा को ही भगवान कृष्ण ने महारास लीला का आयोजन किया था। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।

दीपावली का इतिहास

जब भगवान श्री राम लंकापति रावण को मारकर और चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे थे तो अयोध्यावासियों ने उनके आगमन पर प्रसन्नता प्रकट करने के लिए और उनका स्वागत करने के लिए दीपक जलाए थे। उसी दिन की पावन स्मृति में यह दिन बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है।

इस दिन के अवसर पर भगवान राम की स्मृति बिलकुल ताजा हो जाती है। इस दिन समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी जी का जन्म हुआ था इसी वजह से दीपावली पर लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है और घर में धन-धान और एश्वर्य की कामना की जाती है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध भी किया था।

दीपावली की तैयारियां

दीपावली की तैयारियां लोग दशहरे से ही करने लग जाते हैं। दीपावली से पहले सभी लोग अपने घरों की सफाई करते हैं और घर की लिपाई-पुताई करवाते हैं। दीपावली के अवसर पर लोग अपने लिए नए कपड़े, मोमबत्तियां, खिलौने, पटाखे, मिठाईयां, रंगोली बनाने के लिए रंग और घरों को सजाने के लिए बहुत सामान खरीदते हैं।

दीपावली के दिन पहनने के लिए नए कपड़े बनवाए जाते हैं, मिठाईयां बनाई जाती हैं। घरों को सजाने के लिए बिजली से जलने वाली झालर लगाई जाती है। दीपावली भारत का सबसे अधिक प्रसन्नता और मनोरंजन का पर्व है। इस दिन बच्चों से लेकर बूढों तक में खुशी की लहर उत्पन्न हो उठती है।

आतिशबाजी और पटाखों की आवाज से सारा आकाश गूंज उठता है। लोग शरद ऋतू के आरम्भ में घरों की लिपाई पुताई करवाते हैं तथा कमरों को चित्रों से सजवाते हैं। अच्छी तरह से साफ-सफाई करने की वजह से मक्खी-मच्छर भी दूर हो जाते हैं।

दीपावली पर्व का महत्व

दीपावली का भारत देश में बहुत अधिक महत्व है। इस दिन को अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक माना जाता है। इस दिन को बहुत ही सुंदर और बड़े पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है। दीपावली के दिन धन की देवी लक्ष्मी जी, सरस्वती जी और गणेश भगवान की पूजा की जाती है।

हिन्दू महाकाव्य रामायण के अनुसार दीपावली का त्यौहार श्री राम भगवान, सीता माता और लक्ष्मण के 14 वर्ष 2 महीने के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। भारत के कुछ क्षेत्रों में महाकाव्य महाभारत के अनुसार दीपावली त्यौहार को पांडवों के 12 वर्ष के वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद लौटने की खुशी में भी मनाया जाता है।

ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन देवी-देवताओं और राक्षसों द्वारा समुद्र मंथन करते समय माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था। भारत के कुछ पूर्वी और उत्तरी क्षेत्रों में नव हिंदी वर्ष के रूप में भी इस त्यौहार को मनाया जाता है।

दीपावली का वर्णन

दीपावली त्यौहार कार्तिक माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। दीपावली का त्यौहार पांच दिनों तक चलने वाला सबसे बड़ा त्यौहार होता है। दीपावली से तीन दिन पहले धनतेरस आती है इस दिन अहोई माता का पूजन किया जाता है। इस दिन के अवसर पर लोग पुराने बर्तनों को बेचते हैं और नए बर्तनों को खरीदते हैं।

सभी बर्तनों की दुकानें बर्तनों से बहुत ही अनोखी दिखाई देती है। चतुर्दशी के दिन लोग घरों के कूड़े-करकट को बाहर निकालते हैं। कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। धनतेरस के दिन व्यापारी अपने नए बहीखाते बनाते हैं।

अगले दिन नरक चौदस के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना अच्छा माना जाता है। अमावस्या के दिन लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है। पूजा में खील-बताशे का प्रसाद चढाया जाता है। नए कपड़े पहने जाते हैं। असंख्य दीपों की रंग-बिरंगी रोशनियाँ मन को मोह लेती हैं।

दुकानों, बाजारों और घरों की सजावट दर्शनीय रहती है। अगला दिन परस्पर भेंट का दिन होता है। एक-दूसरे के गले लगकर दीपावली की शुभकामनाएँ दी जाती हैं। गृहिणियां मेहमानों का स्वागत करती हैं। लोग छोटे-बड़े, अमीर-गरीब का भेदभाव भूलकर आपस में मिलकर इस त्यौहार को मनाते हैं।

