किसी भी संस्था के लोग जब किसी भी कारणवश सामूहिक रूप से कार्य करना बन्द कर देते है तो उसे हड़ताल कहा जाता है | यह वह प्रकिया है जो प्राय : अनाचार के विरोध से अथवा अधिकारों की मांग के लिए की जाती है | यह अधिकारों की मांग को पूरा करने का अमोघश्स्त्र है | आज के युग में जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नही है जहाँ हम अपने अधिकारों की लिए हड़ताल का सहारा न लेते हो | ज्यो – ज्यो मानव जीवन में राजनीति का प्रवेश बढ़ता जा रहा है त्यों-त्यों अधिकार की भावना बढती जा रही है | फलस्वरूप हड़ताल भी जोर पकडती जा रही है | पहले तो ये हडताल के नारे केवल औद्दोगिक संस्थानों तक ही सीमित थे परन्तु आजकल तो शिक्षण संस्थाएँ तक भी इससे अछूती नही रही | ऐसा लगता है कि जल्दी ही इसके नारों से घर का कोना – कोना गूंजने लगेगा | इसका ज्ञान तो नही है कि हड़ताल का जन्म कब और कहाँ हुआ था, परन्तु आज के जन – जीवन में हड़ताल इतनी घुलमिल गई है की छोटी-बड़े , शिक्षित व अशिक्षित , पुरुष व नारी सभी इससे परिचित है | ऐसा देखा जाता है कि आजकल कही-न-कही हड़ताल होती रहती है | कभी – कभी तो यह इतना भयंकर रूप धारण कर लेती है कि इसके कारण पुलिस के डंडे और गोलियाँ भी चल जाती है | पुलिस को अश्रु –गैस का सहारा भी लेना पड़ जाता है | भारतवर्ष में तो सबसे पहले गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के फलस्वरूप अंग्रेजो के शासन और अत्याचारों के विरोध में हड़ताले हुई थी | स्वतंत्रता के बाद तो हड़ताल का प्रसार बहुत तेज गति से हो रहा है | श्रमिको तथा निर्धनों के कंठ में तो इसका वास होता है, क्योकि उन्हें अपने अधिकारों को मनवाने में तथा अत्याचारों के विरोध स्वरूप इसका सहाना लेना पड़ता है | हड़ताले प्राय : शासन के विरुद्ध , अत्याचारों के विरुद्ध , तथा वेतन , छुट्टी और मजदूरी आदि के लिए की जाती रही है | शासन के विरुद्ध हड़ताले बड़े व्यापक रूप में होती है क्योकि इनमे प्राय : जनता का समर्थन प्राप्त होता है | इनके अतिरिक्त अन्य हड़ताले वेतन तथा मजदूरी बढ़वाने , छुट्टी करवाने व महंगाई भत्ता बढ़वाने के लिए औद्दोगिक संस्थानों में होती रहती है | सन 1942 ई. में अग्रेजो के अत्याचारों के विरोध में देश के महान नेताओ के संरक्षण में देशव्यापी हडताल हुई थी जिसके कारण अंग्रेज भारत को स्वतंत्र करने पर बाध्य हुए थे | हड़तालो से जहाँ हमे कुछ लाभ मिलते है वहाँ इसकी हानियाँ भी कम नही है | देश के उत्पादन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है | पुरे राष्ट्र में तोड़ – फोड़ होने लगती है जिससे राष्ट्र की सम्पत्ति नष्ट हो जाती है | छात्रो में अनुशासनहीनता बढती जाती है | अत : इनको नियन्त्रित करने के लिए औद्दोगिक संस्थानों के स्वामियों को चाहिए कि वे श्रमिको के हितो का ध्यान रखे तथा आपस में बैठकर समस्या का समाधान ढूढे | समझौते की भावना से कार्य करने में श्रमिको का भी हित है |
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