मैं कुरसी हूं. हर जमाने में मेरा जलवा रहा है. मुझे हसीनाओं से भी ज्यादा भाव मिले हैं. इतिहास की ज्यादातर लड़ाइयां मेरे लिए ही लड़ी गईं. मैं सब की प्रिय हूं, सभी मेरे लिए जान पर खेलने को तैयार रहते हैं. लोगों ने मुझे हासिल करने के लिए अपने अजीजों तक को मार डाला. पिता को कारागार में डाल दिया. दोस्तों से मुंह मोड़ लिया. मुझ से नाता तोड़ना बेहद मुश्किल है, भले ही अपनी बीवी से नाता टूट जाए. राजा, मंत्री, नौकरशाह, बाबू सभी के लिए मैं माननीय हूं. मुझे पाने के लिए राजनीति की बिसात बिछाई जाती है, तमाम हथकंडे अपनाए जाते हैं. राजतंत्र में बाहुबल व कूटनीति के जरीए मैं हासिल होती थी, मगर प्रजातंत्र में वोट ही मुझे पाने का जरीया है.मैं नेताओं की पैदल यात्राओं, आंदोलनों, भूख हड़तालों का इनाम हूं. जिस ने मेरी अनदेखी की, उस की जिंदगी में अंधेरा छा गया. जिस ने भी मुझे लात मारी, वह दुनिया वालों की लात का शिकार बन गया. मेरे लिए लोकतंत्र का जनाजा उठाया जाता है, संविधान को ठेंगा दिखाया जाता है और कानून को नजरबंद कर दिया जाता है. मेरे लिए दो धु्रव एक हो जाते हैं, दुश्मनों में सुलह हो जाती है, शेर और मेमना जंगलराज बनाने के लिए मिलाजुला जतन करते हैं. मैं कुरसी हूं यानी सत्ता, हक, सहूलियत, ऐश्वर्य, ख्याति. मेरे सामने बड़ेबड़ों की बोलती बंद हो जाती है. ताकतवर भी लाचार हो जाते हैं. जानकार बेजान हो जाते हैं. मेरे लिए रातोंरात ईमान बदल जाते हैं. बैनर बदल जाते हैं. मैं ही हकीकत हूं और सब बकवास.मैं ही घोषणापत्रों का सार और विपक्ष की टीस हूं. मुझे हासिल करते ही कंगाल मालामाल और मूर्ख अक्लमंद हो जाते हैं. मेरे छूने से अंधे देखने लगते हैं. गरीबी का नामोनिशान मिट जाता है. दौलत से घर भर जाते हैं. जुल्म मेरा औजार है, झूठ मेरा कवच, बेईमानी मेरी बुनियाद है, तिकड़मबाजी मेरा ईमान है, घडि़याली आंसू मेरे गहने हैं और भ्रष्टाचार मेरी औलाद है. मैं कुरसी हूं. राजा विक्रमादित्य को मुझ पर बैठने से पहले बेताल के मुश्किल और उलझाऊ सवालों के जवाब देने पड़े थे. मेरी ही खातिर औरंगजेब ने अपनों को भी मार डाला था. लोकतंत्र में मैदान और लड़ाई का तरीका बदल गया है. अब मुझे पाने के लिए जनता के सामने न निभाने वाले वादे करने पड़ते हैं, भूख हड़ताल और पैदल यात्राओं के भीड़खींचू नाटक करने पड़ते हैं, गुंडों की फौज रखनी पड़ती है और किराए पर ‘जिंदाबाद’ बोलने वाले लोग रखने पड़ते हैं.मैं कुरसी हूं. जो मुझे पा लेता है, उसे कुछ पाने की ख्वाहिश नहीं रहती है. वह उम्रभर मेरा हो कर रह जाता है. मेरे पास आंख और कान नहीं हैं, इसीलिए मैं दुखियों की चीखें सुन नहीं पाती, भूखेनंगों की हालत देख नहीं पाती. मेरे पास कपटी दिमाग और मजबूत पैर हैं. मैं इन दोनों अंगों का भरपूर इस्तेमाल करती हूं. अपने दिमाग से ही मैं राजनीति की बिसात बिछाती हूं, विरोधियों के कुचक्र को नाकाम करती हूं और मजबूत पैरों से आगे वाली कुरसी पर बैठे विरोधियों को ठोकरें मारती हूं. अपने ऊपर बैठने वाले को मैं रस से भर देती हूं. साहित्य के ठेकेदारों ने नौ रसों में जगह न दे कर मेरे साथ नाइंसाफी की है. शृंगार को रसराज कहा गया है, जबकि मेरे बगैर वह भी बेकार है, इसलिए साहित्य के ठेकेदारों को ‘कुरसी रस’ नामक एक नए रस का खुलासा कर देना चाहिए.