महापुरुषों का निर्वाण दिवस

दीपावली के दिन ही जैनियों के तीर्थकर महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया था। इसी वजह से यह दिन जैन भाईयों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। स्वामी दयानन्द और स्वामी रामतीर्थ भी इसी दिन निर्वाह को प्राप्त हुए थे। ऋषि निर्वाणोत्सव का दिन आर्य समाजी भाईयों के लिए विशेष महत्व रखता है। सिक्ख भाई भी दीपावली को बड़े समारोह के साथ मनाते हैं। इस प्रकार यह दिन धार्मिक दृष्टि से बड़ा पवित्र होता है।

लक्ष्मी पूजन

यह पर्व शुरू में महालक्ष्मी पूजा के नाम से मनाया जाता था। कार्तिक अमावस्या के दिन ही समुद्र मंथन में महालक्ष्मी जी का जन्म हुआ था। आज भी इस दिन घरों में महालक्ष्मी जी की पूजा की जाती है।

इस दिन लोग अपने ईष्ट बन्धुओं और मित्रों को बधाई देते हैं और नूतन वर्ष में सुख-समृदधि की कामना करते हैं। बालक-बालिकाएं नए कपड़े पहनकर मिठाईयां बांटते हैं। रात के समय में आतिशबाजी चलाते हैं। बहुत से लोग रात के समय लक्ष्मी पूजन भी करते हैं। कहीं-कहीं पर दुर्गा सप्तमी का पाठ किया जाता है। जो लोग तामसिक वृत्ति के होते हैं वे जुआ खेलकर बुद्धि नष्ट करते हैं।

स्वच्छता का प्रतीक

दीपावली जहाँ पर अंत:करण के ज्ञान का प्रतीक है वहीं पर बाह्य स्वच्छता का भी प्रतीक है। घरों में मच्छर, खटमल, पिस्सू आदि धीरे-धीरे अपना घर बना लेते हैं। मकड़ी के जाले लग जाते हैं इसीलिए दीपावली से कई दिन पहले से ही घरों की सफाई, लिपाई, पुताई और सफेदी होने लग जाती है। सारे घर को चमकाकर स्वच्छ किया जाता है। लोग अपनी परिस्थिति के अनुकूल घरों को सजाते हैं।

बुराईयाँ

किसी अच्छे उद्देश्य को लेकर बने त्यौहार में भी कालान्तर में विकार पैदा हो जाते हैं। जिस लक्ष्मी की पूजा लोग धन-धान्य की प्राप्ति हेतु बड़ी श्रद्धा से करते थे उनकी पूजा बहुत से लोग जुआ खेलने के लिए भी करते हैं। जुआ खेलना एक प्रथा बन गयी है जो समाज व पावन पर्वों के लिए एक कलंक के समान है।

इसके अलावा आधुनिक युग में बम्ब पटाखों से हुए कई दुष्परिणाम भी देखने को मिलते हैं। आज के समय में पुरे भारत में पटाखों का प्रयोग बहुत ही जोर-शोर से होता है। ऐसा माना जाता है कि दीपावली के दिन भारत के प्रदुषण की मात्रा 50% बढ़ जाती है। पटाखों का उपयोग करके हम थोड़ी देर के मजे के लिए अपने पर्यावरण को बहुत हद तक बर्बाद कर देते हैं।

आतिशबाजी हमारे शरीर और पर्यावरण दोनों के लिए बहुत ही हानिकारक होती है। दीपावली में पटाखों का प्रयोग करके हम भारतीय केवल भारत का ही नहीं बल्कि पूरे विश्व का प्रदुषण बढ़ाते हैं। पटाखों के कारण ऐसे बहुत से हादसे होते हैं जिनका शिकार बच्चे से लेकर बड़े तक हो जाते हैं।

पटाखों के धुएं की वजह से अस्थमा और कई प्रकार की अन्य बीमारियाँ हो जाती हैं। पटाखों की वजह से सभी तरह का प्रदुषण होता है जैसे – धुएं के कारण वायु प्रदुषण, पटाखों की आवाज के कारण ध्वनि प्रदुषण, जहरीले पदार्थ धरती पर गिर जाने से भूमि प्रदुषण, पटाखों का जहरीला पदार्थ पानी में मिल जाने की वजह से जल प्रदुषण आदि।

