भारत में आज 160 वर्ष पूर्व 16 अप्रैल, 1853 को 33.81 किलोमीटर लंबी मार्ग पर मुंबई से थाणे के बीच 8 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पहली रेलगाड़ी चलाई गई थी, किंतु आज भारत के रेल नेटवर्क ने न सिर्फ वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है, बल्कि विश्व के 5 बड़े रेल नेटवर्कों में स्थान है| वर्ष 2013-14 में भारतीय रेल को 1,441.67 बिलियन का राजस्व प्राप्त हुआ, जिसमें यात्री टिकट से 940 बिलियन और माल ढुलाई से 375 बिलियन का राजस्व सम्मिलित है| कर्मचारियों की वृहत संख्या के आधार पर 1.307 मिलियन कर्मचारी वाली भारतीय रेल विश्व की नौवीं सबसे बड़ी व्यवसायिक संस्था है| बावजूद इसके जापान का बुलेट ट्रेन संपन्न देशों की तुलना में भारत का रेल तंत्र काफी कमजोर है| भारत जैसे विकासशील देश में बुलेट ट्रेन चलाने की योजना से यहां की अर्थव्यवस्था पर भी भारी बोझ पड़ेगा| दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम रेलवे की कुछ परियोजनाओं को पूर्ण होने में पांच दशक का समय भी लग सकता है, क्योंकि परियोजना के अनुरूप रुपये आवंटित नहीं किया जा सके| फिर भारत जैसे देश में जहां राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस जैसे महँगी ट्रेनों पर आम जनता को यात्रा करने के लिए पहले काफी कुछ सोचना पड़ता है, वहाँ हवाई किराए के तर्ज पर चलाई जाने वाली बुलेट ट्रेनों को पटरियों पर दौड़ाना आर्थिक स्तर पर कितना लाभप्रद और लोगों के हित में होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा| इन सब समस्याओं के बावजूद हमें विकास की दौड़ से बाहर नहीं होना चाहिए| रेल मंत्रालय को आमदनी के नए-नए स्रोतों को पता लगाना चाहिए| राज्य सरकारों को ऐसी परियोजना हेतु मुफ्त में जमीन देने और परियोजना लागत का आधा खर्च हटाने के लिए स्वेच्छा से तैयार रहना चाहिए, क्योंकि कोई भी नई शुरुआत अपने साथ समस्याएं लेकर आती है, पर आगे चलकर वह जनहित और देशहित में मददगार साबित होती है| एफडीआई (Foreign direct investment) और पीपीपी (Public-private partnership ) के माध्यम से रेलवे अपने संसाधनों का विचार कर सकता है| रेलवे में हर स्तर पर सुधार किया जाना चाहिए, तभी भारत में बुलेट ट्रेन चलाने का लक्ष्य पूरा हो सकेगा और देशवासी का व्यापक लाभ उठा सकेंगे|