प्रस्तावना- भ्रष्टाचार संस्कृत भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है- भ्रष्ट़आचार। भ्रष्ट का अर्थ है-नीचे, गिरा हुआ जबकि आचार का अर्थ है आचरण। इस प्रकार भ्रष्टाचार का अर्थ है- गिरा हुआ आचरण। सामान्य शब्दों में, भ्रष्टाचार का अर्थ इस प्रकार है- एक ऐसा व्यक्ति जिसने अपने कर्तव्य की अवहेलना करके निजी स्वार्थ के लिए कुछ कार्य किया है, स्वतन्त्र भारत में भ्रष्टाचारी शब्द प्रायः नेताओं, जमाखोरों, सरकारी कर्मचारियों तथा चोरबाजारियों आदि के लिए प्रयोग किया जा रहा है। भ्रष्टाचार के रूप- भ्रष्टाचार के अनेक रूप हैं, तथा इसके करने वाले विभिन्न तरीकों से भ्रष्टाचार करते हैं, जैसे-दुकानदार से आपने हल्दी मांगी उसने हल्दी में मुल्तानी मिट्टी भरकर अपना लाभ कमाया। इस प्रकार की मिलावट ही भ्रष्टाचार कहलाती है। पिछले दिनों बिहार में भ्रष्टाचार का एक नया मामला प्रकाश में आया है, जिसका नाम यूरिया आयात घोटाला है। इस घोटाले में केन्द्र के कुछ मंत्रियों के नाम भी शामिल हैं। भ्रष्टाचार क्यों?- भ्रष्टाचार करने की नौबत तब आती है, जब मनुष्य की लालसाएं इतनी बढ़ जाती हैं, कि वे उनको पूरा करने के लिए भ्रष्टाचार की शरण लेते हैं। हमारे देश के नेता भी यह नहीं सोचते कि वे तो अपना भरपूर जीवन जी चुके हैं, परन्तु भ्रष्टाचार करके वे दूसरें नवयुवकों का जीवन अपने जरा से धन मोह के लिए क्यों बर्बाद कर रहे हैं। भ्रष्टाचार मिटाने का प्रयास- रफी साहब की खाद्य नीति को लोगों द्वारा आज भी याद किया जाता है। उन्होनें उत्तर प्रदेश के राजस्व विभाग में मंत्री के रूप में कार्य किये और भ्रष्टाचार पर अकुंश लगाया। आज भ्रष्टाचार हमारे देश की एक महत्वपूर्ण समस्या बन गई है जिसे रोकने के लिए निम्न बातों का प्रयोग करना आवश्यक है- (1) सर्वप्रथम लोकपालों को प्रत्येक राज्य केन्द्रशासित प्रदेश तथा केन्द्र में अविलम्ब नियुक्त किया जाए, जो प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी हो। उसके कार्यक्षेत्र ने प्रधानमन्त्री तक सम्मिलित किया जाना चाहिए। (2) निर्वाचन व्यवस्था को और भी आसान और सस्ती बनायी जाए जिससे समाज सेवा का लोककल्याण से जुड़े लोग भी चुनावों में भाग ले सकें। (3) बड़े नेता से लेकर आम जनता तक जो व्यक्ति भ्रष्टाचार का आरोपी है, उसे सख्त-से-सख्त सजा दी जाए। आधुनिक युग में भ्रष्टाचारियों को महिमामण्डित करने तथा उन्हें ऊंचे-से-ऊंचे पद पर बिठाने का रिवाज चल रहा है, तथा लोक जातिवाद प्रभाव के द्वारा ऐसे लोगों का बहिष्कार नहीं करते, बल्कि उन्हें वोट देकर ऊंचे आसन पर बिठाकर उनकी पूजा करते हैं। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ न्यायपालिका के साथ-साथ समाज को भी अपना दायित्व याद रखना चाहिए। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जनाक्रोश प्रकट करने में समाज को तनिक भी संकोच नहीं करना चाहिए। उपसंहार- यह बात सत्य है कि सामाजिक बहिष्कार कानून से भी अधिक उपयोगी सिद्ध होता है। उन्हेें ऐेसे लोगो के खिलाफ जगह-जगह प्रदर्शन तथा आन्दोलन करने चाहिएं जिसे देखकर भ्रष्टाचारी यह ज्ञान सकें कि बुरे व काले कारनामें करने वालों को कभी भी माफ नहीं किया जायेगा।