उपसंहार

दीपावली हमारा धार्मिक त्यौहार है। दीपावली का पर्व सभी पर्वों में एक विशिष्ट स्थान रखता है। हमें अपने पर्वों की परम्पराओं को हर स्थिति में सुरक्षित रखना चाहिए। परम्पराओं से हमें उसके आरम्भ और उसके उद्देश्य को याद करने में आसानी होती है।

परम्पराएँ हमें उस पर्व के आदिकाल में पहुंचा देती हैं जहाँ पर हमें अपनी आदिकालीन संस्कृति का ज्ञान होता है। आज हम अपने त्यौहारों को भी आधुनिक सभ्यता का रंग देकर मनाते हैं लेकिन हमें उसके आदि स्वरूप को बिगाड़ना नहीं चाहिए। इसे हमेशा यथोचित रीति से मनाना चाहिए।

जुआ और शराब का सेवन बहुत ही बुरा होता है हमें सदैव इससे बचना चाहिए। आतिशबाजी पर अधिक व्यय नहीं करना चाहिए। हम सभी का कर्तव्य होता है कि हम अपने पर्वों की पवित्रता को बनाये रखें। इस दिन लोग व्याख्यान देकर जन साधारण को शुभ मार्ग पर चला सकते हैं।

यह त्यौहार नया जीवन जीने का उत्साह प्रदान करता है। हमें  इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि हमारे किसी भी काम और व्यवहार से किसी को भी दुःख न पहुंचे तभी दीपावली का त्यौहार मनाना सार्थक होगा।

Essay On Diwali In English

Bhumika

Bharat ko tyauharon ka desh mana jata hai. Bharat ke pramukh tyauhar Holi, Rakshabandhan, Dashhara or Dipawali hain par in sabhi tyauharon me Dipawali sabse adhik pramukh tyauhar hai. Yah tyauhar dipon ka parv hai. Jab ham agyan rupi andhkar ko hatakar gyan rupi prakash prajjvalit karte hain to hamen ek aseem or aalaukik aanand ka anubhav hota hai. Dipawali bhi gyan rupi prakash ka pratik hai.

Is din deep jalaye jate hain isliye ise dipon ka parv bhi kaha jata hai. Dipawali ko tadbhav bhasha me Diwali bhi kaha jata hai. Dipawali ko hinduon ka sabse pramukh tyauhar mana jata hai. Dipawali ko log bahut hi utsah ke sath manate hain.

Dipawali ka tyauhar panch din tak manaya jata hai. Dashhare ke tyauhar ke baad se hi Dipawali ki taiyariyan ki jane lagti hain. Jo log naukriyan karte hain unhen Dipawali ka parv manane ke liye kuch dinon ki chhuttiyan bhi di jati hain taki ve apne parivar ke sath khushi se Dipawali mana saken.

Dipawali ko october ya november ke mahine me manaya jata hai. Is parv ke din log raat ko apni prasannta prakat karne ke liye dipon ki panktiyan jalate hain or prakash karte hain. Nagar or ganv dipon ki panktiyon se jagmagane lagte hain aesa lagta hai mano raat din me badal gayi ho.

Dipawali ka arth 

Dipawali shabd Sanskrat se liya gaya hai. Dipawali do shabdon se milkar bana hota hai dip or aavli jiska arth hota hai dipon se saja. Dipawali ko roshni ka tyauhar or dipotsav bhi kaha jata hai kyonki is din charon or dipon ki roshni hoti hai. Is din ham sabhi dipon ki pankti banakar andhkar ko mitane me jut jate hain or amavasya ki andheri raat jagmag asankhya dipon se jagmagane lagti hai.

Dipawali ka yah pavan parv kartik mans ki amavasya ke din manaya jata hai. Garmi or varsha ritu ko vida kar sheetritu ke svagat me yah parv manaya jata hai. Uske baad sheet ke chandra ki kamniya kalayen sabke chitt-chakor ko harsh vibhor kar deti hai. Sharad purnima ko hi bhagvan Krishna ne maharas leela ka aayojan kiya tha. Ise burayi par achhayi ki jeet ka pratik mana jata hai.

Dipawali ka itihas 

jab bhahvan Shree Ram Lankapati Ravan ko markar or chaudah varsh ka vanvas katkar Ayodhya laute the to ayodhyavasiyon ne unke aagman par prasannta prakat karne ke liye or unka svagat karne ke liye deepak jalaye the. Usi din ki pavan smrati me yah din bade hi utsah se manaya jata hai.

Is din ke avsar par bhagvan Ram ki smrati bilkul taja ho jati hai. Is din samudra manthan ke samay Lakshmi ji ka janam huaa tha isi vajah se Dipawali par Lakshmi ji ki pooja ki jati hai or ghar me dhan-dhaan or aeshvarya ki kamna ki jati hai. Isi din bhagvan Shree Krishna ne narkasur namak rakshas ka vadh bhi kiya tha.

