इसलाम धर्म (Hindi Essay Writing)

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इसलाम धर्म


इसलाम धर्म का जन्मदाता हजरत मुहम्मद को माना जाता है। हजरत मुहम्मद साहब का जन्म मक्का में सन 570 में हुआ था। उनके पिता एक साधारण व्यापारी थे। बचपन से ही मुहम्मद साहब एक विचारशील व्यक्ति थे। जब वे बहुत छोटी अवस्था के थे, तभी उन्हें मूर्छा आ जाया करती थी। कहते हैं, उस समय वे अल्लाह को याद किया करते थे। बाद में, उनकी धार्मिक रूचि देखकर मुसलमानों ने उन्हें अपना धार्मिक नेता मान लिया। समय-समय पर मुहम्मद साहब ने अनेक स्थानों पर धािर्मक उपदेश दिए। बाद में मुहम्मद साहब के उपदेशों को लिखा गया और उसे कुरान शरीफ का नाम दिया गया। मुहम्मद साहब द्वारा प्रतिपादित धर्म को इसलाम धर्म कहा गया। इसलाम का अर्थ होता है शांति का मार्ग। मक्का मुसलमानों का पवित्र स्थान है। उनके सिद्धांत के विरोधी लोगो ंने इसलाम धर्म के सिद्धांतों के खिलाफ दुष्प्रचार किया। इससे स्थिति बहुत नाजुक हो गई। इस तरह मुहम्मद साहब के जीवन के लिए भी खतरा पैदा हो चुका था। मामले की गंभीरता को भांपकर मुहम्मद साहब को उनके शिष्यों ने मदीना पहुंचाया। इस तरह से मुहम्मद साहब मक्का छोडक़र मदीना में रहने लगे। वे सन 622 में मदीना गए। सन 622 से ही हिजरी सन शुरू होता है। मदीना में रहकर मुहम्मद साहब ने अपने धर्म का प्रचार-प्रसार किया। इस तरह इसलाम धर्म का प्रचार-प्रसार समूचे अरब देशों मे ंहो गया। मुहम्मद साहब के मक्का से जाने भर की देरी थी, धीरे-धीरे मक्का निवासिायों ने मुहम्मद साहब के बताए मार्ग पर चलना शुरू कर दिया। सारे मक्का निवासियों ने एक स्वर में इसलाम धर्म को स्वीकार कर लिया। मुहम्मद साहब ने समझ लिया कि मदीना में इसलाम धर्म की नींव बहुत गहरी हो चुकी है। जब उन्होंने आगे बढऩे का फैसला लिया। वे ‘हज्जाज’ गए। उसके बाद वे नजत नाम स्थान पर भी गए। मुहम्मद साहब की मृत्यु के सौ वर्षों के बाद इसलाम धर्म का पूरे विश्व में प्रभावकारी प्रचार हुआ। इसलाम धर्म का पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ को माना गया है। कुरान शरीफ के अनुसार, इस सृष्टि की रचना करने वाले अल्लाह हैं। इस लोक में जितने भी प्राणी हैं, वे सभी अल्लाह के बंदे हैं। इसलाम धर्म अल्लाह के अलावा और किसी देवी-देवताा को नहीं मानता। यही कारण है कि मुसलामन लोग इस बात की कसम खाते हैं कि कयामत तक अल्लाह के न्याय में विश्वासस रखेंगे। जहां तक भारत में इसलाम धर्म के प्रचार-प्रसार की बात है, इसकी अवधी 713 की मानी जाती है। सल्तनत काल में भारत में इस धर्म के प्रचार-प्रसार में तेजी आई। इसके बाद जब मुगलों ने भारत में शासन किया तब इस धर्म के अनुयायियों की संख्या में और अधिक वृद्धि हुई। इसलाम को न मानने वालों को काफिर बताया गया है। अल्लाह की इबादत में पांचों वक्त की नमाज अदा की जानी चाहिए।

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