सांप्रदायिक हिंसा कि यदि सामाजिक व्याख्या की जाए, तो यह कहा जा सकता है कि लोग हिंसा का उपयोग इसलिए करते हैं क्योंकि वह असुरक्षा एवं चिंता से ग्रस्त होते हैं| इन भावनाओं एवं चिंताओं की उत्पत्ति उन सामाजिक अवरोध से होती है, जो दमनात्मक सामाजिक व्यवस्था और सत्ताधारी अभिजनों द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं| व्यक्ति की पृष्ठभूमि एवं पालन-पोषण के कारण से उसमें ऐसी भावनाओं का जन्म होता है| सांप्रदायिक दंगों से निपटने के लिए कुछ महत्वपूर्ण प्रभावी कदम उठाए जा सकते हैं, जैसे सांप्रदायिक मानसिकता रखने वाले राजनीतिज्ञों को चुनाव लड़ने से वंचित करना है, धर्मांध लोगों के विरुद्ध निरोधात्मक कार्रवाई करना, पुलिस विभाग को राजनीतिज्ञों के नियंत्रण से मुक्त करना, पुलिस की खुफिया विभाग को और शक्तिशाली बनाना, पुलिस बल की पुनःसरचना करना, पुलिस प्रशासन को आर्थिक संवेदनशील बनाना, पुलिस अधिकारियों के प्रशिक्षण के अंतर्गत उन्हें धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाने के योग्य बनाना| सरकार को ऐसे निवारक उपाय भी करने होंगे, जिनके द्वारा भेदभाव एवं सापेक्षिक वचन की भावना को कम किया जा सके| आज समान नागरिक सहिंता की अत्यधिक आवश्यकता है| भारत की जनता अब इतनी परिपक्व हो चुकी है कि वह शराफत का मुखौटा लगाए इन स्वार्थी, कपटी एवं धूर्त लोगों की आसानी से पहचान कर उनका मुंहतोड़ जवाब दे सके| स्वयं को इतना सुदृण एवं विवेकशील बनाना होगा कि उचित-अनुचित, नैतिक-अनैतिक, तार्किक-अतार्किक आदि के बीच अंतर की स्पष्ट पहचान की जा सके, जिससे राष्ट्रीय एकता एवं मानवीयता की गरिमा बरकरार है| आज हम सबको स्वामी विवेकानंद की कही बात को आचरण मे लाने की आवश्यकता है, हम भारतीय सभी धर्मों के प्रति केवल सहिषुणता में ही विश्वास नहीं करते वरन् सभी धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार भी करते हैं| भारत एक ऐसा देश रहा, जहां मुसलमान बाहरी आक्रमणकारी के रूप में तो अवश्य आएं, लेकिन एक बार आने के बाद में बाहरी नहीं रह गए| उन्होंने इस देश कोई अपना देश माना और यहां की संस्कृति को बहुत गहराई तक आत्मसात् किया| भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति के अंतर्गत ही अकबर ने दीन ए इलाही धर्म चलाया और अवध के नवाब वाजिदअली शाह तो 1 दिन ही दिन गम का त्यौहार मोहर्रम और खुशी का त्यौहार होली पड़ने पर, दोनों ही मनाते थे| कारण स्पष्ट था क्योंकि मजहब अपनी जगह है और इंसानियत अपनी जगह है| कोई भी मजहब किसी को वैमनस्य नहीं सिखाता| अमीर खुसरो ने अपनी मजनबी नूर सिपह में लिखा है लोग पूछते हैं कि भारत के प्रति मेरे मन में श्रद्धा क्यों है? भारत मेरी जन्म भूमि और मेरा देश है| पैगम्बर ने कहां है कि अपने देश से प्रेम करना मजहब का एक हिस्सा है| धर्म के आधार पर लोगों को विभाजित करने का कार्य सिर्फ़ निजी स्वार्थ की पूर्ति करने वाले असामाजिक एवं निकृष्ट कोटी के लोग ही करते हैं| जब अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से भारत पर अपना आधिपत्य जमाया, तो प्रारंभ में उन्होंने हिंदुओं को संरक्षण देने की नीति अपनाई, परंतु 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात अंग्रेजों ने भारतीय जन एकता को खंडित करने के लिए खुलकर फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई फलस्वरूप झगड़ों को अत्यधिक प्रोत्साहन मिला| यह कहा जा सकता है कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पारस्परिक विरोध बहुत पुराना मुद्दा है लेकिन हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिकता स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश शासन की विरासत है| अंग्रेजो ने भारत को स्वतंत्र किया मगर हिंदुस्तान और पाकिस्तान में बांटकर दोनों देशों को सांप्रदायिकता की आग में झुलसने के लिए छोड़ दिया जिसका लेखिका अमृता प्रीतम ने अपने उपन्यास पिंजङ मे बड़ा ही सजीव वर्णन किया है| दोनों देशों के सांप्रदायिक हिंदुओं और मुसलमानों की व्यंग्यात्मक शैली में निंदा करते हुए भारत के वर्तमान शायर निदा फाजली लिखा है हिंदू भी मजे में है मुसलमान मैं भी मजे में है इंसान परेशान यहां भी है वहां भी| इतिहासकार प्रो विपिन चंद्र का मानना है कि कांग्रेस ने प्रारंभ से ही “चोटी से एकता” की नीति अपनाई, जिसके अंतर्गत मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग मुसलमानों (जिन्हें मुसलमान समुदाय का नेता माना जाता था) को अपनी और करने का प्रयत्न किया गया| हिंदू और मुसलमान दोनों के द्वारा जनता के साम्राज्य विरोधी भावनाओं की सीधी अपील करने के लिए स्थान पर यह मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के मुसलमानों पर छोड़ दिया गया कि वे मुसलमान जनता को आंदोलन में सम्मिलित करें| इस प्रकार “चोटी से एकता” उपागम साम्राज्यवाद से लड़ने के लिए हिंदू मुस्लिम एकता को प्रोत्साहित नहीं कर पाया|