Dipawali ki taiyariyan 

Dipawali ki taiyariyan log Dashahare se hi karne lag jate hain. Dipawali se pahle sabhi log apne gharon ki safayi karte hain or ghar ki lipayi-putayi karvate hain. Dipawali ke avsar par log apne liye naye kapde, mombattiyan, khilaune, patakhe, mithayiyan, rangoli banane ke liye rang or gharon ko sajane ke liye bahut saman kharidte hain.

Dipawalli ke in pahanane ke liye naye kapde banvaye jate hain, mithayiyan banayi jati hain. Gharon ko sajane ke liye bijli se jalne vali jhalar lagayi jati hai. Dipawali Bharat ka sabse adhik prasannta or manoranjan ka parv hai. Is din bacchon se lekar budhon tak me khushi ki lahar utpann ho uthti hai.

Aatishbaji or patakhon ki aavaj se sara aakash guunj uthta hai. Log sharad ritu ke aarmbh me gharon ki lipayi putayi karvate hain tatha kamron ko chitrin se sajvate hain. Achhi tarah se saaf-safayi karne ki vajah se makkhi-macchar bhi door ho jate hain.

Dipawali parv ka mahatva 

Dipawali ka bharat desh me bahut adhik mahatva hai. Is din ko andhkar par prakash ki vijay ka pratik mana jata hai. Is din ko bahut hi sundar or bade parnparik tarike se manaya jata hai. Dipawali ke din dhan ki devi Lakshmi ji, Saraswati ji or Ganesh bhagvan ki pooja ki jati hai.

Hindu Mahakavya Ramayana ke anusar Dipawali ka tyauhar Shree Ram bhagvan, Seeta mata or Lakshman ke 14 varsh 2 mahine ke vanvas ke baad Ayodhya lautne ki khushi me manaya jata hai. Bharat ke kuch kshetron me Mahakavya Mahabharat ke anusar Dipawali tyauhar ko Pandavon ke 12 varsh ke vanvas or 1 varsh ke agyatvas ke baad lautne ki khushi me bhi manaya jata hai.

Aesa bhi mana jata hai ki is din devi-devtaon or rakshason dvara samudra manthan karte samaya mata Lakshami ka janam huaa tha. Bharat ke kuch purvi or uttari kshetron me nav Hindi varsh ke rup me bhi is tyauhar ko manaya jata hai.

Dipawali ka varnan 

Dipawali tyauhar kartik maah ki amavasya ke din manaya jata hai. Dipawali ka tyauhar panch dinon tak chalne vala sabse bada tyauhar hota hai. Dipawali se teen din pahle Dhanteras aati hai is din Ahoyi Mata ka pujan kiya jata hai. Is din ke avsar par log purane bartanon ko bechte hain or naye bartanon ko kharidte hain.

Sabhi bartanon ki dukanen bartanon se bahut hi anokhi dikhayi deti hai. Chaturdashi ke din log gharon ke kude-karkat ko bahar nikalte hain. Kartik maah ki amavasya ko Dipawali ka tyauhar badi dhumdham se manaya jata hai. Dhanteras ke din vyapari apne naye bahikhate banate hain.

Agle din narak chaudas ke din suryoday se pahle snan karna accha mana jata hai. Amavasya ke din Lakshmi ji ki pooja ki jati hai. Pooja me kheel-batashe ka prasad chadhaya jata hai. Naye kapde pahne jate hain. Asankhya dipon ki rang-birangi roshniyan man ko moh leti hain.

Dukanon, bajaron or gharon ki sajavat darshniya rahti hai. Agla din parspar bhent ka din hota hai. Ek-dusre ke gale lagkar Dipawali ki shubhkamnayen di jati hain. Grahiniyan mehmanon ka svagat karti hain. Log chhote-bade, ameer-garib ka bhedbhav bhulkar aapas me milkar is tyauhar ko manate hain.

Mahapurushon ka nirvan divas 

Dipawali ke din hi jainiyon ke tirthkar mahaveer Swami ne nirvan prapt kiya tha. Isi vajah se yah din jain bhayiyon ke liye bahut mahatvapurn hai. Swami Dayanand or Swami Ramtirth bhi isi din nirvah ko prapt huye the. Rishi Nirvanotsav ka din aarya samaji bhayiyon ke liye vishesh mahatva rakhta hai. Sikkha bhai bhi Dipawali ko bade samaroh ke sath manate hain. Is prakar yah din sharmik drashti se bada pavitra hota hai.

