ताजमहल अपनी अदभूत और अद्वितीय वास्तुकला के लिए जगत-प्रसित्र है। ताजमहल के निर्माण को लगभग तीन शताब्दियां बीत गई हैं, किंतु आज भी इसकी भव्यता नई सी प्रतीत होती है। प्रकृति के भीषण घात-प्रतिघात तथा मानव के निर्मम क्रिया-कलाप इसके ऊपर अपना कुछ भी प्रभाव नहीं छोड़ सके। यह आज भी शांत, मौन साधक की भांति अविचल खड़ा है। ताजमहल के अपूर्व सौंदर्य को देखने के लिए देश-विदेश से आए सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। ताजमहल मुगल सम्राटों की नगरी आगरा में यमुना नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है। ताजमहल के सम्मुख कल-कल करती यमुना की धारा प्रवाहित है। अन्य तीन दिशाओं में यह सुंदर मनोहारी पुष्प-उद्यानों से घिरा हुआ है। ताज का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी प्रिय बेगम मुमताज की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए उसके अटूट प्रेम की स्मृति स्वरूप कराया था। मुमताज बेगम के नाम पर इस इमारत का नाम ताजमहल पड़ा। ताजमहल के निर्माण में लगभग इक्कीस वर्ष का समय और सात करोड़ रुपए का खर्च आया। जिस समय ताजमहल बनकर तैयार हुआ, उसे अद्वितीय सौंदर्य को देखकर शाहजहां आश्चर्यचकित रह गया। दर्शक जब इस भव्य इमारत के निकट पहुंचता है तब वह आत्मविस्मृत हो जाता है। ताजमहल में प्रविष्य होने से पूर्व सर्वप्रभव दर्शकों को एक विशाल लाल पत्थर द्वारा निर्मित प्रवेश-द्वार मिलता है। इमरात की सीमा-रेखा पर निर्मित दीवार यथेष्ट ऊंची और दृढ़ है। इन दीवारों पर कुरान की आयतें अंकित हैं। ताजमहल के अति निकम एक सुंदर अजायबघर है, जिसमें मुगल बादशाओं के अस्त्र-शस्त्र प्रदर्शित हैं। प्रमुख प्रवेश द्वार पर एक चौड़ा मार्ग बना हुआ है। इस मार्ग के दोनों ओर सघन हरे, भरे वृक्ष हैं। इस मार्ग के दोनों ओर सुंदर फव्वारे बने हुए हैं, जिनमें से सदैव पानी झरता रहता है। इन फव्वारों के निकट दूर्वा-दल बराबर मनुष्य के मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। कुछ दूर आगे बढऩे पर एक सुंदर तालाब दिखाई पड़ता है। इस तालाब में मछलियां क्रीड़ा करती रहती हैं और नेत्रों को सुखद देने वाले कमल खिले रहते हैं। सरोवर के जल में लहराती पत्तियों और विकसित कमलों की शोभा वास्तव में दर्शनीय होती है। इस स्थान पर संगमरमर की श्वेत शिलाओं पर बैठकर यहां की अपूर्व छटा देखी जा सकती है। ताजमहल की प्रमुख इमरात स्फटिक-निर्मित विशाल चबूतरे पर बनी है और यथेष्ट ऊंचाईह्व पर है। चबूतरे के चारों कोनों पर विशाल गगनचुंबी मीनारें बनी हैं। इन मीनारों के मध्य में ताजमहल का गुंबद है। इस गुंबद की ऊंचाई लगभग 205 फीट है। इसका निर्माण संगमरमर से हुआ है और इसके चारों ओर मुसलमानों के धार्मिग ग्रंथ कुरान की आयतें अंकित हैं। गुंबद की पच्चीकारी वास्तव में अदभुत है। यहां की दीवारेां में बने हुए बेलबूटे सजीव और सच्चे प्रतीत होते हैं। इसी गुंबद के नीचे तहखाने में शाहजहां और मुमताज की समाधियों को देखकर अनायास ही दर्शक का हदय कोमल भावनाओं से द्रवित हो जाता है और मुगल-सम्राट शाहजहां के अमर प्रेम की याद ताजा हो जाती है। शरद पूर्णिमा को ताजमहल की शोभा निखर उठती है। पूर्णचंद्र के धवल प्रकाश में ताजमहल की संमरमर निर्मित श्वेत दीवारें ऐसी प्रतीत होती हैं, मानों शीशे की बनी हों। ताजमहल के सम्मुख बहती हुई यमुना की श्याम जलधारा पर थिरकती हुई ज्योत्सना अपूर्व दृश्य उपस्थित करती हैं। वास्तव में ताजमहल विश्व की उत्कृष्ट रचना है। इसकी गणना संसार के सात अजूबों में की जाती है। भारतीय ही नहीं, विदेशी भी इसकी अनुपम शोभा देखकर मुज्ध हो जाते हैं। इस संसार में जब तक यह अदभुत इमारत विद्यमान है तब तक प्राचीन भारतीय वास्तुकला और कारीगरी का गोरव भी सुरक्षित रहेगा।