भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्रस्तावित जन लोकपाल विधेयक के पारित होने की सम्भावना बदली जा रही है | महाराष्ट्र के प्रसिध्द समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा 5 से 8 अप्रैल , 2011 तक नई दिल्ली में आमरण अनशन किए जाने के बाद सरकार को उनकी मांगो के आगे झकना ही पढ़ा | हमारी सवैधानिक संस्थाओं और समाज में अभी भी ऐसे अनेक तत्व है, जिनकी मानसिकता और पृष्ठभूमि सीमित रही है और वे किसी भी प्रगतिशील कदम का विरोध करके यथासिथातिवाद बनाए रखना चाहते है, जबकि परिसिथ्तिया सवैधानिक सुधारो की माग करती है, जिसे हम लोकपाल कह रहे है | उसे लोक प्रशासन की भाषा में ओम्बडूसमेंन कहते है | वर्तमान समय में भ्रष्टाचार –उन्मूलन के नाम पर केन्द्र और राज्यों में भले ही दर्जनों विभाग बनाए गए हो मगर आम आदमी को भ्रष्टाचार से कोई राहत नही मिल रही है | सन 1960 में लोकपाल नियुक्त करने की चर्चा शुरू हुई थी | सन 1968 में संसद में पहला लोकपाल बिल पेश किया जाता था | गत 43 वर्षो से यह मामला खटाई में पड़ा हुआ है | लोकपाल विधेयक 10 से ज्यादा बार संसद में पेश किया जा चुका है, लेकिन वह पारित नही हो सका है यूपीए सरकार ने लोकपाल विधेयक 2010 पारित कराने के लिए एक मसौदा तैयार किया, लेकिन गांधीवादी अन्ना हजारे के नेतृत्व में विधेयक के इस मसौदे का इडिया अगेस्ट करप्शन सगठन ने यह कहकर विरोध किया की प्रस्तावित विधेयक बेहद कमजोर है और इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश नही लग सकता |इन्होने इसकी जगह खुद द्वारा बनाए गए जन लोकपाल विधेयक को पारित कराने की मांग की | इसी मांग को लेकर अन्ना हजारे ने आमरण अनशन शुरू कर दिया | सरकार ने 9 अप्रैल को इनके आगे झुकते हुए इनकी ज्यादातर मांगे मान ली | लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने को लेकर सरकार और अन्ना हजारे के बीच समझौता हो गया और इसके लिय एक संयुक्त मसौदा समिति का गठन भी किया गया लेक्रिन कई बैठको के बाद भी कोई आम सहमती नही बन पाई जिसके कारण अन्ना की टीम और सरकार ने इस विधेयक का अलग-अलग मसौदा सरकार के सामने रखा है | सरकार ने इस पर आम सहमति बनाने की बात कही है | भारत में लोकपाल का विचार स्वीडन की संस्था औम्बुडासमैंन का ही प्रतिरूप माना जा सकता है | संस्था की स्थापना का विचार सन 1968 में “भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने प्रस्तुत किया था | आयोग ने अपने प्रारूप में इस संस्था के दो उद्देश्य निरुपित किए थे – (1) नागरिको की प्रशासन के विरुद्ध शिकायतो को सुनना एव (2) भ्रष्टाचार को रोकना | यक्ष प्रश्न यह है की क्या लोकपाल विधेयक भारतीय समाज की रग-रग में रचे– बसे हुए भ्रष्टाचार कर पाएगा ? हमारे देश में कानूनों की कमी नही है , मगर उनको ईमानदारी से लागु कारने का कोई प्रयास नही करता | राजनितिक दबाव और वकीलों के दाव –पेच से अपराधी साफ बच जाते है | यही कारण है की इस देश की आम जनता को आज भी यह विश्वाश नही है की सत्ताधारी भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का ईमानदारी से प्रयास करेंगे | भ्रष्टाचार के प्रति समाज के दष्टिकोण को भी बदलने की आवश्यकता है , क्योकि कुछ दशक पूर्व तक ईमानदार व्यकित को समाज में सम्मान की दष्टि से देखा जाता था, लेकिन आज उसे संगी और मुर्ख माना जाता है |