Lakshmi Pujan 

Yah parv shuru me mahalakshmi pooja ke name se manaya jata tha. Kartik amavasya ke din hi smudra manthan me Mahalakshmi ji ka janam huaa tha. Aaj bhi is din gharon me Mahalakshmi ji ki pooja ki jati hai.

Is din log apne yisht bandhuon or mitron ko badhayi dete hain or nutan varsh me sukh-samraddhi ki kamna karte hain. Balak-balikayen naye kapde pahankar mithayiyan bantte hain. Raat ke samay me aatishbaji chalate hain. Bahut se log raat ke samay Lakshmi pujan bhi karte hain. Kahin-kahin par Durga Saptmi ka paath kiya jata hai. Jo log tamsik vratti ke hote hain ve juaa khelkar buddhi nasht karte hain.

Swachhta ka pratik 

Dipawali jahan par antahkaran ke gyan ka pratik hai vahin par bahay swachhta ka bhi pratik hai. Gharon me macchar, khatmal, pissu aadi dheere-dheere apna ghar bana lete hain. Makdi ke jaale lag jate hain isliye Dipawali se kayi din pahle se hi gharon ki safayi, lipayi, putayi or safedi hone lag jati hai. Sare ghar ko chamkakar swachh kiya jata hai. Log apni paristhiti ke anukul gharon ko sajate hain.

Burayiyan 

Kisi acche uddeshya ko lekar bane tyauhar me bhi kalantar me vikar paida ho jate hain. Jis Lakshmi ki pooja log dhan-dhanya ki prapti hetu badi shraddha se karte the unki pooja bahut se log juaa khelne ke liye bhi karte hain. Juaa khelna ek pratha ban gayi hai jo samaj va pavan parvon ke liye ek kalank ke saman hai.

Iske alava adhunik yug me bamb patakhon se huye kayi dushparinam bhi dekhne ko milte hain. Aaj ke samay me pure Bharat me patakhon ka prayog bahut hi jor-shor se hota hai. Aesa mana jata hai ki Dipawali ke din Bharat ke pradushan ki matra 50% badh jati hai. Patakhon ka upyog karke ham thodi der ke maje ke liye apne paryavaran ko bahut had tak barbad kar dete hain.

Aatishbaji hamare shrir or pryavaran donon ke liye bahut hi hanikarak hoti hai. Dipawali me patakhon ka prayog karke ham Bhartiya keval Bharat ka hi nhin balki pure vishva ka pradushan badhate hain. Patakho ke kaaran aese bahut se hadse hote hain jinka shikar bachhe se lekar bade tak ho jate hain.

Patakhon ke dhuyen ki vajah se asthma or kayi prakar ki anya bimariyan ho jati hain. Patakhon ki vajah se sabhi tarah ka pradushan hota hai jaise – dhuyen ke kaaran vaayu pradushan, patakhon ki aavaj ke kaaran dhvani pradushan, jahrile padarth dharti par gir jane se bhoomi pradushan, patakhon ka jahrila padarth pani me mil jane ki vajah se jal pradushan aadi.

Upsanhar 

Dipawali hamara dharmik tyauhar hai. Dipawali ka parv sabhi parvon me ek vishisht sthan rakhta hai. Hamen apne parvon ki parmparaon ko har sthiti me surakshit rakhna chahiye. Parmparaon se hamen uske aarambh or uske uddeshya ko yaad karne me aasani hoti hai.

Parmparayen hamen us parv ke aadikal me pahuncha deti hain jahan par hamen apni aadikalin sanskrati ka gyan hota hai. Aaj ham apne tyauharon ko bhi aadhunik sabhyata ka rang dekar manate hain lekin hamen uske aadi svarup ko bigadna nhin chahiye. Ise hamesha yathochit riti se manana chahiye.

Juaa or sharab ka sevan bahut hi bura hota hai hamen sadaiv isse bachna chahiye. Aatishbaji par adhik vyay nhin karna chahiye. Ham sabhi ka kartavya hota hai ki ham apne parvon ki pavitrata ko banaye rakhen. Is din log vyakhyan dekar jan sadharan ko shubh marg par chala sakte hain.

Yah tyauhar naya jivan jine ka utsah pradan karta hai. Hamen is baat ka vishesh dhyan rakhna chahiye ki hamare kisi bhi kaam or vyavhar se kisi ko bhi dukh na pahunche tabhi Dipawali ka tyauhar manana sarthak hoga.

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